नई दिल्ली, 2 जून (आईएएनएस)| हर साल 12 जून को जब दुनिया बालश्रम के खिलाफ विश्व दिवस मनाता है, भारत अपने नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी का अभिनंदन करता है। एक ऐसा व्यक्ति, जिन्होंने 88,000 बंधुआ और तस्करी कर लाए गए बच्चों को छुड़ाया। वह अपने इन शब्दों पर अमल करते हैं किहरेक का बचपन महत्व रखता है।
सत्यार्थी ने बालश्रम और बंधुआ मजदूरी उन्मूलन के लिए अपने संघर्षपूर्ण अभियान की शुरुआत 1980 में ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के गठन के साथ की थी।
6 जून, 1998 को जेनेवा में जब अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के आयोजन में 150 देशों के प्रतिनिधि जुटे थे, सत्यार्थी ने 600 बच्चों और कुछ वैश्विक बाल अधिकार कार्यकर्ताओं के जुलूस का नेतृत्व किया था। यह वह दौर था, जब बालश्रम को आमतौर पर न्यायोचित ठहराया जाता था।
सत्यार्थी के संगठन ने नारे बुलंद किए और बालश्रम पर फौरन रोक लगाने की अपील वाले बैनर लहराए। इसका 2,000 से ज्यादा प्रतिनिधियों द्वारा स्वागत किया गया। इसके बाद 12 जून को आईएलओ का ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ, जिसमें 182 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे।
इस मौके पर 65 वर्षीय सत्यार्थी ने कहा था, “हम सभी की अगुवाई करने वाला 14 साल का लड़का खोखन बचपन में अपना एक पैर गंवा चुका है। 2,000 प्रतिनिधियों ने जिस तरह आवाज बुलंद की है और जैसा नजारा पेश किया है, वैसा उत्साहपूर्ण स्वागत अभी भी हमारे जेहन में गूंज रहा है।”
उनकी अनथक सक्रियता, संवाद और गहरी करुणा को ध्यान में रखते हुए आईओएल ने 12 जून को ‘विश्व बालश्रम निषेध दिवस’ घोषित किया था।
संधिपत्र-182 बाल गुलामी, बंधुआ बाल मजदूरी और मजदूर के तौर पर बच्चों के शोषण के सभी रूपों पर प्रतिबंध लगाता है। वर्ष 1998 से आईएलओ प्रत्येक वर्ष 12 जून को सरकारों, कर्मचारियों, नियोक्ताओं, संगठनों और नागरिक समाज को विश्व के करोड़ों बाल मजदूरों की दशा को उजागर करने के लिए एक-दूसरे के करीब लाता है।
इस दिवस के अलावा भारत में 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है। ताइवान में बाल दिवस 4 अप्रैल को, जापान में 5 मई को और एक जून को अंतर्राष्ट्रीय बाल संरक्षण दिवस मनाया जाता है।
सत्यार्थी हर बच्चे की मुक्ति के लिए अपना संघर्ष लगातार जारी रखे हुए हैं और विश्व के सर्वाधिक सक्रिय व प्रभावशाली नोबेल विजेता के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं।