आरटीआई सूचना के अधिकार के तहत 108 कैरट कोहिनूर हीरे को लाहौर के महाराजा ने ब्रिटेन की महारानी के समक्ष त्यागा था ना कि सुपुर्द किया था। लुधियाना के रहने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट ने आरटीआई के माध्यम से पूछा कि कोहिनूर ब्रिटेन की महारानी को तोहफे में दिया था या आत्मसमर्पण के दौरान दिया था।
एएसआई का कोहिनूर पर जवाब भारत सरकार के साल 2016 में शीर्ष अदालत में दिए बयान के उलट है। सरकार ने कहा था कि कोहिनूर हीरे के अनुमानित कीमत 200 मिलियन डॉलर है। सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि कोहिनूर को ब्रिटिश हुकूमत ने न तो चोरी किया था और न ही जबरन छीना था। पंजाब के तत्कालीन महाराजा ने ईस्ट इंडिया कंपनी को भेंटस्वरूरप दिया था।
आरटीआई कार्यकर्ता रोहित सबरवाल ने बताया कि उन्होंने एक माह पूर्व प्रधानमंत्री कार्यालय में आरटीआई फाइल की थी। उन्हें नहीं मालूम था कि इसकी जानकारी एएसआई देगी। रिकॉर्ड के मुताबिक साल 1849 में लार्ड डलहौज़ी और महाराजा दुलीप सिंह के मध्य लाहौर समझौता हुआ था। पंजाब के महाराजा ने इंग्लैंड की महारानी के समक्ष कोहिनूर हीरे का समर्पण किया था।
कोहिनूर 14 वीं शताब्दी में दक्षिणी भारत में पाया गया था। यह आकार में बड़ा व बेरंग हीरा था जिसे ‘माउंटेन ऑफ़ लाइट’ यानी रोशनी का पर्वत कहा गया। यह कीमती हीरा ब्रितानी हुकूमत के वक्त उनके हाथों में पड़ गया। ये भारत सहित चार देशों में ब्रिटेन की हुकूमत का प्रतिक था।
आरटीआई के जवाब के मुताबिक कोहिनूर को शाह सूजा उल मुल्क से महाराजा रंजीत सिंह ने हासिल किया था। जिसे लाहौर के महाराजा ने ब्रिटेन की महारानी के हवाले किया था। लाहौर के महाराजा ने अपनी इच्छा से ब्रिटेन की महारानी को कोहिनूर नहीं दिया था बल्कि समझौते के तहत उन्हें यह मज़बूरन देना पड़ा था।
रोहित सबरवाल ने बताया कि वह हाल ही में इंग्लैंड के म्यूजियम में गए थे। वहां लिखी कोहिनूर की जानकारी के अनुसार हीरा तोहफा था। इसलिए भारत वापस आने के बाद उन्होंने आरटीआई के माध्यम से जानकारी हासिल की। उन्होंने कहा एएसआई और भारत सरकार के जवाब बिलकुल उलट है इसलिए केंद्र सरकार को इस मसले पर गौर फरमाना चाहिए।