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    दिल्ली पटाखों पर बैन प्रदुषण

    भारत में दीपावली का त्यौहार हर साल भारतीय तिथि के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। दीपावली को रोशनी का त्यौहार भी कहा जाता है। पटाखों और फूलझड़ियों के इस्तेमाल से इस पर्व की रौनक देखने लायक होती है।

    जहाँ एक ओर पटाखे खुशी और जश्न की भावना को दर्शाते हैं, वहीँ दूसरी ओर इनके इस्तेमाल से पर्यावरण में भयावह बदलाव आये हैं। पटाखों को जलाने से इनसे जहरीली गैसें निकलती हैं, जो पर्यावरण की अन्य गैसों के साथ मिलकर इसे प्रदूषित बनाती हैं।

    उदहारण के तौर पर यदि हम राजधानी दिल्ली को देखते हैं, तो पिछले कई सालों से यह शहर विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाता है। दिल्ली में प्रदुषण के इस स्तर के कई कारण हैं, जिनमे लाखों गाड़ियां, फैक्टरियां, घनी आबादी आदि कई कारण हो सकते हैं।

    इन सबके अलावा एक कारण जिसकी वजह से कम समय में प्रदुषण स्तर कई गुना बढ़ जाता है, वह है पटाखों का उपयोग। अगर साल 2016 की बात करें, तो दिवाली के दिन सुबह दिल्ली की वायु में हानिकारक पदार्थों का घनत्व 2.5 था, जो उसी दिन रात को बढ़कर 10 के पार पहुँच गया था। इसका मतलब, एक दिन में दिल्ली की वायु में प्रदुषण चार गुना बढ़ गया था।

    दिल्ली प्रदुषण दिवाली 2016

    दिवाली के तुरंत बाद दिल्ली की वायु स्थिति को देखते हुए सरकार सभी स्कूलों और कार्यकालों को कुछ दिन बंद रहने के आदेश दिए। इसके अलावा लोगों को आदेश दिए गए कि वे बिना सुरक्षा मास्क के घरों से बाहर न निकलें।

    सुप्रीम कोर्ट ने किया बैन

    पिछले साल से सबक लेते हुए इस साल सुप्रीम कोर्ट ने राजधानी दिल्ली में किसी भी प्रकार के पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है। हालाँकि लोगों को पटाखे फोड़ने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। अगर किसी के पास पिछले साल के पटाखे बचे हैं, तो वे पटाखे चला सकते हैं।

    इसके अलावा ऑनलाइन पटाखे बेचने या खरीदने पर भी कोई फैसला नहीं लिया गया है। अदालत के इस फैसले का बहुत लोगों ने बहिष्कार किया है। लोगों का मानना है कि यह फैसला सिर्फ हिन्दू पर्वों पर निशाना है। कुछ लोगों का कहना है कि दिवाली साल में सिर्फ 1 दिन आती है, जबकि बाकी 364 दिनों के लिए कोई फैसला नहीं लिया गया है।

     

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    इस फैसले पर पटाखा व्यापारियों को भी खासा घाटा हो सकता है। ज़ाहिर है इससे पहले पटाखों पर कोई प्रतिबन्ध नहीं था, जिसके चलते बड़ी मात्रा में व्यापारियों ने पटाखे आदि खरीद लिए थे।

    इसके विपरीत अन्य बड़ी मात्रा में लोगों ने अदालत के इस फैसले का सम्मान किया है।

    वातावरण प्रदुषण इकाई के चेयरमैन भूरे लाल ने इस फैसले का समर्थन करते हुए कहा, ‘यह कदम सराहनीय है। इस समय तापमान के गिरने और फसलों के जलाने से दिल्ली की वायु पहले ही बहुत प्रदूषित है। दिवाली पर पटाखे इस समस्य को बढ़ावा ही देंगे।’

    क्या पटाखों पर बैन पर्याप्त है?

    अदालत द्वारा इस पटाखों पर प्रतिबन्ध लगाने के बाद हमें यह पूछना चाहिए कि क्या इससे मामला सुलझ जाएगा?

    2008 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण विभाग द्वारा की गयी एक जांच में पता चला था कि दिल्ली में कारखानों और फैक्टरियों की वजह से वायु प्रदुषण में 59 फीसदी का इजाफा होता है।

    इसके अलावा दिल्ली की सड़कों पर चलने वाले वहां इसमें 18 फीसदी भागीदार हैं। इसके साथ पंजाब और हरियाणा में फसलों को जलना भी इस समस्या में तेल झोकने का काम करते हैं।

    वाहनों द्वारा फैलाये गए प्रदुषण को रोकने के लिए मौजूदा दिल्ली सरकार ने पिछले साल ओड-इवन का फार्मूला अपनाया था। इसके तहत एक दिन सड़कों पर ओड संख्या वाली गाड़ियां चलेंगी और अगले दिन इवन संख्या वाली। इस योजना से काफी हद तक प्रदुषण स्तर पर काबू पाया गया था।

    जहाँ एक ओर सरकार ने इस छेत्र में कदम उठाये हैं, वहीँ दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने इसमें इससे पहले कोई ठोस कदम नहीं उठाया था। इस कारण से भी लोगों को इस फैसले से नाराजगी है।

    प्रदुषण को कैसे रोका जाए?

    इस बात में कोई दोराय नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से दिल्ली में वायु प्रदुषण पर रोक लगेगी। लेकिन हमें जरूरत है कि इस समस्या पर कोई स्थायी कानून बनाया जाए।

    दिल्ली में वाहनों की संख्या पर रोक लगायी जाए। ज्यादा से ज्यादा लोगों को सरकारी वाहनों का इस्तेमाल करने को कहा जाए।

    फैक्टरियों से निकलने वाले गंदे धुंए का अच्छे से परिक्षण किया जाए। इस समय ऐसी बहुत से तकनीकें हैं, जिनसे निकलने वाले धुंए को साफ़ किया जा सकता है। फैक्टरियों को सख्त निर्देश दिए जाएँ और इसकी जांच के लिए विशेष दल का गठन किया जाए।

    इसी के साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों को विधुत वाहनों का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया जाए। इस मामले में लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार विभिन्न पुरुष्कार आदि की योजना बना सकती है।

    इसके अलावा लोगों को वायु प्रदुषण के खिलाफ जागरूक करना बहुत जरूरी है। स्कूलों में बच्चों को इस विषय में जानकारी देनी चाहिए। टीवी और अख़बारों के जरिये घर में बैठी महिलाओं और पुरुषों को इसके प्रति जागरूक करना चाहिए।

    वायु प्रदुषण इतनी बड़ी समस्या है कि जब तक आम जन इसे रोकने के लिए प्रयास नहीं करेंगे, तब तक इसपर काबू नहीं पाया जा सकता है।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।