कांग्रेस पार्टी को वंशवाद की पार्टी कहा जाता है। माना जाता है कि इस पार्टी की कोई विचारधारा नहीं है बल्कि इसे हमेशा गांधी परिवार ही चलाती आई है। पार्टी के इतिहास पर नजर डाले तो पाएंगे कि इस पार्टी को जिन्दा रखने के लिए गांधी परिवार ने सिर्फ अपना पसीना ही नहीं बहाया बल्कि खून भी बहाया है।
पार्टी अध्य्क्ष पद पर आज राहुल गांधी अपना नामांकन कर रहे है। उनके नामंकन पर कांग्रेस जहां उनको बधाई दे रही है तो वहीं बीजेपी इस पर निशाना साध रही है। राहुल के ताजपोशी को उनके कर्म से नहीं उनके जन्म से जोड़ा जा रहा है। सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर क्यों राहुल को ही इस पद के लिए योग्य समझा जा रहा है जबकि पार्टी में अन्य वरिष्ठ नेताओं की कोई कमी नहीं है।
जैसा कि पहले से उम्मीद थी इस मुद्दे पर बीजेपी जरूर कांग्रेस को निशाने पर लेगी हुआ भी ठीक वैसा ही, कांग्रेस पर निशाना लगाते हुए बीजेपी ने कहा है कि “जहांगीर की जगह जब शाहजहां आए, क्या तब कोई चुनाव हुआ था? जब शाहजहां की जगह औरंगज़ेब आए, तब कोई election हुआ था? यह तो पहले से ही पता था कि जो बादशाह है, उसकी औलाद को ही सत्ता मिलेगी”
Mani Shankar Aiyar, who never shies away from showing loyalty to one family, proudly said- जहांगीर की जगह जब शाहजहां आए, क्या तब कोई चुनाव हुआ था? जब शाहजहां की जगह औरंगज़ेब आए, तब कोई election हुआ था? यह तो पहले से ही पता था कि जो बादशाह है, उसकी औलाद को ही सत्ता मिलेगी: पीएम
— BJP (@BJP4India) December 4, 2017
वैसे यह सवाल पहली बार नहीं उठा है। गांधी परिवार से जब जब कोई पार्टी अध्य्क्ष पद पर बैठा है तब तब यह सवाल उठा है कि देश में सबके विकास की बात करने वाली पार्टी की सत्ता, एक ही परिवार के पास क्यों है?
गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी अध्य्क्ष के पद का गहरा नाता रहा है
राहुल गांधी से पहले भी गांधी परिवार के कई लोगों ने पार्टी अध्य्क्ष की कुसरी संभाली है। मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी समेत सोनिया गांधी इस पद पर आसीन रह चुके है। चलिए एक नजर डालते है गांधी परिवार और कांग्रेस अध्यक्ष पद के रिश्तों पर।
मोतीलाल नेहरू
नेहरू परिवार में सबसे पहले पार्टी कांग्रेस अध्य्क्ष के पद पर बैठने वाले नेता थे मोतीलाल नेहरू। उनको इस कुर्सी पर बैठने का सौभाग्य दो बार मिला, वो पहली पहली बार 1919 में कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने तथा दूसरी बार 1928 में कोलकता अधिवेशन में अध्य्क्ष बने।
जवाहरलाल नेहरू
पिता के बाद उनके पुत्र जवाहरलाल नेहरू को भी यह कुर्सी नसीब हुई। नेहरू इस कुर्सी पर आठ बार बैठे। सबसे पहली बार वो कांग्रेस के अध्य्क्ष 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में अध्यक्ष में बने। इसके बाद नेहरू 1930, 1936, 1937, 1951,1952, 1953 और 1954 में कांग्रेस अध्यक्ष रहे।
इंदिरा गांधी
जवाहर लाल नेहरू के के बाद नंबर आता है उनकी पुत्री इंदिरा गांधी का। इंदिरा को गाँधी परिवार में जितना विवादित नेता माना गया है उतना ही प्रभावशाली भी माना गया है। उनका वयक्तित्व कुछ ऐसा था कि विपक्ष के अटल बिहारी वाजपेयी भी उन्हे दुर्गा का अवतार कहते थे।
इंदिरा इस पद पर नेहरू-गांधी परिवार की तीसरी पीढ़ी के तौर पर रही, अध्य्क्ष पद की कमान उन्हे चार बार सौंपी गयी। वो पहली बार 1959 में कांग्रेस के दिल्ली के विशेष सेशन में अध्यक्ष बनी तथा बाद में पांच साल के लिए 1978 से 83 तक दिल्ली के अधिवेशन में अध्यक्ष पद पर चुनी गयी। 1983 और 1984 में कोलकता अधिवेशन में उन्होने बाद में अध्यक्ष की कमान अपने हाथों में ली।
राजीव गांधी
राजिव गांधी 1985 से 1991 तक अध्य्क्ष पद पर बैठे। उनकी हत्या के बाद कांग्रेस कि कमान गांधी परिवार से निकलकर दूसरों के हाथों में चली गयी।
सोनिया गांधी
सोनिया गांधी के बारे में कहा जाता है कि उनका राजनीती में आने का कोई इरादा नहीं था ना ही वो राजनीती में आना चाहती थी लेकिन 90 के दशक में कांग्रेस कि दुर्दशा दिन पर दिन खराब होती गयी जिसके कारण उनको राजनीति में आना पड़ा। 1998 में वो कांग्रेस पद की अध्यक्ष बनी। सोनिया 1998 से लेकर मौजूदा समय तक कांग्रेस की अध्यक्ष है।
राहुल गांधी
राहुल गांधी के अध्यक्ष पद को लेकर बहुत से सवाल है लेकिन सबसे बड़ा सवाल है क्या राहुल कांग्रेस की कमान संभाल पाएंगे?