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    दिव्यांग

    दिव्यांग लोगों से संबंधित साक्षरता के मामले में 2011 की जनगणना के अनुसार अरुणाचल प्रदेश ने 38.75 प्रतिशत की सबसे कम साक्षरता दर दर्ज की, जिसके बाद राजस्थान का नंबर आता है, जहां दिव्यांग साक्षरता का प्रतिशत 40.16 था।

    वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि 5 से 19 वर्ष की उम्र वाले सिर्फ 61 प्रतिशत दिव्यांग बालक किसी शैक्षणिक संस्थान में जाते हैं। साथ ही, स्कूल जाने वाले (5-19 वर्ष वाले) दिव्यांग बच्चों की संख्या गांवों के मुकाबले (60 प्रतिशत) शहरों में (65 प्रतिशत) ज्यादा है। 62 प्रतिशत दिव्यांग लड़कों की तुलना में केवल 60 प्रतिशत दिव्यांग लड़कियों (5-19 वर्ष) ने शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लिया।

    ग्रामीण भारत में अपर्याप्त वित्तीय बुनियादी ढांचे के कारण सामाजिक स्थितियों, सामाजिक-आर्थिक परिणामों और सेवाओं तक दिव्यांग लोगों की पहुंच के मामले में काफी भिन्नता है। और चूंकि नीतियों के निहितार्थो में भिन्नता है, ऐसे में हमें वर्ग और क्षेत्रीय अंतर जैसे मुद्दों की अनदेखी भी नहीं करना चाहिए।

    ऐसे दौर में जबकि देश की अर्थव्यवस्था ऊपर की ओर विकास पथ पर अग्रसर है, हमें इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि लोगों में जागरूकता की कमी के कारण हमारे यहां डिजिटल वित्तीय साक्षरता भी बहुत कम है, खासकर ग्रामीण भारत में।

    स्पष्ट है कि ग्रामीण भारत में सामाजिक समानता लाने के लिए डिजिटल वित्तीय साक्षरता अभियानों की बहुत जरूरत है।

    शहरी और ग्रामीण समाज के बीच परिणामों में महत्वपूर्ण अंतर देखा गया है। ज्यादातर निर्धन और वंचित दिव्यांगों की वित्तीय स्थिति बहुत खराब है। उनमें से अधिकांश दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों के रूप में कार्यरत हैं। जाहिर है कि ऐसे लोग स्मार्टफोन और अन्य गैजेट्स का खर्च वहन नहीं कर पाते। टेक्नोलॉजी की पूरी समझ नहीं होने के कारण ऐसे लोग ई-वॉलेट और मोबाइल बैंकिंग का उपयोग करने में भी असमर्थ हैं।

    आज देश में ई-वॉलेट सिस्टम की चौतरफा चर्चा है। इस प्लेटफॉर्म के माध्यम से भुगतान करना अब बेहद आसान हो गया है। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले दिव्यांग अब भी इससे दूर ही हैं। दरअसल, वित्तीय साक्षरता योजनाओं से संबंधित बुनियादी सुविधाओं की कमी, टैक्नोलॉजी के सीमित प्रसार और जानकारी के अभाव के कारण ऐसा हो रहा है।

    प्रचारकों को स्कूल और कॉलेज के माध्यम से प्रासंगिक जानकारी देते हुए डिजिटल वित्तीय साक्षरता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इस दिशा में वे स्वयंसेवकों की मदद से ऐप्स का प्रदर्शन कर सकते हैं और नुक्कड़ नाटकों का सहारा भी ले सकते हैं। साथ ही, स्कूलों और कॉलेजों में सेमीनार इत्यादि का आयोजन भी कर सकते हैं और गांवों-कस्बों में वीडियो फिल्मों के माध्यम से डिजिटल वित्तीय साक्षरता को लेकर लोगों की जानकारी में इजाफा कर सकते हैं।

    नारायण सेवा संस्थान ने 2011 के बाद से 8,750 से अधिक विशेष रूप से सक्षम लोगों को कुशल बनाया है। इसके साथ ही सर्जरी के बाद इनके लिए मोबाइल रिपेयरिंग से संबंधित वोकेशनल ट्रेनिंग शुरू की है। जैसे-जैसे न्यू इंडिया में टेक्नोलॉजी विकसित हो रही है, देश को उसी हिसाब से आगे बढ़ने की जरूरत है।

