आज नरेंद्र मोदी बिहार के पूर्वी चंपारण में थे। यहां वह गांधी जी के चंपारण आंदोलन के सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में उसी तर्ज पर स्वच्छता आंदोलन की शुरुआत करने के लिए आये थे।
यहाँ उन्होंने बीस हज़ार स्वछाग्रहियो को भी संम्बोधित किया।
इतिहास
महात्मा गांधी चंपारण के किसान के आग्रह पर 1917 में चंपारण पहुंचे थे।
चंपारण के किसान औपनिवेशिक कानून के कारण अपनी जमीन पर नील उगाने के लिए मजबूर थे।
यह नील उनसे अंग्रेज ले लिया करते थे।
पर दूसरे विश्व युद्ध से पहले जर्मनी ने कृत्रिम नील का निर्माण कर लिया था। तब भारतीय नील की मांग कम गयी और वहां के जमींदार किसानों से कुछ पैसे लेकर उन्हें इस व्यवस्था से मुक्त करने लगे।
हालांकि जब किसानों को जर्मनी में बने नील की बात पता चली तब उन्हें अपने साथ हुए धोखे का आभास हुआ। तब वह अपने पैसे वापस लेने की मांग करने लगे। केस-मुकदमा भी हुआ पर बात कहीं तक नहीं पहुंची।
तब चंपारण के ही किसान राजकुमार शुक्ला गांधी जी के पास पहुंचे। वह अपनी जिद के दम पर गांधी जी को मुजफ्फरपुर ले आये। यहां उन्हें जे.बी. कृपलानी जी मिले। बाद में बिहार के नामी वकीलों को लेकर गांधी जी चंपारण पहुंचे व वहां जमींदारों के खिलाफ सबूत इकट्ठा करने शुरू किये।
अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें चंपारण छोड़ने का आदेश भी दिया पर गांधी जी ने वहां सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया। और वो वहीं डटे रहे। महीनों के संघर्ष के बाद बिहार सरकार ने किसानों के हक में फैसला दिया व जमींदारों को आदेश दिया कि किसानों का पैसा लौटाया जाये।
सत्याग्रह के बाद
यही सत्याग्रह गांधी जी के अगले सत्याग्रहों और आजादी की लड़ाई के लिए आधार बना। गांधी जि के अनुसार इस स्तयागरज का मुख्य उद्देश्य जमींदारों को किसानों के पैसे लौटाने के लिए बाध्य करना नहीं था बल्कि इस आंदोलन का उद्देश्य था शासन तथा विदेशी कानूम के तले दबे किसानों में विरोध करने की हिम्मत का संचार करना था।
जो किसान पुलिस व कचहरी के नाम से कांपते थे, उनको यह दिखाया गया कि पुलिस और कचहरी से ना सिर्फ लड़ना बल्कि जीतना भी संम्भव है।
स्वच्छता से सम्बन्ध
किसानों के हक में फैसला आने के बाद भी गांधी जी चंपारण में रुके व अपने शिष्यों को भी वहां बुलाया तथा चंपारण में गांव-गांव जा कर सफाई आंदोलनों की अगुवाई की, वहां स्कूल खुलवाये, अस्पताल खुलवायें।
जो किस्सा इस मुद्दे पर प्रासंगिक है वह यह है कि गांधी जी ने एक गांव में औरतों को देखा जो की बहुत गन्दी साड़ीयां पहने हुई थीं। गांधी जी ने कस्तूरबा जी को उनसे बात करने के लिए भेजा। कस्तूरबा को बात करने ओर पता चला कि उन औरतों के पास बस वही एक साड़ी थी। जिसे वो कब साफ करतीं और पहनतीं!
नरेंद्र मोदी ने स्वछाग्रहियों का ये सम्मेलन बिहार में करवाया। यहां आज भी दलितों व महादलितों के लिये हालात ज्यादा बदले नहीं हैं।
उतनी गरीबी भले ना रहे पर हालात इतने नहीं सुधरे हैं कि लोग का पेट का इंतजाम करने से पहले घर को साफ रखने के बार में सोचें।
शौचालयों का निर्माण हो तो रहा है पर क्या वो उन्हीं के घर में बन रहे हैं जिनको इसकी जरूरत है?
बिहार में सफाई का आंदोलन का रूप लेंना अभी अत्यंत कठिन है। ऐसे में गांधी जी जैसे नेता की आवश्यकता होगी जो कि शौचालय बनाने पर ना बल्कि सफाई के महत्व पर ध्यान दे।
ब्रह्मवादी विचार
बिहार और उत्तर प्रदेश समेत और कई राज्य हैं जहां लोग सफाई की आधुनिक परिभाषा से अधिक ब्राह्मणवादी परिभाषा पर ध्यान देते हैं।
उदाहरण के तौर पर लोग मांसाहारी भोजन करने के बाद साबुन से हाथ धोना अनिवार्य मानते हैं। पर खेत में दिनभर काम कर के आने के बाद ऐसा करना आवश्यक नहीं मानते हैं।
गांधी की आवश्यकता
जैसा चंपारण में गांधी जी ने किया वैसा कुछ ग्रामीण क्षेत्रों मे करने की आवश्यकता है। यहां लोगों की मानसिकता बदलने की आवश्यकता है। शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने की आवश्यकता है।
शिक्षित लोग सफाई के प्रति खुद जागरूक होंगे।