कृषि पर निबंध – essay on agriculture in hindi: 1
कृषि का अर्थ मुख्यतः फसलें उगाना और पशुपालन करना होता है। हालांकि आज के समय में खेती को केवल फसलों के उत्पादन तक सीमित समझा जाता है लेकिन यह इससे कहीं बड़ा क्षेत्र है जिसमे पशु पालन, दुग्ध उत्पादन आदि भी शामिल होते हैं।
भारत में खेती का इतिहास:
कृषि की खोज से पहले मानव भोजन की तलाश में विभिन जगह भटकता था लेकिन जब उसने खेती शुरू की तो उसे खाने के लिए और भटकना नहीं पड़ा और इससे एक जगह पर समाज और सभ्यता का निर्माण संभव हो पाया। माना जाता है की खेती की शुरुआत पश्चिम एशिया से हुई जहां हमारे पूर्वज गेहूं और जौ उगाने लगे और साथ ही भेद, बकरी, गाय और भैंस जैसे जानवर पालने लगे।
ऐसा माना जाता है कि मनुष्य ने खेती करना 7500 बीसी में ही शुरू कर दिया था और 3000 बीसी वह समय था जब कृषि का मिश्र देशों और फिर सिन्धु सभ्यता तक तेजी से विस्तार हुआ और इस सभ्यता में मोहनजोदड़ो से हड़प्पा क्षेत्र को कृषि विस्तार का केंद्र माना जाता है।
वैदिक काल में कृषि का महत्त्व बढ़ा और साथ ही इसमें लोहे के आधुनिक औजारों का भी प्रयोग किया जाने लगा और इसके बाद बुद्ध के समय में पेड़ों को महत्त्व दिया जाने लगा जिससे कृषि को बढ़ावा मिला। इसके बाद सिंचाई की तकनीक की खोज की गयी जिससे अधिक लोग कृषि में सक्षम हुए क्योंकि अब कृषि के लिए नदी किनारे रहना जरूरी नहीं था। इस काल में मुख्यतः चावल और गन्ने आदि जैसी फसल बोई जाने लगी।
इसके बाद ब्रिटिश युग में कपास और नील जैसी वाणिज्यिक फासले उगाई जाने लगी जिससे कृषि में एक बड़ा बदलाव आया। अब लोग खाने के साथ साथ मुनाफे के लिए भी खेती करने लगे। इन वाणिज्यिक फसलो का प्रयोग ब्रिटिश कच्चे माल की तरह और यूरोपियन देशों में बेचने के लिए करने लगे। भारत में खाद्य फसलों की जगह भी वाणिज्यिक फसलें उगाने पर जोर दिया गया जिससे आज़ादी के समय भारत में खाद्य संकट आ गया।
हालांकि जल्द ही भारत में जल्द ही हरित क्रांति हुई जिससे यह खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गया साथ ही यह दुसरे देशों में निर्यात भी करने लग गया।
वैश्विक कृषि:
आज हालांकि देश काफी तेजी से वृद्धि कर रहे हैं लेकिन फिर भी कई विकाशशील देशों में बड़े पैमाने पर गरीबी फैली हुई है जिससे अभी भी खाद्य संकट बना हुआ है। हालांकि कृषि क्षेत्र में हर दिन नयी तकनीकें आ रही हैं लेकिन इससे प्रदुषण के कारण भूमि का पतन हो रहा है और यह कम उपजाऊ बनती जा रही है।
भूमि प्रदुषण बहुत तेजी से बढ़ रहा है और हर साल लाखों किसान और ग्रामीण इलाके में रहने वाले लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं। दुनिया की कुल कृषि करने योग्य ज़मीन में से 73 प्रतिशत में खाद्यान्न उगाये जा रहे हैं लेकिन यह लोगों की केवल 74 प्रतिशत ज़रुरत ही पूरी कर पाने में सक्षम हो रहा है इसलिए हमें उन्नत और भूमि को प्रदूषित न करने वाली तकनीक की खोज करने की आवश्यकता है।
भारतीय कृषि:
भारत की कुल आबादी में से 70 प्रतिशत आज भी कृषि पर निर्भर करती है और बिगड़ते हालातों के साथ किसान गरीबी रेखा के नीचे जाते जा रहे हैं। वर्तमान में भारत की जनसाकह्या 135 करोड़ है जोकि इस शताब्दी के मध्य तक 150 करोड़ होने की संभावना है।
