नई दिल्ली, 5 जुलाई (आईएएनएस)| सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कोच्चि के मारादु क्षेत्र में पांच तटीय पॉश अपार्टमेंट परिसरों में 400 फ्लैटों की अनदेखी से संबंधित एक मामले की सुनवाई की। शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के काम में लगे वरिष्ठ वकीलों ने धोखाधड़ी की है।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और नवीन सिन्हा की पीठ ने याचिकाकर्ताओं और उनके वरिष्ठ वकीलों की आलोचना करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय की छुट्टियों के दौरान एक अन्य पीठ से स्थगन आदेश प्राप्त किया था।
इससे पहले 10 जून को घरों के मालिकों को राहत देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने 400 फ्लैटों को ढहाने पर छह हफ्तों तक रोक लगा दी।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने इस मामले में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ताओं पर निशाना साधते हुए कहा, “उस पीठ को इस मामले पर बिल्कुल भी विचार नहीं करना चाहिए था।”
न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, “क्या हमें आपके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करनी चाहिए? मैंने विशेष रूप से विध्वंस पर रोक को ठुकरा दिया था और फिर आप दूसरी पीठ के पास चले गए। इस धोखाधड़ी में तीन से चार वरिष्ठ वकील शामिल हैं। क्या आपके लिए पैसा ही सब कुछ है?”
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और अजय रस्तोगी की एक अवकाशकालीन पीठ ने बाशिदों के एक समूह द्वारा दायर एक रिट याचिका पर विचार करते हुए आदेश पारित किया था, जिसमें दावा किया गया था कि 8 मई को विध्वंस के आदेश को देखते हुए शीर्ष अदालत ने उनके तर्क नहीं सुने थे।
अदालत ने मामले को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ताओं को आगे और आंदोलन न करने की चेतावनी दी।
गौरतलब है कि मई में सर्वोच्च न्यायालय ने केरल में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद एर्नाकुलम जिले के मारादू क्षेत्र में बने सभी अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था।
वहीं, रिट याचिकाकर्ता घर मालिकों ने कहा कि उन्हें कोई अवसर दिए बिना ही रिपोर्ट पेश की गई थी। याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने केरल के 10 तटीय जिलों के बारे में तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजनाओं (सीजेडएमपी) को अपनी मंजूरी दे दी है। हालांकि यह मंजूरी अदालत के समक्ष लंबित थी।
इन भवनों के निर्माण की अनुमति 2006 में दी गई थी। उस वक्त मारादू एक पंचायत थी। दो अपार्टमेंट के बिल्डरों ने मई में पारित फैसले को चुनौती देने वाली समीक्षा याचिका दायर की और तर्क दिया कि अदालत ने केरल तटीय सुरक्षा प्रबंधन प्राधिकरण को गुमराह किया।
समीक्षा याचिकाओं में यह भी कहा गया कि अदालत द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय समिति ने उनकी उचित सुनवाई नहीं की। अब शीर्ष न्यायालय ने विध्वंस का आदेश देते हुए कहा कि राज्य में बाढ़ और भारी बारिश के खतरे के मद्देनजर अवैध निर्माण की मंजूरी नहीं दी जा सकती।