देख वासुदेव तेरी नगरी का क्या हाल किया है,
5 सालों से खमोश बैठें लोगों ने आज फिर धर्म के नाम पर सवाल किया है !!
परन्तु यह प्रश्न है बड़ा गंभीर इसका उत्तर ना सरल होगा,
कीचड़ है यह राजनीती मान लो
जो इसको समझ पाया वहीं एक सुगन्धित कमल होगा ।
गुजरात और बीजेपी यदि दोनों शब्दों को साथ जोड़कर भी अगर बोला जाये तो शायद यह गलत नहीं होगा क्यूंकि यदि आप राजनीति के विषय में अगर सामान्य ज्ञान भी रखते तो आप गुजरात के पिछले 2 दशको के शंदर्भ में अनिभिज्ञ नहीं होंगे। गुजरात जिसने देश को इतिहास दिया, गुजरात जिसने देश को बड़े से बड़े युग और लोह पुरुष दिए, गुजरात जिसने देश को विकास से परिभाषित कराया।
सामान्य तौर पर शायद इसी तरह के शब्दों और भाषण को हम सुनते हैं चुनाव के समय, जो पूर्ण रूप से गुजरात की महिमा का बखान करते हैं। परन्तु फिर आज प्रश्न यह खड़ा होता है कि क्यों बीजेपी विकास का हाथ छोड़ फिर वही आधारहीन और यथार्थहीन राजनीति को अपनाने में सुसज्जित सी प्रतीत हो रही है।
हर बार क्यों प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्कता होती हैं। क्या सूर्य का प्रकाश उसका प्रमाण नहीं, क्या उसका तेज़ उसकी शक्ति का प्रतिक नहीं। ठीक उसी तरह बीजेपी के शासन में किये गए कार्य क्या विकास के मापदंड नहीं और यदि अगर हैं, फिर यह बहुत बड़ा प्रश्न उठता है कि क्यों फिर बीजेपी जैसी समृद्ध संगठन को धर्म और जात को आधार बनाकर अपने ही गढ़ में इस प्रकार चुनाव लड़ने की आवयश्कता पड रही है।
परन्तु यदि भविष्य में आने वाले चुनावी समीकरणों के आधार से देखा जाये तो गुजरात के चुनाव के नतीजे ही भारतीय जनता पार्टी की नींव को हानि या समृद्ध करने का कार्य करेंगे। गुजरात को आरम्भ से ही राजनीती का केंद्र माना जाता है और यह बात सही भी है क्यूंकि न सिर्फ भारत के बल्कि विश्व के सबसे ताकतवर नेताओ में से एक भारतीय प्रधानमंत्री का राजनीतिक सफर गुजरात से ही तो शुरू हुआ था ।
और जिस प्रकार अब गुजरात का माहोल है उसे चंद शब्दों में बयां किया जाये तो …..
सालों से वह रूठे हैं …चलो आज उनको मनाते है
दो हिन्दू घर तुम सजाओ …कुछ मुस्लिम घर अब हम सजाते हैं ।