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    delhi farmer protest

    दिल्ली में आज और कल दो लाख से ज्यादा किसान इकठा होंगे। कुछ ने तो कल रात को ही देश के अलग अलग हिस्सों से दिल्ली आना शुरू कर दिया था। शहरो में अलग अलग जगह लगे शिविरों में ये किसान रहेंगे। 

    बाकीयो ने आज दिल्ली आकर, रामलीला मैदान में जुलूस निकाला। शाम में, किसानो के लिए एक संस्कृतिक कार्यक्रम भी रखा गया है। और कल सुबह, सारे किसान, शहर के अलग अलग विधान सभा से चल कर संसदीय मार्ग पर जाएँगे।

    देश भर के 200 किसानो ने मिलकर बनाया ये गठबंधन जिसका नाम है “ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोर्डिनेशन कमिटी(एआईकेएससीसी)”, इसके अन्दर ही किसानो ने विरोध प्रदर्शन किया। 

    बढ़ते न्यूनतम समर्थन मूल्य और एक बार के बिना शर्त ऋण माफ़ी के अलावा, इस बार किसान, संसद में अलग से एक सत्र की मांग भी कर रहे हैं जो केवल कृषि संकट के लिए समर्पित होगा।

    गठबंधन की ये भी मांग है कि संसद, “एआईकेएससीसी” की तरफ से पेश दो बिल को पास करें। ये बिल हैं-ऋण माफ़ी बिल और न्यूनतम समर्थन मूल्य के लाभ की गारंटी के लिए बिल। 

    पिछले 18 महीनो में, भारत में कई जगह किसानो को विरोध प्रदर्शन करते हुए देखा गया है। नासिक से मुंबई तक,  ‘द किसान लॉन्ग मार्च’, सितम्बर में दिल्ली में, ‘द ऑल इंडिया किसान सभा’ का विरोध प्रदर्शन और अक्टूबर में, ‘द भारतीय किसान यूनियन रैली’ इसके कुछ उदाहरण हैं। 

    ग्रामीण समस्या कई दशको से परेशानी की वजह रही है मगर इस साल जितनी भी रैलीया हुई हैं वो अक्सर देखने को मिलती नहीं हैं। कम ज़मीनी हिस्सा, कम मूल्य और मौसम के कारण हुए नुकसान, कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से किसान क़र्ज़ में डूबते चले जाते हैं।

    1995 से 2016 के बीच, 3,33,398 किसानो ने आत्महत्या करी थी। जो अगर तोड़ा जाये तो, एक साल में 15,000 किसान, हर महीने 1,200, और हर दिन 42 किसानो ने क़र्ज़ के कारण अपनी ज़िन्दगी ख़तम की थी। इतने सबके बाद भी, राजनेताओ और कार्यकर्ताओ से कुछ नहीं हुआ। 

    मगर अब ये मुद्दा इतना बड़ा हो गया है कि सारे राजनेता और कार्यकर्ता एक साथ मिलकर इस मुद्दे पर अपना समर्थन दे रहे हैं। यहाँ तक की पश्चिम बंगाल की दो विपक्षी पार्टिया ‘तृणमूल कांग्रेस‘ और ‘सीपीएम’ ने एक साथ मिलकर इस मुद्दे पे काम करने की बात कही है। 

    इस लड़ाई में अगला मुकाम तब आया जब जून 2017 में मदसौर में पुलिस ने विरोध कर रहे किसानो पर फायरिंग शुरू कर दी थी। इस फायरिंग में 6 किसानो की गोली लगने से मौत हुई थी।   

    इसी घटना के बाद “एआईकेएससीसी” गठबंधन का निर्माण हुआ था। इस गठबंधन में सीपीएम की ‘ऑल इंडिया किसान सभा(एआईकेएस)’ , योगेन्द्र यादव की ‘स्वराज अभियान’ है, वीएम सिंह की ‘राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन’ और मेधा पाटकर की ‘नेशनल अलायन्स ऑफ़ पीपल मूवमेंट’ मौजूद हैं। 

    उनका ये जुलूस जिसका नाम है “दिल्ली चलो”, इस साल के मार्च महीने में 30,000 किसानो द्वारा पैदल नासिक से मुंबई जाने वाले कामयाब जुलूस से प्रेरित है। ये जुलूस, सीपीएम की ‘एआईकेएस’ ने आयोजित किया था। 

    एक और विरोध प्रदर्शन इस वक़्त पश्चिम बंगाल के सिंगुर में भी चल रहा है। ‘एआईकेएस’ की तरफ से आयोजित इस प्रदर्शन में, किसान राज्य की तरफ से अपनी ज़मीन वापस ना मिलने पर विरोध कर रहे हैं। ‘एआईकेएस’ के अनुसार, 2007 में ली गयी 997 एकर की ज़मीन, किसानो को मिलने वाली थी मगर उन्हें केवल 11 एकर की ज़मीन ही मिली है। 

    बुधवार को, 50,000 किसानो ने सिंगुर से जुलूस निकाला जो जाकर ब्रस्पतिवार को कोलकाता के राज भवन पर ख़तम होगा। ‘एआईकेएस’ के हिसाब से ये विरोध, दिल्ली में चल रहे विरोध प्रदर्शन का हिस्सा है। 

    By साक्षी बंसल

    पत्रकारिता की छात्रा जिसे ख़बरों की दुनिया में रूचि है।

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