भारत के दो केंद्रीय मंत्री पाकिस्तान में आयोजित करतारपुर गलियारे के शिलान्यास समारोह में शरीक हुए थे। इस वक्त भारत की निगाहें पाकिस्तान के क़दमों और खालिस्तानी समर्थक ‘सिख फॉर जस्टिस’ के सीमा पार आगामी वर्ष आयोजित सम्मेलन पर है, जो गुरुनानक देव की 550 वीं सालगिरह पर आयोजित किया जायेगा।
ख़बरों के मुताबिक पंजाब के सिख जत्था के कई सदस्य भारत से पाकिस्तान इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए जायेंगे। भारत से अलग सिखों के लिए राष्ट्र का समर्थन करने वाले समूह के आयोजन में शरीक होंगे, पाकिस्तान सिख श्रद्धालुओं को आसानी से वीजा मुहैया करने की नीति तैयार कर रहा है।
एसएफजे को पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई का कथित समर्थक प्राप्त है। बीते अगस्त में ब्रिटेन में एक रैली का आयोजन कर एसएफजे ने ‘जनमत संग्रह 2020’ का ऐलान किया था। जनमतसंग्रह 2020 के तहत कई खालिस्तानी समर्थक समूहों का नेतृत्व एसएफजे कर रहा है, जो भारत से अलग सिखों के लिए एक राष्ट्र की मांग कर रहा है।
इस संगठन ने हाल ही में ऐलान किया कि वह लाहौर में एक स्थायी ऑफिस का निर्माण करेंगे, जहां साल 2020 में होने जनमत संग्रह के मतदान के लिए पंजीकरण होगा। यह पंजाब के सिखों के लिए एक सूचना केंद्र होगा। इसके बाद पाकिस्तान ने सिखों के लिए वीजा नीति में बहुत रियायत बरतने की बात कही है।
भारतीय सिख जब करतारपुर साहिब गुरुद्वारे पहुंचे तो उनका स्वागत खालिस्तान समर्थक नारों और पोस्टर से किया गया था। भारतीय सिखों के स्थान पर ही खालिस्तान समर्थकों को जन्म आस्था में ठहराया गया था। भारतीय अधिकारियों को लाहौर गुरुद्वारे में प्रवेश और भारतीय सिख श्रद्धालुओं से मिलने की अनुमति नहीं दी गयी थी। ख़बरों के मुताबिक खालिस्तान समर्थक गोपाल चावला जो अभी पाकिस्तान सिख प्रबंधक कमिटी का सचिव है, उसी ने भारतीय अधिकारियों को सिख श्रद्धालुओं से मिलने नहीं दिया था।
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा था कि करतारपुर गलियारे का खुलना पाकिस्तान की सरकार का सभी अल्पसंख्यकों के लिए चिंतन और महत्वता प्रदर्शित करता है और पाकिस्तान इस गलियारे को अल्पसंख्यकों के समर्थक के तौर पर देखता है। इस मसले की जानकारी रखने वाले व्यक्ति ने बताया कि भारत ने गलियारे की पहल की है लेकिन पाकिस्तान अब सारा श्रेय हड़प लेना चाहता है।
केंद्रीय सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि साल 1999 में दिवंगत अटक बिहारी वाजपयी के समय में लाहौर बस यात्रा के दौरान पहला प्रस्ताव रखा गया था लेकिन पाकिस्तान ने इसका श्रेय भी ले लिया था। उन्होंने कहा कि जब पाकिस्तान के अमेरिका के साथ रिश्ते बुरे दौर से गुजर रहे है तो आर्थिक तंगी और आईएमएफ के कारण पाकिस्तान भारत के साथ समबन्ध सुधारने की कोशिश कर कर रहा है।