Cauvery Water Dispute: कावेरी जल बंटवारे को लेकर तकरीबन पिछले 200 सालों से चला आ रहा विवाद एक बार फिर चर्चा में है। इस बार, कर्नाटक (Karnataka) में तमिलनाडु (Tamil Nadu) को कावेरी नदी के पानी देने के फैसले के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं।
दरअसल, कावेरी जल नियामक समिति (CRWC) के द्वारा जारी एक फैसले के अनुसार कर्नाटक द्वारा पहले 5000 क्यूसेक पानी प्रतिदिन छोड़ना था। लेकिन बाद में इसे घटाकर समिति ने 28 सितम्बर से 15 अक्टूबर के बीच 3000 क्यूसेक प्रतिदिन पानी की मात्रा छोड़ने का आदेश कर्णाटक को दिया।
Cauvery River Water Council directs Karnataka to further release 3000 cusecs of Cauvery river water everyday to Tamilnadu from September 28th to October 15thhttps://t.co/vWvnAVGUGn
— All India Radio News (@airnewsalerts) September 26, 2023
कर्नाटक की सरकार ने इस फैसले को यह कहते हुए मानने से इंकार कर दिया कि उनके पास तमिलनाडु को देने के लिए इतने जल की मात्रा भी नहीं है और वे इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जायेंगे।
#Karnataka CM Siddaramaiah says they will challenge before the Supreme Court the decision of Cauvery Water Regulatory Committee to release 3000 Cusecs of Cauvery river water everyday to Tamilnadu from tomorrow to October 15th. He says based on opinion of legal experts, the state…
— All India Radio News (@airnewsalerts) September 27, 2023
इस साल मॉनसून के कमजोर रहने के कारण कर्नाटक में कावेरी नदी (Cauvery River) के जलग्रहण क्षेत्र में औसत से काफी कम बारिश हुई है. इसी वजह से कई कन्नड़ समर्थक संगठन, किसान समूहों तथा बीजेपी, जेडीएस आदि विपक्षी दलों के सहयोग से कर्नाटक के अलग अलग हिस्सों में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। इसी सिलसिले में विगत 26 सितंबर को बेंगलुरु में बंद का आह्वान किया गया था।
कावेरी जल बंटवारे को लेकर ताजा विवाद क्यों?
मानसून के दौरान कम बारिश के कारण तमिलनाडु ने सूखे का हवाला देते हुए कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (Cauvery Water Management Authority- CWMA) एवं कावेरी जल नियमन समिति (Cauvery Water Regulatory Committee- CWRC) के समक्ष 7200 क्यूसेक (प्रतिदिन) पानी की मांग की थी।
समिति ने कावेरी पर निर्भर अन्य राज्यो को देखते हुए तमिलनाडु के इस 7200 क्यूसेक की मांग को घटाकर 5000 क्यूसेक कर दिया, जो बाद में घटाकर और कम 3000 क्यूसेक प्रतिदिन (28 सितम्बर से 15 अक्टूबर के बीच की अवधि के लिए) कर दिया गया।।
समिति के इस फैसले को कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) ने भी समिति के इस फैसले को सही ठहराया। तमिलनाडु इस फैसले को स्वीकार करने को राजी भी है लेकिन कर्नाटक में इसे लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
कर्नाटक यह तर्क देता रहा है कि कर्नाटक में पेयजल और कावेरी बेसिन के इलाकों में सिंचाई के लिए आवश्यक पानी की जरूरतों को देखते हुए पानी छोड़ने की स्थिति में नहीं है। इस मानसून बारिश कम होने के कारण पानी की कमी से जूझ रहा है। फिर भी, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण वह तमिलनाडु को पानी देने पर मज़बूर है।
इसी संदर्भ में प्रदर्शनकारियों का कहना है कि कर्नाटक की तरफ से तमिलनाडु को पानी छोड़ा जा रहा है जबकि कर्नाटक के कावेरी बेसिन के जलाशयों में जल-भंडारण का स्तर बहुत कम है। कावेरी बंगलुरू शहर के लिए पेयजल और मांड्या क्षेत्र में कृषि-भूमि की सिंचाई का मुख्य स्रोत है।
दूसरी तरफ, दक्षिण-पश्चिम मानसून करीब है जजिसके कारण अक्टूबर नवंबर के महीने में तमिलनाडु में बारिश होने की प्रबल संभावना रहती है। जबकि इस दौरान कर्नाटक में न के बराबर बारिश होती है। लिहाज़ा, प्रदर्शन करने वालो का तर्क है कि कर्नाटक द्वारा तमिलनाडु को वर्तमान में 5000 क्यूसेक पानी प्रतिदिन छोड़ना एक गलत फैसला है।
200 साल पुराने विवाद पर 2018 में आया था सुप्रीम-कोर्ट का फैसला
दक्षिण की गंगा कही जाने वाली कावेरी नदी को लेकर वर्तमान मे चार राज्यो-कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुद्दुचेरी के बीच जल-बँटवारे को लेकर विवाद है। तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच तो यह विवाद लगभग 200 साल पुराना है।
