किसान आंदोलन को आज 100 दिन पूरे हो चुके हैं। कुछ समय पहले कृषि कानूनों के विरोध में किसान एकजुट हुए और इन कानूनों का विरोध किया। पंजाब व हरियाणा समेत देश के कई राज्यों से किसानों ने इस आंदोलन में भागीदारी की। आज इस आंदोलन को चलते हुए 100 दिन पूरे हो चुके हैं। किसानों की नेता राकेश टिकैत ने आंदोलन के 100 दिन पूरे होने पर सभी किसानों का शुक्रिया अदा किया है और साथ ही जो लोग आंदोलन में शामिल न होकर सोशल मीडिया पर भी आंदोलन को चलाते रहे, उनका भी शुक्रिया राकेश टिकैत ने किया है।
इस आंदोलन के चलते किसानों ने दिल्ली के सभी बड़े बॉर्डरों को चारों तरफ से घेर रखा था। लगभग 100 दिन से ये आंदोलन जारी है। हालांकि 26 जनवरी की घटना के बाद आंदोलन थोड़ा कमजोर पड़ा था, लेकिन अब धीरे-धीरे किसानों की संख्या बढ़ने लगी है। साथी आज इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए पंजाब के अमृतसर से कई लोग दिल्ली की तरफ कूच कर रहे हैं।
किसानों ने कहा है कि प्रदर्शन की तैयारी मौसम के हिसाब से चल रही है। सर्दी के मौसम में वहां किसानों के लिए ड्राई फ्रूट्स, सर्दी से बचने वाले टेंट हाउस, कंबल समेत तमाम इंतजाम आदि मौजूद थे। वहीं गर्मी को देखते हुए आंदोलन स्थल पर पंखे लगाए गए हैं। साथ ही टेंट्स को भी गर्मी के हिसाब से एडजस्ट कर लिया गया है। बहुत सी जगहों पर फ्रिज की मौजूदगी भी देखी गई है। किसान नेताओं को कहना है कि 6 मार्च को मुजफ्फरनगर से ट्रैक्टर रैली की शुरुआत होगी जिसमें जन जागरण भी किया जाएगा और 27 मार्च को गाजीपुर में इस जन जागरण का समापन होगा।
आंदोलन स्थल पर कई जगह मजबूत टेंट भी बनाए जा रहे हैं। बहुत से किसान तीन से चार महीनों से दिल्ली के बॉर्डर पर डटे हुए हैं। आज ट्विटर पर भी किसान आंदोलन के 100 दिन का हैशटैग टॉप पर ट्रेंड करता दिख रहा है। जिस तरह आंदोलन में तैयारियां देखी जा रही हैं, ये आंदोलन जल्द ही खत्म होने वाला नहीं लग रहा है। लगभग सौ दिनों से ही दिल्ली के तमाम बड़े बॉर्डर बंद होने के कारण लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इस आंदोलन के चलते कई बड़े नेताओं ने अपनी राजनीति साधने की भी कोशिश की है। सूत्रों के हवाले से खबर है कि कल दिल्ली जाने वाले सभी प्रमुख रास्तों को किसान बंद कर सकते हैं।
किसान मोर्चा के प्रवक्ता दर्शन पाल का कहना है कि जल्द ही दिल्ली में माहौल भारी होने की संभावना है। क्योंकि आंदोलन एक लम्बा सफर तय कर चुका है तो सरकार पर नैतिक रूप से दबाव है कि वह इस आंदोलन को खत्म करने के लिए नए कृषि कानूनों को रद्द कर दे। हालांकि केन्द्र सरकार इस मूड में नजर नहीं आ रही है। किसान अपनी मांगों पर अडिग हैं। इस आंदोलन में बहुत से लोगों ने अपनी जानें भी गंवाई हैं। साथ ही गणतंत्र दिवस के दिन हुई हिंसा के बाद आंदोलन के प्रति लोगों की सहानुभूति में भी कमी देखी गई है।