Tue. Jan 21st, 2025

    हरिद्वार में कोविड-19 संक्रमण के बढ़ते प्रसार के चलते पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी ने 17 अप्रैल को कुंभ मेला समापन की घोषणा कर दी है। अखाड़े के कुंभ मेला प्रभारी एवं सचिव महंत रविंद्रपुरी ने कहा कि कोरोना का प्रसार तेज हो गया है। साधु संत और श्रद्धालु इसकी चपेट में आने लगे हैं। निरंजनी अखाड़े के साधु संतों की छावनियां 17 अप्रैल को खाली कर दी जाएंगी। वहीं आनंद अखाड़े और तपो निधि अखाड़े ने भी 17 अप्रैल को कुंभ के समापन की घोषणा कर दी है।

    मेले के बीच निर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर कपिल देव की गुरुवार को कोरोना संक्रमण से मौत के बाद साधु-संतों की चिंता बढ़ गई है।

    बता दें कि हरिद्वार में अब तक 30 साधु कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। यह सरकारी आंकड़ा है, लेकिन संक्रमित साधुओं की संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि अलग-अलग अखाड़ों में जाकर साधुओं के RT-PCR टेस्ट किए जा रहे हैं। 17 अप्रैल से टेस्टिंग और बढ़ाई जाएगी।

    कोरोना की स्थिति को देखते हुए निरंजनी अखाड़े के बाद बाकी सन्यासी अखाड़े भी कुंभ समाप्ति का ऐलान कर सकते हैं। हरिद्वार में कुंभ मेले का समय 30 अप्रैल तक है। लेकिन पिछले 5 दिन में यहां कोरोना के 2,167 मामले सामने आ चुके हैं। इसके बावजूद अधिकारियों का कहना है कि कुंभ मेला 30 अप्रैल तक चलेगा। लेकिन अब अखाड़े खुद ही कुंभ खत्म करने का ऐलान करने लगे हैं।

    मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बीते 10 दिन में करीब 70 प्रमुख संतों की रिपोर्ट पॉजिटिव आ चुकी है। हरिद्वार के कनखल इलाके में जहां 10,000 संत और उनके समर्थक ठहरे हुए हैं, वह इलाका शुक्रवार को सैनिटाइज किया जाएगा।

    कोरोना के चलते इस साल कुंभ का मेला जनवरी की बजाय 1 अप्रैल से शुरू किया गया था। केंद्र सरकार की गाइडलाइंस के मुताबिक स्थिति को देखते हुए इसका समय कम किया जा सकता है। लेकिन हरिद्वार के डीएम और कुंभ मेला ऑफिसर दीपक रावत ने बुधवार को कहा कि मेले का समय घटाने की कोई जानकारी नहीं है।

    देश में कोरोना के तेजी से बढ़ते मामलों के बीच कुंभ मेला जारी रखने पर सवाल भी उठ रहे हैं। देश में गुरुवार को कोरोना के 2 लाख नए मामले सामने आए। यह महामारी शुरू होने से अब तक एक दिन का सबसे बड़ा आंकड़ा है। उधर कुंभ में लाखों लोगों की भीड़ जुटी हुई है। बुधवार के शाही स्नान में 14 लाख लोग शामिल हुए थे।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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