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    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी रखने के लिए किसान संगठनों को फटकार लगाते हुए कहा कि जब आंदोलन हिंसा में बदल गया तब “कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेता है” जैसा कि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुआ, जहां आठ लोग मारे गए।

    न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर ने कहा कि, “जब ऐसी घटनाएं होती हैं जिससे मौतें होती हैं, संपत्ति का नुकसान होता है और या कोई और नुकसान होता है, तो कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेता है।”

    अटॉर्नी-जनरल के.के. वेणुगोपाल ने रविवार को हुई हिंसा को “दुर्भाग्यपूर्ण घटना” बताया। सरकार के शीर्ष कानून अधिकारी ने कहा कि अदालत को यह स्पष्ट करना चाहिए कि जब देश के सर्वोच्च न्यायालय में कृषि कानूनों के खिलाफ चुनौती दी गयी है तो विरोध प्रदर्शन जारी नहीं रहना चाहिए।

    सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता द्वारा समर्थित अटॉर्नी-जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि, “इस तरह की कोई और दुर्भाग्यपूर्ण घटना नहीं होनी चाहिए और यह विरोध बंद होना चाहिए।”

    जस्टिस खानविलकर और जस्टिस सी.टी. रविकुमार की बेंच ने किसान महापंचायत के एक किसान संगठन से पूछा कि, “लेकिन जब मामला यहां विचाराधीन है तो विरोध कैसे हो सकता है? जब कानूनों को स्थगित रखा गया है तो विरोध क्यों हो रहे हैं? यह दिलचस्प है कि फिलहाल कोई अधिनियम नहीं है। एक्ट रुका हुआ है। सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह इसे प्रभावी नहीं करेगी तो यह विरोध किस लिए है?”

    किसानों का निकाय जंतर मंतर पर ‘सत्याग्रह’ पर बैठना चाहता था। न्यायमूर्ति खानविलकर ने कहा कि कृषि कानून संसद द्वारा पारित किए गए थे। न्यायाधीश ने कहा, “सरकार भी संसद द्वारा पारित कानूनों से बंधी है। हम यहां सिद्धांत पर हैं, एक बार जब आप अदालत जाते हैं तो वही पार्टी कैसे कह सकती है कि मामला अदालत में है फिर भी मैं विरोध करूंगा।”

    अदालत ने अपने आदेश में इस मामले में कानूनी सवाल तय करने का फैसला किया। पीठ ने कहा कि वह पहले यह तय करेगी कि विरोध करने का अधिकार “पूर्ण अधिकार” है या नहीं।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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