सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को कोरोना महामारी के कारण मृतकों के परिजनों को मिलने वाले मुआवजा संंबंधित याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई पूरी हो गई और फैसला सुरक्षित रखा गया है। कोर्ट ने सभी पक्षों को लिखित दलील जमा कराने के लिए तीन दिन का समय दिया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मृत्यु प्रमाणपत्र की प्रक्रिया सरल बनाने पर विचार करने के साथ कहा है कि जिन्हे प्रमाणपत्र जारी हो चुका है उसमें भी सुधार की व्यवस्था की जाए ताकि परिजनों को घोषित लाभों का फायदा मिल सके।
कोर्ट में केंद्र की ओर से हलफनामा दिया गया जिसमें केंद्र ने मुआवजा देने को लेकर असमर्थता जताई। केंद्र का कहना है कि इस तरह का भुगतान राज्यों के एसडीआरएफ से किया जाता है और यदि हर मृत्यु के लिए 4 लाख रुपये का भुगतान किया जाएगा तो उनका पूरा फंड खत्म हो जाएगा और कोरोना के साथ साथ बाढ़, चक्रवात जैसी आपदाओं से भी लड़ पाना असंभव हो जाएगा।
याचिकाकर्ता ने की है ये मांग
बता दें कि वकील गौरव कुमार बंसल और रीपक कंसल ने याचिका दाखिल की जिसमें कहा गया कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत आपदा के कारण मृतकों के लिए सरकारी मुआवजे का प्रावधान है। पिछले साल केंद्र ने सभी राज्यों को महामारी कोविड-19 के कारण मरने वालों को 4 लाख रुपये मुआवजे की बात कही थी जो इस साल नहीं किया गया। कोरोना संक्रमितों को मरने के बाद अस्पताल से सीधे अंत्येष्टि के लिए ले जाया जाता है और इनके मृत्यु प्रमाणपत्र में ये नहीं लिखा रहता है कि मृत्यु का कारण कोविड-19 था। ऐसे में यदि मुआवजे का स्कीम होता है तो मुश्किलें आएंगी। इस पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण और एम आर शाह की बेंच ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।
187 पेज के एफिडेविट में क्या कहा गया
केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा कि हर कोरोना संक्रमित मरीज की मौत पर मुआवजा केंद्र और राज्यों के वित्तीय सामर्थ्य से बाहर है। 187 पेज के एफिडेविट में केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों पर पहले से आपदा की वजह से वित्तीय बोझ बढ़ गया है। गृह मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि आपदा कानून के तहत प्राकृतिक आपदा जिसमें कुल 12 जैसे भूकंप, बाढ़ जैसी आपदा है। जिसमें राज्य आपदा राहत कोष के तहत किसी की मौत पर 4 लाख रुपये दिए जाते हैं। कोरोना महामारी उससे अलग है।