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    चाहबार बंदरगाह

    अमेरिका के कठोर प्रतिबंधों के बाद ईरान काफी आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है और इसी कारण माल को निर्यात के लिए उसकी निगाहें चाबहार बंदरगाह पर है। चाबहार बंदरगाह पाकिस्तानी सीमा से सिर्फ 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और हिंद महासगार पर स्थित है।

    अफगानिस्तान के निर्यात को बढ़ाएगा

    साल 2018 में डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने आर्थिक प्रतिबंधों से भारत के आग्रह पर ईरान के चाबहार बंदरगाह को रियायत दी थी।

    इस बंदरगाह की बेहद अहम रणनीतिक जरुरत है, अफगानिस्तान की पाकिस्तान पर निर्भरता को कम करने के लिए यहां एक रेलवे लाइन का निर्माण किया जायेगा। इसके जरिये काबुल समस्त विश्व, विशेषकर भारत के साथ व्यापार कर सकेगा।

    उत्तर-दक्षिण गलियारा

    north south corridor
    उत्तर-दक्षिण गलियारा ईरान के चाबहार से होकर गुजरता है

    मध्य एशिया और हिन्द महासागर को रेल नेटवर्क के जरिये जोड़ रहा है इसी कारण इस्लामिक रिपब्लिक ने चाबहार के शहीद बहसती बंदरगाह में एक अरब डॉलर का निवेश किया है। रोड एंड अर्बन डेवलपमेंट मिनिस्टर मोहम्मद इस्लामी ने कहा कि “हम इस बंदरगाह का विकास करना जारी रखेंगे। हमारे रोड नेटवर्क, रेल नेटवर्क और एयरपोर्ट सभी विकसित किये जा रहे हैं, ताकि हम उत्तर-दक्षिणी गलियारे पर अमल कर सके।”

    इस प्रोजेक्ट के लिए 500 एकड़ की जमीन वापस ली गयी है और 618 मिलियन क्यूबिक फ़ीट छिड़क दी गयी है ताकि 16.5 मीटर प्रारूप बनाया जा सके। दिसंबर 2017 में इसकी स्थापना की गयी थी लेकिन एक साल से अधिक बीत जाने के बावजूद इसका कारोबार आकर्षित करना अभी शेष है।

    भारतीय कंपनी ने दिसंबर में इसका कार्य शुरू किया था और औसतन प्रतिमाह 60000 टन कार्गों ही भेजा था। यह बंदरगाह भारत और अफगानिस्तान के बीच कारोबार को आकर्षित करेगा। सुरक्षा कारणों के आलावा अमेरिकी प्रतिबंधों द्वारा वित्तीय ट्रांसक्शन को बंद कर देने के कारण कीमत चुकाना या लेना बेहद मुश्किल हो गया है।

    कारोबारी अफ़सानेह रबियनि के मुताबिक, चाहबार उनके लिए एक मौका है जो जोखिम उठाने के इच्छुक है। उन्होंने कहा कि “मैं पिछले डेढ़ वर्ष से चाबहार पर रिसर्च कर रहा हूँ। यहां का ढांचा गंभीर कार्य करने की स्थिति में है।”

    प्रतिबंधों के बाबत ईरान के परिवहन मंत्री ने कहा कि “इसमें कुछ नया नहीं है। हम प्रतिबंधों के साथ ही जन्मे है। साल 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद से ही हम प्रतिबंधों के साये में हैं और हम उनसे पीछा छुड़ाने की तरकीब पर कार्य कर रहे हैं।”

    चाबहार ईरान के लिए क्यों है जरूरी?

    chabahar iran

    चाबहार बंदरगाह ईरान के लिए एक आर्थिक सहारा है, जिसकी मदद से ईरान एक मुख्य आर्थिक शक्ति बन सकता है। जिस प्रकार पाकिस्तान सीपीईसी के जरिये चीन से अरबों डॉलर सहायता राशि के रूप में ले रहा है, उसी प्रकार ईरान भारत और जापान जैसे देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते बनाकर आर्थिक रूप से मजबूत हो सकता है।

    रोजगार के मामले में ईरान बहुत पीछे है। साल 2019 में ईरान में लगभग 11.7 फीसदी लोग बेरोजगार हैं। ऐसे में इस मामले में ईरान की हालत बहुत नाजुक है।

    आर्थिक सलाहकारों का मानना है कि चाबहार बंदरगाह की वजह से ईरान में अरबों डॉलर का विदेशी निवेश आएगा, जिसकी वजह से यहाँ की जनता की जिंदगी में सुधार आएगा।

    इसके अलावा एक दूसरा बड़ा फायदा ईरान के लिए यह है कि जिस इलाके में चाबहार बदरगाह पड़ता है, वह अन्य इलाकों के मुकाबले काफी पिछड़ा हुआ है। इस इलाके को सिस्तान-बलूचिस्तान कहा जाता है और यहाँ के लोग आज भी गंभीर गरीबी में जी रहे हैं।

    ईरानी सरकार का मानना है कि इस इलाके में व्यापार मार्ग बनने से यहाँ के लोग भी मुख्यधारा से जुड़ सकेंगे।

    कहा जाता है कि ईरान की वर्तमान हसन रूहानी की सरकार महत्वपूर्ण आर्थिक फैसले ले रही है और यह आने वाले समय में ईरान के लिए बहुत ही जरूरी हो सकते हैं।

    भारत के लिए अहमियत

    चाबहार बंदरगाह भारत के लिए कई मायनों में जरूरी है।

    सबसे पहले इसकी मदद से भारत और अफगानिस्तान के बीच से सीधा मार्ग बनता है। जाहिर है भारत अफगानिस्तान में शान्ति स्थापित करने की कोशिश कर रहा है और इसी के मद्देनजर भारत अफगानिस्तान में बड़ी मात्रा में निवेश कर रहा है।

    चूंकि भारत और अफगानिस्तान की सीमा एक नहीं है, इसलिए भारत को पाकिस्तान की मदद लेनी पड़ती थी। पाकिस्तान नें भारत को अफगानिस्तान की मदद के लिए अपनी जमीन इस्तेमाल करने से मना कर दिया था।

    ऐसे में भारत को एक अन्य उपाय की जरूरत थी, जो कि चाबहार के रूप में भारत को मिल गया है। चाबहार बंदरगाह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से सिर्फ कुछ 100 किमी दूर ही है। ऐसे में चाबहार के जरिये भारत अफगानिस्तान में आसानी से सामान पहुँच देता है।

    भारत नें नवम्बर 2017 में अफगानिस्तान के लिए पहला गेंहू से भरा जहाज रवाना किया था।

    अफगानिस्तान के अलावा भारत रूस और अन्य मध्य पूरी देशों तक भी पहुँचने की कोशिश कर रहा है।

    जाहिर है, भारत-जापान और रूस मिलकर उत्तर-दक्षिण गलियारे का विकास कर रहे हैं, जिसके लिए ईरान का चाबहार बंदरगाह बहुत ही जरूरी है।

    इसके अलावा इस बंदरगाह की वजह से भारत को ईरान के रूप में एक मजबूत साथी देश मिला है। ईरान तेल जगत में एक शक्तिशाली नाम है।

    हाल ही में जब अमेरिका नें ईरान पर प्रतिबन्ध लगाए थे, तब अमेरिका नें भारत को इससे आराम दे दिया था। इसकी वजह चाबहार में भारत का सहयोग ही था।

    चीन द्वारा अरब सागर में पैर पसारने पर भी भारत की नजर है और चाबहार के जरिये भारत चीन को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए तैयार है।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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