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    अरुण जेटली

    एकबार फिर से सरकार आरबीआई की मदद से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के एकीकरण का कदम उठाने जा रही है। सरकार द्वारा कहा जा रहा है कि इसके बाद इन बैंकों का संचालन और भी आसान हो जाएगा व इसके रखरखाव के लिए सरकार पर पड़ने वाले बोझ में भी कमी आएगी।

    इसके पहले भी सरकारें वर्ष 2006 व 2012 में बैंकों के एकीकरण का काम कर चुकी हैं।

    क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में केंद्र की हिस्सेदारी 50%, प्रयोजक बैंक की हिस्सेदारी 35% व राज्य की हिस्सेदारी 15% की होती है। केंद्र सरकार अब क्षेत्रीय बैंकों का सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी बैंकों में विलय करवा कर उनकी संख्या को 56 से घटा कर 36 पर लाना चाहती है।

    इससे न सिर्फ बैंकों के रखरखाव में सहूलियत होगी बल्कि सरकार को भी इन बैंकों पर अभी की अपेक्षा कम ख़र्च करना पड़ेगा।

    इसी के साथ ही सरकार अब बैंक ऑफ बड़ौदा, देना बैंक व विजया बैंक को मिलाकर इसे एक वैश्विक स्तर की बैंक बनाने पर विचार कर रही है।

    संबन्धित अधिकारियों ने इस बाबत जानकारी दी कि बैंकों की संख्या 56 से घटा कर 36 करने पर बैंकों पर पड़ने वाले बोझ पर तो कमी आएगी ही, इसी के साथ कई अन्य फायदे भी नज़र आएंगे जैसे कि इन बैंकों का रखरखाव आसान हो जाएगा व मुद्रा का संचालन ज्यादा सुव्यवस्थित रूप से हो पाएगा ।

    इसके पहले भी सरकारें कई बार बैंकों के एकीकरण का कदम उठा चुकी है। मार्च 2005 में इन बैंकों की संख्या 196 थी जो 2006 में घटकर 133 रह गयी। इसके बाद यह संख्या और घटकर 105 हुई, इसके बाद में मार्च 2012 में इनकी संख्या को घटाकर 82 कर दिया गया।

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