कल सुप्रीम कोर्ट में किसान आंदोलन को लेकर सरकार और केंद्र की के बीच बहस हुई थी। कोर्ट का कहना था कि यदि इस आंदोलन में हिंसा भड़कती है या कोई और नुकसान होता है तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी। वहीं केंद्र के इस आंदोलन के प्रति रवैये से भी सुप्रीम कोर्ट नाराज दिखा था। कल की सुनवाई पर फैसला आज आना था। कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि सरकार खुद इन कानूनों पर स्टे लेगी या न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप करना होगा।
इसके बाद इस बहस का फैसला आज आया है। न्यायालय की 4 सदस्यों की समिति ने कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दी है। इस तरह कानूनों के लागू होने को स्थगित कर दिया गया है। केंद्र सरकार को इससे बड़ा झटका लगा है। किसानों की सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया है, लेकिन किसान अभी भी अपनी मांगों से पीछे नहीं हटेंगे।
किसानों का कहना है कि जब तक कानून पूरी तरह से वापस नहीं हो जाता और एमएसपी को कानून नहीं बना दिया जाता तब तक आंदोलन जारी रहेगा। न्यायालय ने आशंका जताई थी कि जल्द ही इस आंदोलन में कोई बड़ी हिंसा हो सकती है। यदि ऐसा होता है तो उससे होने वाले नुकसान की जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं है। न्यायालय ने अपने वकीलों के माध्यम से आंदोलनकारी बुजुर्गों महिलाओं और बच्चों से कहा है कि वे लौट जाएं। बदलते मौसम, कड़ाके की ठंड और कोरोना के चलते उन लोगों का वहां रहना ठीक नहीं।
हालांकि वहां उन्हें हर तरह की सुविधा प्रदान की गई है। बहरहाल न्यायालय का कहना है कि कानून के अमल को स्थगित किया गया है, लेकिन यह अनिश्चितकाल के लिए नहीं है। न्यायालय अपनी शक्तियों के अनुसार इस मामले को सुलझाना चाहता है। मुख्य न्यायाधीश ने आंदोलन के दौरान किसी भी व्यक्ति की मृत्यु या संपत्ति नुकसान को लेकर चिंता जताई है।