दो दोस्त जिनकी दोस्ती की शुरुआत की कहानी अनोखी है। दोनों पुणे के प्रभात स्टूडियोज (आज का एफटीआईआई कैंपस) में रहते थे। एक दिन धोबी की गलती से दोनों के पास एक दुसरे की कमीज़ पहुँच गयी। 1946 में दोनों ‘हम एक हैं’ के सेट पर काम कर रहे थे। जब दोनों ने एक दुसरे को अपनी-अपनी कमीज पहने पाया तो धोबी की हरकत का एहसास करके दोनों ठहाके लगाने लगे। यहीं से दोनों की दोस्ती की शुरुआत हुई।
इनमे से एक थे मशहूर एक्टर देवानंद और दूसरे थे डायरेक्टर और एक्टर गुरु दत्त। उन्ही दिनों में दोनों ने एक दुसरे से वायदा किया की यदि देवानंद पहले अपनी फिल्म प्रोड्यूस करेंगे तो गुरु दत्त को ही डायरेक्टर लेंगे वहीँ गुरु दत्त ने वायदा किया कि वह अगर पहले डायरेक्टर बने तो अपनी फिल्म में देवानंद को ही एक्टर लेंगे। 1951 में देवानंद ने पहले प्रोडूसर बन के होना वायदा निभाया और गुरु दत्त को बाज़ी फिल्म में डायरेक्टर लिया।
गुरु दत्त के बारे में सोचते ही, हमें प्यासा (1957) कागज़ के फूल (1959) और साहिब बीबी और गुलाम (1962) की शानदार त्रिमूर्ति की याद आती है। हम ‘कागज़ के फूल’ में प्रकाश के साथ कैमरा का खेल, ‘प्यासा’ में विजय के “क्रूस पर चढ़ने” और ‘साहिब बीबी और ग़ुलाम’ में मीना कुमारी की नीची आँखों की सुंदरता को देखते हैं।
हाल ही में अंग्रेजी में प्रकाशित टीवी पत्रकार और लेखक यास्सेर उस्मान की किताब ‘गुरु दत्त: एन अनफिनिश्ड स्टोरी’ ने उनके जीवन, व्यक्तित्व और सिनेमा पर प्रकाश डाला है। किताब की संरचना के लिए लेखक अलग से बधाई के पात्र हैं। किताब में कुल 15 अध्याय हैं जिसमे आखरी को छोड़ कर सभी अध्याय दो खंड में विभाजित हैं। जैसे दत्त की फिल्मों में कहानी को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है जिसमे पहला हिस्से को उस्मान ‘बिल्डिंग ऑफ़ अ ड्रीम’ बताते हैं।
इस पहले हिस्से में फिल्म नायक के जीवन के सपनों के बनने को दर्शाती है और आशावादी दृष्ट्रिकोड से नायक को समझने की कोशिश करती है। वहीं दूसरे हिस्से में नायक के सपने बिखरते हुए नज़र आते हैं जिसे लेखक ‘डिस्ट्रक्शन ऑफ़ अ ड्रीम’ केहते हैं। वह पहले हिस्से की नायक की आशावादी समझ कहीं खो-सी जाती है। कहानी का नायक समाज की कुरीतियों और पूंजीवाद से जूझता प्रतीत होता है। इस प्रकार लेखक दर्शाने की कोशिश करते हैं कि गुरु दत्त का निजी जीवन और सिनेमा दोनों अलग नहीं था। ऐसा करते हुए उस्मान उनके सिनेमा और जीवन में कई समानताएं ढूंढ निकालते हैं।
गुरु दत्त के साथ न्याय करने के लिए यासर जैसे संवेदनशील जीवनी लेखक की जरूरत थी। राजेश खन्ना, रेखा और संजय दत्त पर यासर ने इससे पहले तीन जीवनियां लिखी हैं। इन पुस्तकों में से प्रत्येक में, उन्होंने कलाकार की आंतरिक दुनिया में गहराई से प्रवेश किया है और उनके व्यक्तित्व के बारे में जानने की कोशिश की है, जो कभी-कभी उस कलाकार के काम में व्यक्त होती है।