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    किसान आंदोलन व नए कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद भी किसान संतुष्ट नहीं हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला किसानों के ही हित में आया है, लेकिन फिर भी किसान किसान नेता संतुष्ट दिख रहे हैं। किसानों का कहना है कि यह कमेटी प्रो गवर्मेंट है। वह सरकार के इशारों पर काम करेगी। किसानों ने सुप्रीम कोर्ट से भी नाराजगी जताई है। किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि कानून जिन लोगों ने बनाए हैं, वही लोग सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी में शामिल किए हैं। ऐसे में उन लोगों से बातचीत करने के पक्ष में किसान नहीं हैं।

    इस कमेटी में शामिल भूपेंद्र सिंह मान कृषि कानून के समर्थक रहे हैं। हालांकि वे भारतीय किसान यूनियन के नेता भी हैं। वहीं समिति के दूसरे सदस्य अनिल घनवंत शेतकरी संगठन के सदस्य हैं। इन्होंने भी कृषि कानूनों में संशोधन के बाद उनका समर्थन करने की बात कही थी। कमेटी के तीसरे सदस्य अशोक गुलाटी कृषि अर्थशास्त्री हैं और वे भी कृषि कानूनों के पक्ष में हैं। उनका कहना था कि नए कृषि कानूनों से किसानों को फायदा होगा, लेकिन सरकार इस बात को किसानों को ठीक से समझाने में असमर्थ रही है। वहीं समिति चौथे सदस्य प्रमोद जोशी खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के सदस्य हैं और उन्होंने एमएसपी से हटकर नई मूल्य नीति पर विचार करने की बात कही थी। उनका कहना था कि उपभोक्ताओं और सरकार के लिए एक नई मूल्य नीति बनाई जानी चाहिए।

    कुल मिलाकर चारों सदस्यों के विचार नए कृषि कानून पर एक समान हैं और वे चाहते हैं कि कानून में किसानों के अनुसार ही संशोधन करके इन्हें लागू किया जाए। किसान आंदोलन को लगभग 50 दिन पूरे होने को हैं और अब तक 57 से ज्यादा मौतें इसमें हो चुकी हैं। किसानों का फिर भी यह फैसला है कि जब तक कानून वापस नहीं ले लिए जाते वे धरना स्थल पर ही टिके रहेंगे।

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