गुजरात विधानसभा चुनाव अपने चरम सीमा पर है। राजनेता इस युद्ध को जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते है। जनता तक पहुँचने के लिए दोनों ही पार्टियों के वरिष्ठ राजनेता ताबड़तोड़ रैलिया कर रहे है। जनता को रिझाने की कोशिश दोनों तरफ से लगातार हो रही है। बीजेपी इस चुनाव को हर हाल में जीतना चाहती है लेकिन इस बार मुकाबला इतना आसान नहीं है।
सबसे बड़े समर्थक और गुजरात में बहुसंख्यक आबादी मानी जाने वाली पटेल समाज का समर्थन बीजेपी खो चुकी है। अब इस हालात में पार्टी की सारी उम्मीद आदिवासियों के इर्द गिर्द घूम रही है शायद यहीं कारण है कि पीएम मोदी से लेकर अमित शाह तक सबका ध्यान विशेष रूप से आदिवासी समाज की तरफ है।
बीजेपी चुनाव में आदिवासियों के मुद्दों को सुन भी रही है और उनका समाधान निकालने का आश्वासन भी दे रही है। मोदी आदिवासी समुदायों के मंदिरों और तीर्थ स्थलों के दौरे कर रहें हैं। अब ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी हैं कि क्या यह सब कुछ हृदय की सच्ची भावना और धार्मिक आस्था के साथ किया जा रहा है या इसके पीछे भी कोई चुनावी स्टंट है? बीजेपी के लिए क्यों आदिवासियों के प्रत्येक मुद्दे इतने अहम हो गए है?
रविवार का दिन होने के बावजूद पीएम मोदी और अमित शाह आदिवासी इलाकों के दौरे कर रहे है। कल पीएम मोदी ने आदिवासियों को रिझाने के लिए भरूच जिले का दौरा किया तो वहीं अमित शाह की रैली में आदिवासी समुदाय केंद्र में नजर आए। अपने एक ट्वीट में उन्होने कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए कहा कि “एक तरफ कांग्रेस का आदिवासियों के उत्थान के लिए ‘जीरो बजट’ और दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी की गुजरात सरकार का 67 हजार करोड़ रुपये का आवंटन, इससे कोई भी बता सकता है कि विकास किसको कहा जाता है”
एक तरफ कांग्रेस का आदिवासियों के उत्थान के लिए ‘जीरो बजट' और दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी की गुजरात सरकार का 67 हजार करोड़ रुपये का आवंटन, इससे कोई भी बता सकता है कि विकास किसको कहा जाता है। pic.twitter.com/LQErlgCNUj
— Amit Shah (@AmitShah) December 3, 2017
इस चुनाव में आदिवासी समाज क्यों है महत्वपूर्ण
आदिवासी समुदाय किसी भी ख़ास पार्टी के साथ नहीं जुडी रही है। वो ना तो किसी विशेष पार्टी कि मतदाता है ना ही उनका किसी पार्टी की तरफ झुकाव है। अगर चुनाव के गणित पर गौर करे तो पाएंगे कि इस युद्ध में यह समाज किसी को जीताने और हराने की क्षमता रखती है।
यहां आदिवासी वोटरों की संख्या लगभग 12 फीसदी है जबकि इस क्षेत्र में आदिवासियों के लिए 27 सीटें आरक्षित हैं। यह लोग किसी भी पार्टी के परंपरागत मतदाता नहीं रहे हैं तथा गुजरात की 182 सीटों में से 40 सीटों पर इनका प्रभाव देखने को मिलता है।
मुकाबला इसलिए भी जोरदार है क्यूंकि पिछले चुनाव में इन क्षेत्रों से दोनों ही पार्टियों का प्रदर्शन लगभग एक जैसा ही रहा था। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासी क्षेत्रों में 8 और बीजेपी ने 7 सीटें जीती थीं।