अमेरिका ने शनिवार को चीन द्वारा अपने पड़ोसी मुल्को की सम्प्रभुता को नष्ट करने के लिए चेतावनी दी हो और कहा कि “अगले वर्षों में अमेरिका नयी तकनीक की खोज कर रहा है जो एशिया को स्थिर रखेगा। दोनों मुल्क क्षेत्र में प्रभुत्व के लिए रस्साकस्सी कर रहे हैं। दोनों देशों के बीच दक्षिणी चीनी सागर, कोरियाई पेनिनसुला और ताइवान जलमार्ग तनाव का कारण बना हुआ है।
बीते हफ्ते सिंगापुर में आयोजित शांगरी ला वार्ता का आयोजन हुआ है जहां समूचे विश्व से रक्षा मंत्री और सैन्य अधिकारी एकत्रित हुए थे। अमेरिका के कार्यकारी रक्षा सचिव पैट्रिक षानहन ने कहा कि “चीन को शेष क्षेत्र से सहयोग्यात्मक सम्बन्ध बनाने चाहिए लेकिन दूसरे राष्ट्रों की सम्प्रभुता को नष्ट करना और चीन की अविश्वासी मंसूबों को खत्म करना होगा।”
उन्होंने कहा कि “जब तक यह होता है, हम इस कम्बीन, संकरे और पारलौकिक भविष्य के खिलाफ है और हमदक्षिणी आज़ादी और खुलेपन का समर्थन करते है जो सभी के लिए फायदेमंद साबित हो।” दक्षिणी चीनी सागर पर चीन को सैन्यकरण करने से अमेरिका रोक रहा है। इस सागर पर वियतनाम, मलेशिया, फिलीपीन्स, ताइवान और ब्रूनेई भी अपना दावा करते हैं।
ताइवान के जलमार्ग पर अमेरिका के युद्धपोत नौचलन करते करते हैं जिस पर बीजिंग कई बार अपना विरोध प्रकट कर चुका है। 2011 के बाद से चीन ने पहली बात सिंगापुर में अपने रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंग्हे को भेजा था। वह मंच को तरविवार को सम्बोधित करेंगे जहां वह चीन की राय जाहिर करेंगे।
शाहन ने कहा कि “अमेरिका ने इंडो पैसिफिक में भारी निवेश किया है ताकि वह सैन्य सुप्रीमता और क्षमता से अपने एशियाई सहयोगियों की रक्षा कर सके। उत्तर कोरिया हमारे लिए एक एक असामान्य खतरा बना रहेगा और सतर्कता जारी रखने की जरुरत है। इंडो पैसिफिक हमारी प्राथमिकताओं की सूची में हैं। हम उस क्षेत्र में निवेश कर रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि “पेंटागन ने अनुसंधान और विकास के लिए अगले वित्त वर्ष में 125 अरब डॉलर मुहैया करने का आग्रह किया है। शुक्रवार जी बीजिंग ने चेतावनी दी कि सम्मेलन के इतर दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात में अमेरिका को चीनी सेना को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।”
वू ने कहा कि “अमेरिका ने हाल ही में सिलसिलेवार तरीके से इस मामले पर नकरात्नक शब्दों और कार्रवाई को अंजाम दिया है। बीजिंग दृढ़ता से इसके खिलाफ है। राष्ट्रीय सम्प्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा की मसले पर अमेरिका को चीनी सेना की काबिलियत और इच्छा को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।”