इसे लेकर 1990 में केंद्र सरकार ने कावेरी नदी जल विवाद न्यायाधिकरण (Cauvery River Water Dispute Tribunal) का गठन किया। इस न्यायाधिकरण ने जैसे ही तमिलनाडु को पानी देने के पक्ष में फैसला सुनाया, कर्नाटक में विरोध प्रदर्शन और हिंसा भड़क उठी। 1991 में इस विवाद के कारण भड़के हिंसा में कम से कम 23 लोगों की मृत्यु हुई थी।
कावेरी नदी जल विवाद न्यायाधिकरण के फैसले से कर्नाटक के असंतुष्ट होने के कारण मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कर्नाटक के हिस्से 14.75 TMC पानी अतिरिक्त दिया जो दक्षिण कर्नाटक में पेयजल के लिए उपयोग में लिया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुसार कावेरी के कुल 740 TMC (Thousand Million Cubic feet) जल में से – तमिलनाडु को 404.25 TMC, कर्नाटक को 284.75 TMC, केरल को 30 TMC, पुदुचेरी को 7 TMC और पर्यावरण संरक्षण व समुद्र में बर्बाद होने वाले जल के लिए 14 TMC हिस्सा दिया गया।
साथ ही, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में राज्यों के बीच विवादों का निपटारा करने के लिए कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (Cauvery Water Management Authority) और कावेरी जल नियामक समिति (CWRC) के गठन का भी आदेश दिया था।
समिति (CWRC) के मुताबिक, वर्तमान में इस साल जून से अगस्त महीने तक कर्नाटक ने तमिलनाडु के लिए मात्र 30.252 TMC पानी छोड़ा था, जबकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार एक सामान्य वर्ष में 80.451 TMC पानी छोड़ना था।
इस समिति के समीक्षात्मक रिपोर्ट के आधार पर प्राधिकरण (CWMA) ने शुरू में (12 अगस्त को) कर्नाटक को प्रतिदिन 12000 क्यूसेक की दर से अगले 15 दिनों तक पानी छोड़ने का आदेश दिया था, जबकि तमिलनाडु ने 25000 क्यूसेक की मांग की थी।
बाद में प्राधिकरण (CWMA) और समिति (CWRC) ने मानसून के कारण उत्पन्न सूखे की स्थिति की समीक्षा की और इसके उपरांत कर्नाटक द्वारा तमिलनाडु के लिए पानी छोड़ने की मात्रा घटाकर 5000 क्यूसेक प्रतिदिन कर दिया। इधर, तमिलनाडु ने अपनी मांग 25000 क्यूसेक से घटाई जरूर लेकिन अभी भी 12000 क्यूसेक की मांग करना शुरू कर दिया।
इसी के मद्देनजर, दोनों राज्यों के बीच का वर्तमान विवाद गहरा होते जा रहा है। प्राधिकरण (CWMA) के इस फैसले के खिलाफ कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों ही राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
आखिर खत्म क्यों नहीं हो रहा कावेरी जल विवाद?
दरअसल, तमिलनाडु और कर्नाटक दोनों ही राज्यों के कई जिले सिंचाई के लिए कावेरी नदी के जल पर निर्भर हैं। कर्नाटक के राजधानी बंगलुरू शहर के लिए पेयजल की आपूर्ति के लिए भी निर्भरता कावेरी नदी के पानी पर ही है। इसलिए यह मुद्दा दोनों ही राज्यों के लिए एक संवेदनशील मुद्दा है।
हालांकि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस विवाद को सुलझाने की भरसक कोशिश की लेकिन राज्यो का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश द्वारा हुआ जल-बंटवारा सामान्य मानसून के मद्देनजर हैं। जबकि इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान सामान्य से कम बारिश होने के कारण कावेरी बेसिन के जलाशयों में क्षमता से काफी कम पानी है।
कुलमिलाकर, भारत मे अब जलसंकट की समस्या स्पष्ट तौर पर नजर आने लगी है। इसीलिए दो राज्यों के बीच बहने वाली नदियों को लेकर जल-विवाद की घटना कोई नई बात नही है। कावेरी के अलावे कृष्णा, गोदावरी, यमुना, नर्मदा, रावी, ब्यास, महादायी आदि कई अन्य नदियों के पानी को लेकर भी विभिन्न राज्यों के बीच गाहे-बगाहे विवाद की खबरे सामने आते रहती है।
भारत एक संघीय ढांचे वाला देश है जहाँ राज्यों से सहकारी-संघवाद की उम्मीद की जाती है। इसलिए राज्यों को एक दूसरे की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कावेरी के साथ साथ तमाम अन्य नदियों के जल बंटवारे के विवादों का स्थायी और व्यावहारिक समाधान निकालना चाहिए।
कावेरी जल विवाद (Cauvery Water Dispute) के समाधान के लिए भी कर्नाटक (Karnataka)और तमिलनाडु (Tamil Nadu) जैसे राज्यों को अपने क्षेत्रीय स्वार्थों को छोड़कर एक समाधान की तलाश करना चाहिए। हिंसा, विरोध प्रदर्शन, या राजनीतिक शह-मात में किसी को कुछ हासिल होने वाला नहीं है।