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    कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी

    राजनीति में हर हार और जीत अपनी एक विशेष महत्व रखती है। हर जीत बड़ी होती है तथा कोई भी हार छोटी नहीं होती। हर चीज़ के अपने माईने है, अब चित्रकूट जीत की अगर बात करे तो यह हार बीजेपी के लिए एक बड़े सदमे जैसा है।

    मध्यप्रदेश विधान सभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का चित्रकूट जीत जाना बीजेपी के लिए जहां एक तरफ चेतावनी है तो वहीं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए भी किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है। इस बात पर बीजेपी को जरूर गौर करना चाहिए कि अपनी तमाम ताकत का इस्तेमाल करने के बाद भी तथा अपने दो सबसे प्रभावशाली मंत्रियों को इस चुनाव के प्रचार प्रसार में उतारने के बाद भी आखिर क्या वजह रह गयी कि इस हार का सामना करना पड़ा।

    यह हार बीजेपी को गुजरात विधान सभा चुनाव में महंगी पड़ सकती है। चित्रकूट की यह जीत डूबती हुई कांग्रेस पार्टी के लिए किसी सहारे से कम नहीं है। इस जीत के बाद मुकाबला अब बराबरी का होता हुआ नजर आ रहा है। बीजेपी भले ही इस समय पुरे देश में अपनी पार्टी के लिए जनता में दीवानगी की बात करे और कहे की देश का बच्चा-बच्चा बीजेपी का समर्थक है, किन्तु ये पार्टी हर तरफ से मिल रही हार को नकार नहीं सकती।

    इससे पहले कांग्रेस ने पंजाब की लोकसभा सीट गुरदासपुर पर भी जीत हांसिल की थी। इस उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सुनील जाखड़ ने भाजपा प्रत्याशी स्वर्ण सलारिया को तकरीबन एक लाख 93 हजार मतों से हराया था। बता दें की गुरदासपुर सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है। केरल की वेंगारा विधानसभा सीट भी उपचुनाव में बीजेपी को नहीं मिल सकी। यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) की घटक इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के उम्मीदवार केएनए खादर ने इस सीट से अपनी जीत का झंडा लहरा दिया था।

    दिल्ली में विधान सभा क्षेत्र के लिए हुए उपचुनाव में भी बीजेपी को हार ही नसीब हुई, इन सभी हारों से अगर बीजेपी सतर्क नहीं हुई तो आने वाला वक्त पार्टी के लिए मुसीबत भरा हो सकता है।