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    कृषि कानूनों को रद्द कराने की मांग को लेकर संघर्षरत किसान संगठनों के केएमपी (कुंडली-मानेसर-पलवल) एक्सप्रेस-वे 24 घंटे तक जाम रखने के आह्वान किया है। इसको देखते हुए पुलिस-प्रशासन ने सुरक्षा बढ़ा दी है। कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों को दिल्ली की सीमाओं पर धरना-प्रदर्शन करते हुए शनिवार को 135 दिन हो गए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा इस जाम का आह्वान किया गया था।

    बैठक में किये गए फैसले

    केएमपी एक्सप्रेस वे के जाम को सफल बनाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से सिंघु बॉर्डर पर शुक्रवार को बैठक की गई।

    बैठक के बाद संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से जारी किए गए बयान में किसान नेता डॉ दर्शन पाल ने कहा गया कि किसान शनिवार को एक्सप्रेस वे को जाम करेंगे, इसके बाद 13 अप्रैल को दिल्ली के बॉर्डर पर खालसा पंथ का स्थापना दिवस मनाएंगे साथ ही जलियांवाला बाग हत्याकांड की बरसी पर शहीदों को सम्मान में कार्यक्रम के आयोजन किए जाएंगे। 14 अप्रैल को संविधान बचाओ दिवस के रूप में किसान बहुजन एकता दिवस मनाया जाएगा।

    यात्रियों की सुविधा के लिए जारी की गयी ट्रैफिक एडवाइजरी

    पुलिस ने वाहन चालाकों के लिए ट्रैफिक एडवाइजरी करते हुए कहा कि रविवार की सुबह तक इस मार्ग पर सफर करने से बचें। इस दौरान राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पर अंबाला/चंडीगढ़ की ओर से आने वाले यात्री करनाल से शामली और पानीपत से सनौली होते हुए यूपी, गाजियाबाद और नोएडा की ओर जा सकते हैं।

    गुड़गांव, जयपुर आदि की तरफ जाने वाले वाहन राष्ट्रीय राजमार्ग-71ए पर पानीपत से गोहाना की तरफ रोहतक, झज्जर और रेवाड़ी होते हुए यात्रा कर सकते हैं। जाम के कारण सोनीपत, झज्जर, पानीपत, रोहतक, पलवल, फरीदाबाद, गुड़गांव और नूंह में यातायात प्रभावित रहेगा।

    नागरिकों से आग्रह

    सयुंक्त किसान मोर्चा ने स्पष्ट किया कि किसान कभी नागरिकों को परेशान नहीं कर सकते, उनकी मंशा सिर्फ सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाना है। मोर्चा ने एक बयान जारी कर कहा, “हम सभी किसानों की तरफ से आश्वस्त करते हैं कि केएमपी बंद पूर्ण रूप से शांतमय रहेगा। हम आम नागरिकों से आग्रह करते हैं कि अन्नदाता के सम्मान में इस कार्यक्रम में अपना सहयोग दें।”

    तीन नए खेती कानूनों के खिलाफ किसान पिछले साल 26 नवंबर से ही राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों ने सरकार पर दबाब डालने के लिए इससे पहले भी रणनीति बनाकर आंदोलन के अलग-अलग रूप दिखा चुके हैं, लेकिन सरकार और किसान नेताओं के बीच फिर से वार्ता शुरू होने की सूरत अब तक नहीं बन पाई है।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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