बढ़ती जनसाकह्या के साथ इसकी भोजन की मांग को पूरा करने के लिए कृषि में भी उन्नति करनी होगी। इसके लिए मानव को ऐसी तकनीकें इस्तेमाल करनी होंगी जोकि बेहतर होने के साथ साथ वातावरण को प्रदूषित नहीं करती हैं ताकि भूमि उपजाऊ रहे और अधिक पैदावार देती रहे अन्यथा निकट भविष्यः में भारत में खाद्य संकट आ सकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्त्व:
प्राचीन समय से ही भारत में कृषि का महत्व रहा है। यहाँ सभी मुख्य उद्योगों के लिए कृषि से ही कच्चा माल प्राप्त होता है जैसे कपास, गन्ना आदि। इसके अलावा कई और भी उद्योग अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर करते हैं जैसे चावल मिल, तेल मिल आदि जिन्हें कच्चा माल चाहिए होता है।
हालाँकि बढ़ते औद्योगीकरण के बाद भी कृषि क्षेत्र में रिजगार कम नहीं हो रहा है नित नए अवसर मिल रहे हैं। जैसे जैसे और उन्नत तकनीकें आएँगी तो इसमें और भी अवसर आने की संभावनाएं हैं।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में कृषि की भूमिका:
भारत द्वारा विश्व में मुख्यतः मसाले, तिलहन, तम्बाकू और चाय आदि निर्यात किये जाते हैं। भारत द्वारा निर्यात किये गए कुल उत्पादों में से 50 प्रतिशत उत्पाद कृषि संबंधित होते हैं।
हालांकि भारत से निर्यात किये गए उत्पादों से अर्थव्यवस्था को फायदा होता है लेकिन कभी कभी कुछ कारणों से जैसे अत्यधिक कर आदि से नुक्सान उठाना पड़ता है। हालांकि सभी देशों में कर समान नहीं होते लेकिन विकसित देशों में अधिक होते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वे इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा नहीं बढ़ाना चाहते हैं और अपने देश के उद्योगों को बढ़ावा देना चाहते हैं जिससे निर्यात किये गए उत्पाद वहां महंगे हो जाते हैं।
आर्थिक नियोजन में कृषि की भूमिका:
कृषि उद्योग से अन्य उद्योग भी जुड़े हुए हैं। उदाहरण के तौर पर परिवहन विभाग कृषि विभाग का एक अहम् हिस्सा है क्योंकि कृषि उत्पाद को देश में एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में या फिर एक देश से दुसरे देश ले जाने में परिवहन की भूमिका होती है। इस तरह कृषि दुसरे उद्योगों का भी समर्थन करता हैं।
अतः इससे यह सिद्ध हो जाता है की कृषि ही भारत अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और एक अर्थव्यवस्था के रूप में यदि भारत क सफल होना है तो कृषि को उन्नत बनाना होगा तभी भारतीय अर्थव्यवस्था समृद्ध हो पाएगी।
कृषि पर निबंध – Essay on agriculture in hindi: 2
प्रस्तावना:
कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जोकि भारत में सबसे अधिक लोगों को रोज़गार देता है। कृषि का अर्थ केवल खेती से सीमित नहीं है बल्कि इसमें पशुपालन भी आता है। भारत की अर्थव्यवस्था के लिए और दुसरे उद्योगों में भी कृषि एक अहम् भूमिका निभाता है।
कृषि क्षेत्र का विस्तार:
