आज मेने फिर से सत्ता का वो भाव देखा हैं,
लगता हैं किसी ने गुजरात में छल से भरा दावं फेका हैं,
उम्मीद हैं घायल, मन में मृग तृष्णा का भाव हैं,
फिर भी कुछ लोग कहते हैं, क्या तुमने कभी चुनाव देखा हैं।
वो कहते हैं ना, तेरा कमाल तू जाने मुझे तो सब कमाल लगता हैं, सब धमाल लगता हैं, कुछ इसी तरह का हाल इस समय गुजरात में हो रहे विधानसभा चुनाव के दौरान देखने को मिल रहा हैं, जहां राहुल गाँधी ना जाने कौन सी संजीवनी बूटी ले आए हैं जिसने गुजरात की राजनीति में सालों से मूर्छित पड़ी कांग्रेस के शरीर में प्राण से फूंक दिए हैं। यदि कभी गौर किया हो तो आपको ज्ञात होगा एक छोटा सा अंतर होता हैं “उपहास” और “परिहास” शब्द में परन्तु स्मरण रखना आवश्यक हैं, केवल शब्द में नाकि उनके अर्थ में, शायद ना जाने कितनी बार राहुल का सबके सामने उपहास किया गया, उनको अलग अलग नाम से पुकारा गया। लेकिन इस बार गुजरात के विधानसभा चुनाव में उनका दूसरा रूप देखने को मिल रहा हैं, जिसने भाजपा के रंग और ढंग दोनों को बदल कर रख दिया हैं।
राहुल गाँधी ने शायद अब चुनाव में रंग जमा कर सियासी माहोल को गर्म कर दिया हैं, राहुल गांधी ने गुजरात में जाति आंदोलन से निकली त्रिमूर्ति अल्पेश, जिग्नेश और हार्दिक को अपने साथ लेकर भाजपा को चारो खाने चित कर दिया हैं, इन तीनों को अपने साथ लेने से कांग्रेस की विधानसभा चुनाव में पकड़ मजबूत जा रही हैं, शायद कोई ताज्जुब की बात नहीं होगी अगर कांग्रेस भाजपा को चुनावी युद्ध में परास्त कर देती हैं, इन तीनों नेताओं के सामाजिक मतों को देखें तो करीब 70 फीसदी से ऊपर की हिस्सेदारी है।
आपको बता दें कांग्रेस पार्टी और राहुल गाँधी शायद अब यह बात तो समझ ही गए हैं अगर चुनाव में सत्ता को अपने नाम करना हैं तो हिन्दुओ को अपनी और करना आवयशक हैं इसलिए शायद अब तक राहुल की जहां भी रैलियां हुई हैं, वहां राहुल ने भगवान के दर पर माथा जरूर टेका है। क्यूंकि 22 साल पहले भाजपा ने इसी मूड के दम पर चुनाव जीता था और कांग्रेस अभी तक घर वापसी करने में नाकाम रही है।