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    केरल के उच्च शिक्षा मंत्री के.टी जलील का अप्रत्याशित इस्तीफा पीनारायी विजयन कि सरकार में कुछ गड़बड़ी होने की आशंका जताता है। के.टी जलील का इस्तीफा एक दिन बाद आया है जब उन्होंने केरल उच्च न्यायालय में लोकायुक्त के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी। हालात तब बदलने लगे जब लोकायुक्त का यह फैसला आया कि जलील को पद पर बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। उन्होंने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है और भाई-भतीजावाद के चलते उन्होंने राज्य सरकार में 1 पद पर प्रतिनियुक्ति पर अपने रिश्तेदार को पोस्ट किया और विजयन से पूछा कि उनके खिलाफ उचित कार्यवाही हो।

    जलील हालांकि सीपीआईएम कार्ड होल्डर नहीं थे लेकिन वह चर्चा में तब आए जब उन्होंने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नेता और पूर्व मंत्री पी.के कुन्हालीकुट्टी से अलग होकर 2006 में मुख्यमंत्री के साथ आने का फैसला किया था। यह तब और मजबूत हो गया जब 2016 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले विजयन ने जलील को अपने साथ शामिल करने का ऐलान किया था।

    कई नेताओं को इस्तीफे से लगा धक्का

    वरिष्ठ नेता जैसे एमपी बेबी और ई पी जयराजन ने जलील के इस्तीफे पर नाराजगी व्यक्त की है। यह भी साफ साफ देखा जा सकता है कि जलील का इस्तीफा देने का कोई इरादा नहीं था। कई लोग इस बात से आश्चर्यचकित रह गए जब राज्य के कानून मंत्री ए.के बालन जलील के समर्थन में सामने आए और कहा कि उन्हें पद छोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    विपक्षी दलों के नेताओं ने साधा निशाना

    विपक्ष के नेता रमेश चैत्रिथला ने कहा कि सीपीआईएम के उच्च नैतिक आधार की सभी बातें बेकार है।

    “जलील के पास और कोई रास्ता नहीं था क्योंकि उनके भाई-भतीजावाद की साजिश को रंगे हाथों पकड़ा गया है। अगर यह उच्च नैतिक आधार की स्थिति थी तो उन्होंने लोकायुक्त के निर्देश पर रोक लगाने के लिए उच्च न्यायालय से संपर्क क्यों किया?” – चैत्रिथला ने पूछा।

    विपक्षी दल के एक और नेता मुरलीधरन ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा कि विजयन भी भाई-भतीजावाद द्वारा किए गए कार्य में समान रूप से जिम्मेदार है।

    By दीक्षा शर्मा

    गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, दिल्ली से LLB छात्र

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