Mon. Dec 23rd, 2024
    गुजरात विधानसभा चुनाव

    सियासत का अब खेल होना है,
    दूरियां मिटा अब राजनीतिक दलों का मेल होना है,

    अकसर यूहीं बदनाम करते है लोग इस सियासत को,
    अब तो चुनावों के बहाने राजनीति की हर गली में प्रेम होना है।

    दरअसल, ऐसा ही कुछ हाल इस समय देश की राजनीति के केंद्र बिंदु कहे जाने वाले गुजरात का, जहाँ कभी एक दूसरे के सबसे बड़े विरोधी, आज हाथ से हाथ मिलाए चुनावी मैदान में साथ खड़े नज़र आ रहे है। आपको बता दें यहाँ बात हो रही है कांग्रेस और गुजरात के विधानसभा चुनाव में रीढ़ बन चुके पटेल समुदाय की।

    एक समय था जब पटेल समाज को भाजपा का समर्थक माना जाता था, लेकिन वाक्य में प्रयोग हुए ‘था’ शब्द ने पुरे हालत को बयान कर दिया है, शायद यही वजह है कि अब गुजरात की राजनीति में सत्ता का वर्चश्व खत्म होता नज़र आ रहा है। आपको बता दें प्रधानमत्रीं नरेंद्र मोदी ने जब से गुजरात की सत्ता को छोड़, देश की सत्ता को हाथ में लिया है तबसे ही गुजरात में राजनीति की हवाओं का रुख कुछ बदला बदला सा नज़र आ रहा है।

    दरअसल, हार्दिक पटेल इस बार के विधानसभा चुनाव में खुद नहीं उतर रहे हैं, बल्कि उन्होंने अपने समर्थकों के लिए टिकट मांगा है, कांग्रेस द्वारा जारी की गई पहली लिस्ट में उन सीटों पर हार्दिक समर्थकों के बजाए अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए, पाटीदारों को यह पसंद नहीं आई और वह इसके विरोध में सड़क पर उतरकर कांग्रेस के लिए मुसीबत का सबब बनने लगे, जिसको देखते हुए कांग्रेस ने पाटीदारों द्वारा मांग की गई सीटों पर उम्मीदवार बदले उनमें सौराष्ट्र का जूनागढ़, सूरत के कामरेज और वरक्षा तथा भरूच शामिल हैं। सूरत के कामरेज और वरक्षा सीट पर हुआ बदलाव पाटीदार अनामत आंदोलन के लिए सबसे अहम माना जा रहा है।