जब तेलुगु देशम पार्टी अध्यक्ष और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की तो सूत्रों ने बताया कि इस मुलाक़ात के दौरान ममता ने नायडू को एक स्पष्ट सन्देश दिया कि अभी तो इस मुद्दे पर कोई पक्की सहमति नहीं दे सकती। ममता के इस रुख ने भाजपा विरोधी दलों की प्रस्तावित मीटिंग को स्थगित करवाने में अहम् भूमिका निभाई।
नायडू ने खुद भी महसूस किया कि ममता बनर्जी और बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती भाजपा और नरेंद्र मोदी को 2019 में हारने के उनके सपने में सबसे बड़ी बाधा बन सकती हैं।
नायडू और अन्य क्षेत्रीय दलों को गठबंधन में कांग्रेस को बड़े भाई के रूप में स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन मायावती और ममता बनर्जी इसके लिए तैयार नहीं हैं।
चंद्रबाबू नायडू पिछले कई महीनों से 2019 के लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र भाजपा के खिलाफ एक भाजपा विरोधी गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे हैं जिसके तहत सभी क्षेत्रीय दलों को एक मंच पर लाया जा सके। पिछले कुछ हफ़्तों में नायडू ने इसी सिलसिले में कई क्षेत्रियों दलों के नेताओं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाक़ात भी की। उन्होंने राहुल गाँधी से मुलाकात के बाद ही 22 नवम्बर को सभी क्षेत्रीय दलों की मीटिंग की घोषणा की थी।
तेलुगु देशम ने नायडू के इस कोशिशों को लेकर मिडिया में एक बड़ा माहौल बना रखा था। नायडू ने भी बैंगलोर में देवेगौड़ा, चेन्नई में स्टालिन और शरद पवार, फारुख अब्दुल्ला, अरविन्द केजरीवाल से मुलाक़ात कर एक मजबूत सन्देश देने की कोशिश की थी लेकिन ममता बनर्जी के ये कहते ही कि ‘हर कोई गठबंधन का चेहरा है’ नायडू के कोशिशों की हवा निकल गई।
ममता की ही तरह मायावती ने भी नायडू को कोई भरोसा नहीं दिया। दरअसल मायावती छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस से अलग हो कर चुनाव लड़ रही हैं। उसके अलावा मायावती प्रधानमंत्री बनने की भी ख्वाहिश रखती हैं। अभी तक मायावती ने उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी से गठबंधन को ले कर कोई पत्ते नहीं खोले हैं। मायावती ने इशारों इशारों में ये साफ़ भी कर दिया है कि कम सीटें मिलने पर वो किसी से गठबंधन नहीं करेंगी। ऐसी स्थिति में मायावती और ममता दोनों नायडू के सपनो पर पानी फेर सकती है।