    ऐसे कई पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं, जिन्हें उचित शुल्क के साथ ऑनलाइन ही सीखा जा सकता है और इनके लिए किन्हीं संस्थानों में जाने की आवश्यकता भी नहीं है।

    पर्सनल फाइनेंस : इस कोर्स के जरिए डिजिटल वित्तीय साक्षरता को हासिल किया जा सकता है। साथ ही इसके माध्यम से कारोबारी सिद्धांतों से संबंधित विशेषज्ञता, परिवार की वित्तीय योजना, चक्रवृद्धि ब्याज, ऋण प्रबंधन, बचत तकनीकों, धन का मूल्य, ऑटो ऋण, बंधक ऋण, बजट, कराधान और सेवानिवृत्ति योजना जैसी धारणाओं को भी सीखा जा सकता है। वित्तीय साक्षरता के बिना यह मुमकिन है कि आप ऐसा कोई निर्णय कर बैठें, जो आपकी वित्तीय सेहत के लिए खराब हो और जो आखिकार आपको नकारात्मक नतीजों की तरफ ले जाए। इस कोर्स को इंटरमीडिएट या स्नातक के बाद किया जा सकता है।

    कॉर्पोरेट फाइनेंस : किसी एक बड़े संगठन की तरह हर स्टार्टअप को भी निवेश, वित्तीय मॉडल और फंडिंग से जुड़े वित्तीय फैसले भी बेहद सावधानी से लेने होते हैं। यही कारण है कि प्रत्येक प्रबंधक कंपनी के हित को पूरा करने और लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जिम्मेदार होता है। यह पाठ्यक्रम पेशेवरों को उच्च गुणवत्ता के शिक्षण अनुभव के साथ आवश्यक मूल्यवान कौशल विकसित करने का अवसर देता है।

    मैनेजमेंट अकाउंटिंग : इस पाठ्यक्रम के माध्यम से आप कॉमर्स, वित्तीय सेवाओं, कंसल्टेंसी, सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र या विनिर्माण उद्योग को गहराई से समझ सकते हैं। यह व्यावसायिक गतिविधि का मूल्यांकन करता है और उन्हें हितधारकों और नियामकों का विश्लेषण करने में मदद करता है। यह आंतरिक उद्देश्य और निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी सहायक है। इसके लिए उम्मीदवार को एक स्वीकृत बोर्ड से कक्षा 10 उत्तीर्ण होना चाहिए।

    फाइनेंशियल रिस्क मैनेजमेंट : देश में जहां एक तरफ वित्तीय उद्योग तेजी से बढ़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और जोखिम कारक भी बढ़ रहे हंै। बढ़ते बाजार के रूप में, यह पाठ्यक्रम कंपनी के लिए आवश्यकता के अनुसार क्रेडिट जोखिम, बाजार जोखिम, तरलता जोखिम का प्रबंधन करता है और इसका विश्लेषण करता है। यह बैंकिंग क्षेत्र के कंसल्टेंट्स, पारंपरिक परिसंपत्ति प्रबंधन, बचाव निधि, टेक्नोलॉजी, बीमा और गैर-वित्तीय निगमों के लिए विशेष पाठ्यक्रम है।

    वेल्थ मैनेजमेंट : आज देश का वित्त उद्योग अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए कुशल पेशेवरों की तलाश कर रहा है। जाहिर है कि वित्तीय नियोजन और परिसंपत्ति आवंटन में विशेषज्ञता हासिल करना एक फायदे का सौदा है। यही कारण है कि निवेशक ऐसे प्रोफेशनल लोगों की तलाश कर रहे हैं जो व्यक्तिगत वित्त की देखभाल कर सकते हैं और कंपनी की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। इस कोर्स में इक्विटी मार्केट एनालिसिस, म्यूचुअल फंड्स और इनवेस्टमेंट प्लानिंग शामिल हैं।

    उपर्युक्त पाठ्यक्रम अपनी सुविधानुसार ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यम से किए जा सकते हैं। अब वो वक्त आ गया है जब हमें शहरी भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए ग्रामीण भारत को शिक्षित करना ही होगा।

    (प्रशांत अग्रवाल उदयपुर स्थित नारायण सेवा संस्थान के अध्यक्ष हैं, जो दिव्यांगों और वंचित समुदायों की सेवा करने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था है।)

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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