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    कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर का बच्चों पर ज्यादा असर नहीं होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन और ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ने अपने सीरोप्रेवैलेंस सर्वे में इस बात का दावा किया है। कोरोना के खतरनाक वैरिएंट को देखते हुए भारत में तीसरी लहर की आशंका व्यक्त की जा रही है, लेकिन अब नए अध्ययन में विश्व स्वास्थ्य संगठन और ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज का दावा राहत देने वाला है।

    सर्वे में वयस्कों के मुकाबले बच्चों में सार्स-सीओवी-2 की सीरो पॉजिटिविटी रेट ज्‍यादा थी। यह सर्वेक्षण देश के पांच राज्यों में किया गया था। समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक सार्स सीओवी-2 की सीरो पॉजिटिविटी रेट बच्चों में वयस्कों की तुलना में ज्‍यादा पाई गई इसलिए ऐसी संभावना नहीं है कि भविष्य में कोविड-19 का मौजूदा स्वरूप दो साल और इससे अधिक उम्र के बच्चों को ज्‍यादा प्रभावित करेगा।

    ‘बच्चो पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं’

    डॉक्टर पुनीत मिश्रा ने कहा कि जिस प्रकार की रिपोर्ट आई है, उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि अगर भविष्य में कोई तीसरी लहर आती है तो बच्चों पर इसका असर प्रतिकूल होगा। बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है। क्योंकि जिस स्तर पर बड़ों में संक्रमण है, लगभग उतनी ही संख्या में बच्चे भी संक्रमित हुए हैं। डॉक्टर पुनीत ने कहा कि अगर वायरस में बहुत ज्यादा म्यूटेशन होता है, तब बच्चे ही नहीं बड़ों को भी उतना ही खतरा है।

    गोरखपुर में सबसे अधिक पॉजिटिव

    एम्स के इस सर्वे में यूपी के गोरखुपर को भी शामिल किया गया था। डॉक्टर पुनीत ने कहा कि गोरखपुर में सीरो सर्विलांस दर बहुत हाई पाया गया है। यहां पर कुल सीरो पॉजिटिव 87.9 पर्सेंट पाया गया। 2 से 18 साल के बीच में यह पॉजिटिव दर 80.6 पर्सेंट और 18 साल से ऊपर यह 90.3 पर्सेंट पाया गया। डॉक्टर ने कहा कि इतने सीरो पॉजिटिव पाए जाने के बाद थर्ड वेव नहीं आनी चाहिए।

    सरकार तीसरी लहर को लेकर सतर्क

    फि‍र भी सरकार तीसरी लहर को लेकर सतर्क हो गई है। सरकार ने अपने दिशा-निर्देशों में कहा है कि कोरोना के वयस्क रोगियों के उपचार में काम आने वाली आइवरमेक्टिन, हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन, फैविपिराविर जैसी दवाएं और डाक्सीसाइक्लिन व एजिथ्रोमाइसिन जैसी एंटीबायोटिक दवाएं बच्चों के इलाज के लिए मुफीद नहीं हैं। सरकार ने बच्चों में संक्रमण के आंकड़े जमा करने के लिए राष्ट्रीय पंजीकरण की सिफारिश भी की है।

    सरकार का कहना है कि बच्चों की उचित देखभाल के लिए स्वास्थ्य अधिकारियों को क्षमता बढ़ाने के काम शुरू कर दिए जाने चाहिए। बच्चों के अस्पतालों में कोरोना संक्रमित बच्चों के लिए अलग बिस्तरों की व्यवस्था की जानी चाहिए। सरकार की ओर से जारी गाइड लाइन में यह भी कहा गया है कि कोविड अस्‍पतालों में बच्चों की देखभाल के लिए अलग क्षेत्र बनाया जाना चाहिए जहां बच्चों के साथ उनके माता-पिता को आने जाने की इजाजत हो।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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