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    साल 2014 में भाजपा ने हिंदी भाषी राज्यों में अपनी पकड़ मजबूत की थी लेकिन, मौजूदा हालात पहले से नहीं हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक भाजपा नेता ने बताया कि आंतरिक विश्लेषण देखें तो भाजपा की निगाहें अब पूर्वी राज्यों की तरफ है। इसके लिए भाजपा बड़ी-छोटी क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन करके चुनाव लड़ने को राजी हैं।

    भाजपा ने नेता ने यह भी बताया कि बिहार, महाराष्ट्र और तमिलनाडू के बाद पार्टी केरल और आंध्र प्रदेश में भी गठबंधन के विकल्प तलाश रही है।

    बिहार में भाजपा व जेडीयू का गठबंधन पहले से ही तय था। हालांकि महाराष्ट्र में शिवसेना और तमिलनाडू में एआईएडीएमके के साथ गठबंधन की घोषणा इसी हफ्ते हुई है।

    पार्टी के एक अन्य नेता ने बताया कि, “पंजाब में शिरोमनी अकाली दल के साथ उनका गठबंधन पहले से ही बरकरार है। कुल 13 सीटों में से 10 पर अकाली दल और 3 पर भाजपा के चुनाव लड़ती हैं। इस बार भी यही सीटें तय हैं।” अन्य ने यह भी कहा कि “विपक्षी महागठबंधन के देखते हुए भाजपा झारखंड में अपने सहयोगी पार्टियों को और सीटें सौंप सकती है।”

    केरल मेंं भाजपा की ईकाई भारतीय धर्म जन सेना (एक संगठन जो ओबीसी एझावा समुदाय का है) से लगातार इसपर बात कर रही है। उनकी मांग है कि उन्हें आधी यानी 6 सीटों पर चुनाव लड़ने दिया जाए, लेकिन अभी कुछ पक्का नहीं है। हालांकि भाजपा राज्य में कुछ स्वतंत्र प्रत्याशियोंं को भी अपना समर्थन दे रही है। ज्ञात हो कि केरल में कुल 20 सीटें हैं जिसमें से 18 सीटों पर भाजपा ने पिछले चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारे थे तब भी वह एक भी सीट हासिल करने में कामयाब नहीं हो पाए थे।

    बीजेपी नेता आंध्र प्रदेश में लगातार अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण (जन सेना) से भी संपर्क में हैं लेकिन उन्होंने गठबंधन पर कई बार अपनी गैर सहमति बताई है।

    वहीं उत्तर पूर्व में भी भाजपा अकेली हो गई है। उसकी गठबंधन वाली पार्ट असम गण परिषद् ने एनआरसी विधेयक पर उससे खफा होकर खुद को राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से अलग कर लिया है। इस विधेयक के तहत बंग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के गैर-मुसलमानों को भारत की नागरिकता सौंपी जाने की बात कही गई है। वहीं असम के एक अन्य सहयोगी बोडो पीपुल्स फ्रंट ने एनडीए में बने रहने के फैसले से भाजपा को राहत मिली है, लेकिन 11 अन्य क्षेत्रीय दलों ने प्रस्तावित कानून का खुले तौर पर विरोध करके पार्टी को झटका दे दिया है।

    अन्य भाजपा के नेता ने कहा कि, “हम इस विधेयक को राज्य सभा में पारित करने पर जोर नहीं दे सकते हैं। हालांकि अन्य दलों ने अभी तक कांग्रेस को भी अपना समर्थन नहीं दिया है। हम आशा कर रहें हैं कि वे दुबारा पार्टी में आ जाए और उत्तर पूर्व की कुल 25 सीटों में से 20 सीटें हमारी झोली में आ जाए।”

    साल 2014 में कुल इस क्षेत्र की आठ राज्यों से भाजपा को 25 लोकसभा सीट में से 8 सीटें मिली थी और कुछ नुकसानों की भरपाई करना चाह रही थी, जिसका नुकसान यहाँ के हिंदी क्षेत्र में होगा। बीजेपी ने यूपी में 80 में से 71, बिहार में 40 में से 22, बिहार में 29 में से 27, छत्तीसगढ़ में 11 में से 10, झारखंड में 14 में से 12 और राजस्थान में सभी 25 पर जीत मिली थी।

    नार्थ ईस्ट राजनीति विज्ञान कॉलेज के मुख्य एच. श्रीकांत बताते हैं कि नागरिकता बिल के कारण भाजपा से सारी सहयोगी पार्टियों ने किनारा कर लिया है। अब कौन-कौन दुबारा उनके साथ आएगा यह तो पीएम मोदी और अमित शाह की चतुराई पर निर्भर करता है।

    बीते पांच सालों में भाजपा क्षेत्रीय पार्टियों का गढ़ कहे जाने वाले राज्यों पं बंगाल, उड़ीसा व तेलांगना में भी अपनी पकड़ मजबूत बनाने का कार्य लगातार कर रही है। काफी हद तक वे इसमें सफल भी हो रहे हैं।

    उन्होंने यह भी बताया कि बिहार में सीटों के विभाजन को लेकर सब बढ़िया है। नीतीश कुमार के दल जेडी(यू) के हिस्से 17, रामविलास पासवान के लोजपा के पास 6 और भाजपा के पास 17 सीटें आई हैं।

    एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के एक सामाजिक वैज्ञानिक डीएम दिवाकर ने कहा, “यह सीट साझा करने का सौदा जेडी(यू) की जीत है, इससे यह पता लगता है कि भाजपा कमजोर हो रही है।”

    आलोचकों के मुताबिक तमिलनाडू में एआईएडीएमके व भाजपा के बीच जो गठजोड़ हुआ है वह मजबूरी में किया गया एक समझौता है। क्योंकि भाजपा जानती है कि एक गठबंधन में एक मजबूत सहयोगी होने से केंद्र में सरकार बनाने में मदद मिलेगी। भाजपा के पकड़ द्रविड़ इलाके में बहुत कमजोर है।

    मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज (एमआईडीएस) के एसोसिएट प्रोफेसर सी. लक्ष्मणन कहते हैं कि यह गठबंधन ओबीसी वोटों को मजबूत करेगा लेकिन अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यकों को खो देगा। महाराष्ट्र में गठबंधन भी भाजपा के लिए एक राजनीतिक कीमत पर आता है क्योंकि इसे शिवसेना की 63 की तुलना में 2014 में 122 सीटें जीतने के बाद भी विधानसभा में शिवसेना को लगभग बराबर दर्जा देना था।

    इस गठबंधन में ताकत के बंटवारे का भी समझौता हो चुका है। यदि वे राज्य में जीत दर्ज करते हैं तो सहयोगी पार्टियों को बराबर पद व बराबर अधिकार दिए जाएंगे। वही सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे कहते हैं कि शिवसेना व भाजपा गठबंधन की एक नई शुरुआत हुई है। सेना सीएम कुर्सी पर अपना दावा ठोक रही है लेकिन भाजपा ने इसपर अभी चुप्पी साधी हुई है।

    राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश बल कहते हैं कि, “भाजपा को पता है कि मोदी लहर कमजोर हो गई है। विपक्षियों का असर होने लगा है ऐसे में उन्हें शिवसेना के साथ ही बहुत जरुरत थी।”

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