म्यांमार में सेना की दमानकारी नीति का शिकार हुए रोहिंग्या समुदाय ने देश छोड़कर दूसरे देशों में पनाह लेने का कदम उठाया था। छह साल पहले म्यांमार के रखाइन प्रान्त से कई रोहिंग्या भागकर अन्य देशों में गए थे। म्यांमार के सेना ने रोहिंग्या इलाकों को आगजनी कर दिया था। रोहिंग्या मुस्लिमों ने काम के लिए पश्चिम बंगाल जम्मू तक का सफर तय किया था।
रोहिंग्या मुस्लिमों ने बताया कि ‘वे मोबाइल टावर के निर्माण कार्य मे लेबर का काम करते हैं। वे सब जम्मू नरवाल बायपास के मोहल्ले में रहते हैं। उन्होंने कहा कि हाल ही में सरकार ने हमें आतंकवादी कहकर निशाना बनाना शुरू कर दिया था। उन्होंने हमें राज्य छोड़ने के लिए मजबूर किया और हम वहां से भाग निकले थे। अगर हम म्यांमार वापस जाएंगे तो वे हमें मार देंगे, कृपया हमें वहां वापस मत भेजिए।’
रोहिंग्या शरणार्थी शाहजहां ने दावा किया कि ‘2500 रोहिंग्या परिवार जम्मू में रहते हैं और नौकरी करते हैं। बहरहाल, स्थानीय जनता की धमकियों के कारण 1500 परिवार राज्य को छोड़कर चले गए हैं। हालांकि 1000 परिवार अब भी यही भय के माहौल में जी रहे है।’ जम्मू के इसी मोहल्ले के निवासी अब्दुल सुक्कुर के बताया कि ‘वह त्रिपुरा ट्रैन से आये थे और हम बांग्लादेश सीमा पार कर रगे थे जब बीजीबी ने हमें हिरासत में ले लिया था। मेरे वालिद बांग्लादेश में रहते हैं, वहां 15 लाख रोहिंग्या मुस्लिम है। हमारा भारत में स्वागत नही है और म्यांमार हमें मार डालेगा। हमारे रहने के लिए बांग्लादेश ही एक सुरक्षित स्थान है।’
मानवीय लिहाज से 6 पुरुषों, 9 महिलाओं और 16 बच्चो को जरूरतमंद चीजे मसलन खाद्य पदार्थ को बीएसएफ मुहैया कर रही है। बंगलादेशी मीडिया के मुताबिक भारतीय सीमा सुरक्षा बल के सैनिक जबरन रोहिंग्या मुस्लिमो को सीमा ओआर करवाकर बांग्लादेश में भेज रहे हैं।
हाल ही कि रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष की शुरुआत से ही भारत से तक़रीबन एक हज़ार से अधिक रोहिंग्या मुस्लिम बांग्लादेश की तरफ गए हैं। एक अधिकारी के मुताबिक रोहिंग्या मुस्लिमों में प्रत्यर्पण का भय था। संयुक्त राष्ट्र समेत कई अंतर्राष्ट्रीय संघठन भारत की आलोचना कर रहे हैं।