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    अन्ना हजारे

    ”बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं
    बंधी जीभ, आँखें विषम गम खा शायद आँसू पीते हैं ”

    आज से बहुत साल पहले रामधारी सिंह दिनकर ने किसानों की समस्याओं को इन पंकितयों के माध्यम से जनता के सामने रखा था। वैसे बता दें कि किसानों की समस्या मात्र किसान वर्ग की समस्या नहीं है। यह समस्या पुरे देश की है। समूचे राष्ट्र का पेट भरने वाला किसान खुद अपना पेट भरने में असमर्थ है।

    सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के आंकड़ों को देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि आज हमारे किसान जिस तरह का जीवन बिताने को मजबूर है वो चिंताजनक है। किसानों की समस्याओं पर बड़े बड़े सेमिनार होते है, बैठके होती है, लोकलुभावन वादे और नारे दिए जाते है, कागजों में बड़ी बड़ी परियोजनों का उद्घाटन भी होता है लेकिन इन सबके बावजूद किसान यहां घुट घुट कर मरने को मजबूर है।

    समाज का हर वर्ग कहीं ना कहीं मजबूत हुआ है लेकिन कृषक वर्ग की हालत में कोई सुधर होता नहीं दिखाई दे रहा है। इन किसानों की आवाज को अन्ना हजारे ने सुना है।

    खबर आयी है कि अन्ना इन किसानों के लिए एक बार फिर राष्ट्रस्तर पर आंदोलन चला सकते है। किसानों को उनके आंदोलन से बड़ी उम्मीद है। उन्हे आशा है कि अन्ना एक बार फिर 2011 जैसा आंदोलन खड़ा करके किसानों की आवाजों को सरकार तक पहुँचाने में समर्थ होंगे।

    2011 में हुए अन्ना हजारे के आंदोलन को भला कौन भुला सकता है। अन्ना ने अकेले ही बिना किसी राजनीति पार्टी का साथ लिए पुरे सरकार को हिला दिया था। किसानों के मुद्दों पर बहुत समय से ख़बरों से गायब रहने वाले अन्ना हजारे अब एक बार फिर मीडिया में है।

    अन्ना ने कहा है कि वो किसानों, गरीबों और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर साकार के काम काज से वो बहुत दुखी है। इसलिए उनके हकों की रक्षा की खातिर वो अगले साल के शहीदी दिवस से रैली और प्रदर्शन करने को तैयार है। सरकार पर गैरजिम्मेवार होने का आरोप लगाते हुए अन्ना ने कहा कि किसानों के मुद्दों पर उन्होने बड़े बड़े अधिकारीयों से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक को कई बार पत्र लिखा है, जिसका जवाब उन्हे नहीं मिला है।

    किसानों की आत्महत्या को अफसोसजनक बताते हुए अन्ना ने दुख जताया कि 22 सालों में कम से कम 12 लाख किसानों की आत्महत्या देश के लिए निंदनीय है। किसानो की हालत ठीक करने के लिए जनलोकपाल में सुधार की मांग करते हुए उन्होने कहा कि ”जनलोकपाल में आवश्यक परिवर्तन करके की किसानों के हालातों को ठीक किया जा सकता है।

    गौरतलब है कि महाराष्ट्र से सबसे पहले आने वाली किसानों की समस्या अब राष्ट्रीय स्तर पर फ़ैल गयी है। राज्य और सरकार कोई भी हो, किसानों के मरने की खबरे आज आम हो गयी है। उन्होने किसानो की हालत तक करने के लिए जनलोकपाल में सुधार की बात की और कहा जनलोकपाल में आवश्यक परिवर्तन करके की किसानों के हालातों को ठीक किया जा सकता है।

    पिछले कुछ सालों से किसानों का विरोध करना भी मुश्किल हो गया है। विरोध करते भी है तो कोई नहीं सुनता, गोलियां अलग से चल जाती है। हां मदद के नाम पर कई मौतों के के बाद मुवाजा जरूर मिल जाता है और मूल समस्या को राजनीति फायदों के लिए नजरअंदाज कर दिया जाता।

    मीडिया को भी इनसे कोई मतलब नहीं है। वो हिन्दू, मुस्लिम, मंदिर या मस्जिद जैसे मुद्दों पर टीवी स्क्रीन को चार हिस्सों में बांटकर खुश है।