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    सरकारी स्कूल

    “सा विद्या या विमुक्तये”

    संस्कृत के इस श्लोक का मतलब है कि मनुष्य को जो मुक्त करती है वो विद्या है। सच भी यही है कि मनुष्य को विद्या सभी तरह की कठिनाइयों, मुसीबतों, और पीड़ाओं से मुक्त करके एक सफल इंसान बनाती है।

    विद्यावान मनुष्य ना सिर्फ अपना भला करता है बल्कि अपने साथ साथ समाज और देश का भी भला करता है लेकिन तब क्या हो जब समाज में शिक्षा बच्चों के लिए एक चुनौती हो, गरीबों को शिक्षा नसीब ना हो और अमीरों को तमाम धन दौलत खर्च करने के बाद भी शिक्षा के नाम पर मात्र छलावा ही मिलता हो?

    दरअसल शिक्षा की जो तस्वीरें गुजरात में सामने आ रहीं हैं वो चिंताजनक है। गुजरात विधानसभा चुनाव में भले पार्टियां बड़े बड़े नारे लगा ले पर शिक्षा के अभाव में उन नारों को पूरा नहीं किया जा सकता। हां इस बात में कोई दो राय नहीं है कि गुजरात की आर्थिक वृद्धि दर बहुत ऊंची है और यहां और राज्यों के मुकाबले सभी क्षेत्रों में रेकॉर्ड तोड़ काम हुआ है लेकिन शिक्षा के मामले में गुजरात की हालत भी बाकी अन्य राज्यों की तरह ही दयनीय है।

    गुजरात की शिक्षा का स्तर बहुत हद तक सरकारी आंकड़े ही बता देते है, इसके लिए अभी अलग से छान बिन या रिसर्च करने की आवश्यकता नहीं है क्यूंकि शायद बाकि के शोध करने से शिक्षा का स्तर और ज्यादा खराब ही मिलेगा। खैर गुजरात में साक्षरता का आंकड़ा 2001 में 69.14 फीसदी था जो 2011 में बढ़कर 78.03 फीसद हो गया था। सरकारी आंकड़े को अगर मान भी लिया जाए तो विकास का दम भरने वाला राज्य गुजरात अभी भी कई राज्यों से भी काफी पीछे है।

    भारत की अन्य राज्यों की तुलना में गुजरात की शिक्षा व्यवस्ता बहुत खराब है। रिपोर्टों को पढ़कर लगता है शिक्षा के नाम पर यहां भी अन्य राज्यों की तरह मात्र लीपापोती हुई है। ताजा रिपोर्ट के अनुसार इस समय गुजरात 16वें स्थान से गिर कर 18वें स्थान पर आ गया है। स्कूलों में बच्चों के दाखिलों की संख्या बढ़ी तो है लेकिन पर्याप्त साधनों के अभाव में 11 से 14 साल के 5 फीसदी बच्चे स्कूल जाने में समर्थ नहीं है।

    इस मामले में सरकार के दावों और जमीनी हकीकत में वैसा ही फर्क है जो प्राय भारत के हर राज्य की सरकारों के दावों में मिलता है। गुजरात के शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ों को देख लगता है मानों भारत में कहीं रामराज्य आया है तो वो एकमात्र गुजरात ही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 99.9 फीसदी स्कूल में लड़कियों के लिए अलग शौचालय और पीने के पानी की प्रायप्त सुविधा है जबकि 99.7 स्कूलों में बिजली है तो वहीं 70.7 फीसदी स्कूलों में कंप्यूटर लैब्स हैं।

    यह आंकड़े पांच साल पहले के है और सरकार को यकीन है कि बीते पांच सालों में इन आंकड़ों में और सुधार भी आया है। लेकिन सरकार के सभी बातों से भरोसा उस वक्त उठ जाता है जब हम कागजो के बजाए यह सब हकीकत में ढूंढ़ना शुरू कर देते है। आंकड़ों और हकीकत में उतना ही फर्क है जितना की काल्पनिक कहानी और वास्तविकता में होती है।

    शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था ‘प्रथम शिक्षकी’ के अनुसार सरकारी आंकड़े उनके संस्था के आंकड़ों के साथ मेल नहीं खाते है। सर्वे में कई हैरान कर देने वाले तथ्य सामने आये है। सर्वे का दावा है कि 75 फीसदी स्कूलों में कंप्यूटर लैब्स तो है लेकिन सिर्फ 31.5 फीसदी स्कूलों में ही यह चलने की हालत में है।

    2016 के रिपोर्ट के अनुसार तस्वीर कुछ और ही है। सर्वे यह भी कहती है कि सरकारी स्कूलों में पांचवी कक्षा में 47 फीसदी छात्र और आठवीं कक्षा में पढ़ रहे 23.4 फीसदी छात्रों का शिक्षा स्तर इतना कमजोर है कि वो कक्षा दो की गुजराती भाषा की पुस्तक पढ़ने में असमर्थ है।
    गणित की हालत तो इस राज्य में और खराब है। कक्षा पांचवी के 83.9 फीसदी तथा कक्षा आठवीं के 65.2 फीसदी छात्रों को सामन्य गुणा भाग भी नहीं पता है।

    सवाल सिर्फ गणित का ही हो नहीं है बल्कि गुजराती भाषा का भी है। सर्वे की बातों पर यकीन करे तो गुजराती भाषा खतरे में पड सकती है। दरअसल गुजरात बोर्ड द्वारा आयोजित होने वाली एसएससी की परीक्षाओं में गुजराती भाषा विषय में नतीजे लगातार खराब होते जा रहे है। छात्रों को भाषा की मामूली समझ भी नहीं है जिसके अभाव में उनको दूसरे विषय समझने में भी मुश्किलें आ रही हैं।

    उंगली गुजरात बोर्ड की पाठ्य पुस्तकों की गुणवत्ता पर भी उठ रहीं है। यहां शिक्षकों की भी भारी कमी है। 2014-15 के आंकड़ों के अनुसार यहां प्राथमिक स्कूलों में 12,281 शिक्षकों की ज़रूरत थी जबकि अहमदाबाद ज़िले में 11 फीसदी और कच्छ ज़िले में 24.70 फीसदी शिक्षकों की कमी थी। शिक्षक है भी तो वो ज्ञानवान नहीं है अपने विषय की समझ खुद अध्यापकों को ठीक से नहीं है।

    तमाम आंकड़ों को देखने के बाद लगता है कि विकास के मुद्दे पर गुजरात भले पास हो गया हो लेकिन शिक्षा के मुद्दे पर अभी फ़ैल ही है। वैसे सवाल यह भी है कि क्या विकास को शिक्षा से या शिक्षा को विकास से अलग किया जा सकता है? अगर नहीं तो क्या गुजरात सच में एक विकसित राज्य बन पाया है।