उत्तर कोरिया और रूस के बीच दशकों पुराने सम्बन्ध है और एक वक्त में मॉस्को पियोंगयांग का महत्वपूर्ण सहयोगी हुआ करता था। सालो बाद उत्तर कोरिया के प्रमुखों के बेटा और पोता उन्ही संबंधों को वापस पटरी पर लाने का कार्य करेगा। रूस के साथ उत्तर कोरिया परमाणु वार्ता करना चाहता है। इसका मकसद अमेरिका के साथ समझौते पर न पंहुच पाना और चीन से निर्भरता को कम करना है।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से इस सप्ताह के अंत में उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन व्लादिवोस्टोक में मुलाकात करेंगे। इस सम्मेलन के बाबत बेहद कम जानकारी साझा की है लेकिन यह दोनों पड़ोसी मुल्कों के बीच पहली मुलाकात है। आठ साल पूर्व किम जोंग इल ने दमित्रि मेदवेदेव से मुलाकात की थी।
फरवरी में अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ हुई परमाणु वार्ता बगैर किसी समझौते के रद्द हो गयी थी। पियोंगयांग ने बीते हफ्ते अमेरिकी राज्य सचिव माइक पोम्पिओ को परमाणु वार्ता से हटाने की मांग की थी।
जानकारों के मुताबिक, किम जोंग उन ने चार बार चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की है लेकिन अब वह गतिरोध में व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने में लगे हैं। मॉस्को ने इससे पूर्व कहा था कि उत्तर कोरिया पर लागू अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों में रिआयत देनी चाहिए जबकि अमेरिका ने आरोप लगाया कि रूस पियोंगयांग को मदद करने की कोशिश कर रहा है और मॉस्को ने इन आरोपों को ख़ारिज किया था।
हनोई सम्मेलन के बाद उत्तर कोरिया में रुसी राजदूत अलेक्सेंडर मटसेगोरा ने कहा कि “परिणामो से पियोंगयांग काफी निराश है।” वियतनाम से दूसरे शिखर सम्मेलन से लौटने के बाद किम जोंग उन ने कहा कि “जो परिणाम वो चाहते थे वो उन्हें नहीं मिला था। वांशिगटन को सिर्फ वादों के सिवाये रिआयत भी प्रस्तावित करनी चाहिए थी, जो कुछ भी नहीं था और यह स्वीकृत नहीं है।”
पियोंगयांग का दावा है कि उत्तर कोरिया ने उन्हें जापान की आक्रमक कार्रवाई से बचाया है। अमेरिका की हिरोशिमा पर बमबारी के बाद सोवियत संघ ने 8 अगस्त 1945 में युद्ध का ऐलान किया था। इस कार्रवाई ने जापान को समर्पण के लिए मज़बूर कर दिया था और इसके बाद द्वितीय विश्वयुद्ध और जापान का पेनिनसुला पर राजशाही शासन का अंत हुआ था।
पियोंगयांग के इतिहास में इस संघर्ष में अमेरिका की भूमिका को कोई श्रेय नहीं दिया जाता है बल्कि उसे कोरिया के विभाजन का जिम्मेदार मानता है। इसके बाद सोवियत ने किम इल सुंग को उत्तर का नेता बना दिया। एक निर्वासित लड़ाका जिसने चीनी क्षेत्र से जापानी सैनिको के खिलाफ गुर्रीला जंग लड़ी थी। इसके बाद वह सोवियत संघ चेले गए जहां उनके बेटे किम जोंग इल ने जन्म लिया था।
पियोंगयांग का मास्को महत्वपूर्ण समर्थक था और शीट युद्ध के दौरान प्रमुख सहायता मुहैया करने वाला देश था। उत्तर कोरिया के रिसर्चर एहन छान इल ने बताया कि “दोनों नेताओं के बीच संबंधों को मज़बूत करने के लिए यह प्रणाली कारगर साबित नहीं हुई। किम जोंग उन के प्रेरक उनके दादा रहे थे न कि उनके पिता।”
साल 1980 में सोवियत संघ के विघटन के दौरान उन्होंने पियोंयांग को दी जाने वाली सहायता में कमी कर दी और इससे उत्तर कोरिया पर काफी प्रभाव पड़ा था। इसके बाद अलग-थलग पड़े राष्ट्र की मदद के लिए चीन ने कदम उठाये और उनका सबसे बड़ा व्यापर साझेदार बन गया था और अब किम बीजिंग के प्रभाव को सीमित करना चाहते हैं।
जानकारों के मुताबिक, आत्मनिर्भरता की विचारधारा उत्तर कोरिया की नीति का भाग है, वह किसी एक सहयोगी पर आश्रित नहीं रहता है। पियोंगयांग में दशकों से एक विशेषज्ञों का कूटनीतिक समूह नियुक्त है जो भलीभांति खेल को खेलना चाहता है।”