भारत एक ऐसा देश है जिसकी 70 प्रतिशत जनसँख्या कृषि पर निर्भर है। भारत के विकास के लिए कृषि क्षेत्र का विकास सबसे महत्वपूर्ण है और सरकार इसके लिए काफी प्रयास कर रही है। यह क्षेत्र तेजी से विस्तार ओर विकास कर रहा है।
हालांकि कुछ दशक पहले भारत में यह बिलकुल उन्नत नहीं था और प्राचीन औजारों का इस्तेमाल करके ही खेती की जाती थी लेकिन हरित क्रांति और वैश्वीकरण के बाद उन्नत तकनीक आ गयी है और साथ ही उच्च पैदावार देने वाली किस्मों का अविष्कार किया गया है जिससे कृषि क्षेत्र में बहुत समृद्धि हुई है।
पहले भारत अपनी जनसँख्या की संतुष्टि के लिए पर्याप्त पैदावार नहीं कर पा रहा था और इसे दुसरे देशों से आयात करना पड़ रहा था। ऐसा इसलिए था क्योंकि कृषि मुख्यतः मानसून पर निर्भर करती थी। लेकिन हरित क्रान्ति के बाद से नाकि इसने केवल अपने लोगों के लिए पर्याप्त खाद्य पदार्थ पैदा किये बल्कि अब यह खादान्न का निर्यात करने में भी सक्षम हो गया है।
आज़ादी के बाद सरकार ने इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण बदलाव करने का फैसला लिया गया। सिंचाई के लिए बाँध बनाए गए और किसानों के लिए योजनाएं शरू की गयी। बाँध बनाए गए, हैण्ड पंप लगाए गए, खाद उपलब्ध कराई गयी आदि। हालांकि अभी भी कृषि क्षेत्र को उन्नति की आवश्यकता है।
हरित क्रांति में अधिक पैदावार देने वाली किस्मों का अविष्कार किया गया साथ ही सिंचाई की नयी तकनीकें काम में ली गयी ताकि बारिश पर निर्भर न रहना पड़े। समय के साथ अब किसानों को बारिश की चिंता नहीं होती और बारिश नहीं होती तो भी फसलों को पर्याप्त पानी मिलता है और बेहतर पैदावार होती है।
कृषि के वातावरण पर नकारात्मक प्रभाव :
कृषि ने प्राचीन समय में हल्नाकी मानव को सभ्यता के विकास में मदद की लेकिन आज के नवीन युग में जब अधिक पैदावार के लिए खतरनाक केमिकल का उपयोग किया जा रहा है, इससे वातावरण पर कई नकारात्मक प्रभाव हो रहे हैं जोकि निम्न हैं:
- फर्टिलाइजर के प्रयोग से मृदा प्रदुषण होता है जिससे यह कम उपजाऊ बन जाती है और साथ ही ये केमिकल मानव शरीर में जाकर उसमे भी दुष्प्रभाव करते हैं।
- बढती जनसँख्या के साथ अधिक भोजन की ज़रुरत को पूरा करने के लिए जगह बनाने के लिए अधिक वनों की कटाई की जा रही है जिससे वातावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
- नदी के पानी के अधिक प्रयोग से नदी में रहने वाले जंतुओं के जीवन पर खतरा बन रहा है क्योंकि पानी कम हो रहा है।
इस तरह कृषि ने वातावरण को इन नकारात्मक तरीकों से प्रभावित भी किया है और इन प्रभावों को ख़त्म करने के लिए हमें जल्द ही तरीके खोजने होंगे।
निष्कर्ष:
हमारे देश में हालाँकि अर्थव्यवस्था के लिए कृषि बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन हमें हमारे वातावरण का भी खयाल रखना होगा। अतः कृषि की वजह से जो भी नकारात्मक प्रभाव हो रहे हैं उन्हें कम या ख़त्म करने के लिए नयी उन्नत तकनीकें खोजनी होंगी ताकि हमारा वातावरण बचा रहे और साथ ही बढती जनसँख्या की मांग को पूरा किया जा सके।
[ratemypost]
इस लेख से सम्बंधित अपने सवाल और सुझाव आप नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।
Hello