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    कावेरी जल विवाद

    सुप्रीम कोर्ट ने आज कावेरी नदी विवाद पर फैसला सुना दिया है जिस पर सभी की निगाहें टिकी हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए तमिलनाडु को दिए जाने वाले पानी के आवंटन को कम किया है।

    तमिलनाडु की कावेरी नदी पानी में हिस्सेदारी 192 टीएमसी से घटाकर 177.25 टीएमसी फीट कर दिया गया है। वहीं कर्नाटक को अब 14.75 टीएमसी फीट पानी ज्यादा दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से कर्नाटक सरकार को फायदा मिला है। गौरतलब है कि कर्नाटक में  विधानसभा चुनाव भी होने वाले है।

    मुख्य रूप से तमिनलाडु व कर्नाटक के अलावा केरल व पुडुचेरी भी कावेरी जल विवाद के अन्तर्गत आते है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल की ओर से कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल (सीडब्लूडीटी) के 2007 के आदेश के खिलाफ पानी के बंटवारे को लेकर दायर की गई अपील पर फैसला सुनाएगी।

    इससे पहले 20 सितंबर 2017 को अदालत ने इस मामले में अपना आदेश सुरक्षित रखा था। कावेरी जल विवाद ट्रिब्‍यूनल के आदेशों को इन राज्यों ने मानने से इंकार कर दिया था। यह विवाद साल 1924 में मद्रास-मैसूर समझौतों के ऊपर निर्भर है। साल 1990 मे केन्द्र सरकार ने कावेरी नदी विवाद को लेकर ट्रिब्यूनल बनाया था।

    कावेरी नदी में पानी की कुल उपलब्धता का निर्धारण करने के बाद सीडब्ल्यूडीटी ने सर्वसम्मति से यह आदेश दिया था कि राज्यों के बीच पानी को किस प्रकार से साझा किया जाना चाहिए। ट्रायल के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक को आदेश दिए थे कि वो तमिलनाडु को कावेरी नदी का एक निश्चित पानी दे।

    बेंगलूरू में सुरक्षा व्यवस्था कडी

    कावेरी नदी जल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर बेंगलूरू समेत अन्य जिलों में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है। बेंगलुरू के पुलिस आयुक्त टी सुनील कुमार ने कहा कि 15,000 पुलिस कर्मियों को शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए तैनात किया गया है। आयुक्त ने कहा कि संवेदनशील क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा, जहां पहले भी इस मामले को लेकर दंगों की घटना हो चुकी है।

    कावेरी जल विवाद का लंबा इतिहास

    तमिलनाडु राज्य भौगोलिक विषमताओं के कारण पडोसी राज्यों कर्नाटक व केरल की नदियों पर बहुत समय तक निर्भर रहा है। कावेरी नदी से पानी बंटवारे को लेकर तमिलनाडु व कर्नाटक में विवाद बना हुआ है। कावेरी नदी कृषि भूमि में सिंचाई के लिए पानी के मुख्य स्रोतों में से एक है।

    ब्रिटिश शासन के समय 1892 और 1924 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर राज्य के बीच दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे। कर्नाटक का दावा है कि राज्य में कावेरी नदी से आवंटित पानी अपर्याप्त था और यह समझौता मद्रास प्रेसीडेंसी के पक्ष में था।

    वहीं तमिलनाडु का कहना है कि राज्य में कृषि क्षेत्र व अन्य जरूरत पूरी तरह से कावेरी नदी पर ही निर्भर करती है। समय-समय केन्द्र व राज्यों के बीच में कावेरी नदी जल विवाद को लेकर कमेटियां निर्धारित की गई लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकला।

    ट्रिब्यूनल का आदेश मानने से राज्य कर चुके है इंकार

    कावेरी नदी को लेकर कई बार हिंसक आंदोलन हो चुका है। सर्वोच्च न्यायालय की दिशा अनुसार भारत सरकार द्वारा गठित एक ट्रिब्यूनल ने फरवरी 2007 को इस पर अपना फैसला सुनाया था।

    इस आदेश के अंतर्गत तमिलनाडु को 419 बिलियन क्यूबिक फीट पानी, कर्नाटक को 270 बिलियन क्यूबिक फीट पानी, केरल को 30 बिलियन क्यूबिक फीट और पुडुचेरी को सात बिलियन क्यूबिक फीट पानी प्राप्त करना शामिल था। हालांकि, दोनों राज्यों ने इस फैसले से असंतुष्ट होकर सुप्रीम कोर्ट म् याचिका दायर की।

    तमिलनाडु इस विवाद को हल करने के लिए कावेरी जल बोर्ड से संपर्क कर रहा है। तमिलनाडु को आदेशों के मुताबिक पानी नहीं देने पर करीब 2400 करोड रूपये का मुआवजा कर्नाटक सरकार से मांगा है।