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    चित्रकूट कांग्रेस की जीत

    मध्य प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव जीतने के लिए भाजपा ने कड़ी मेहनत की थी लेकिन नतीजे आने पर बीजेपी को मुँह की खानी पड़ी। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। लेकिन इस सीट पर अपना कब्ज़ा नहीं जमा पाए। बीजेपी की यह हार पिछले 14 साल से सत्ता से दूर रही कांग्रेस के लिए अमृत के समान है।

    जानकारी के लिए बता दें कि 2018 में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले है इसलिए चित्रकूट में हुए विधानसभा उपचुनाव को भाजपा का चुनावी टेस्ट माना जा रहा था। इस टेस्ट में भारतीय जनता पार्टी को मिली हार और कांग्रेस को मिली जीत को समर्थक बदलाव का संकेत मान रहे है।

    कांग्रेस मध्यप्रदेश की सत्ता से 14 साल दूर रही है, और तभी से प्रदेश की सत्ता पर विराजमान है। मध्यप्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले है लेकिन चित्रकूट में मिली जीत ने मुरझाये हुए कांग्रेसी कार्यकर्ताओ को एक बार फिर खिलने का निर्देश दिया है। कांग्रेस की इस जीत ने पार्टी का मनोबल बढ़ा दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पार्टी की इस जीत को बदलाव का एक संकेत कहा है और लोगों की पार्टी में निष्ठा के लिए धन्यवाद जताया। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि हवा में बदलाव का बयार है।

    2013 में हुए चित्रकूट विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को शिकस्त दी थी और फिर चित्रकूट में हुए उपविधानसभा चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है। 2013 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को 45 हजार 913 वोट मिले थे और वही भाजपा के खाते 34 हजार 943 वोट ही मिले थे। उस नतीजे में कांग्रेस और भाजपा के बीच 10 हजार 970 वोटो का अंतर था लेकिन इस बार के उपचुनाव में 14333 वोटो का अंतर है।

    चित्रकूट चुनाव जीतने के लिए बीजेपी नेता एव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हर संभव कोशिश की वह इस चुनाव को प्रतिष्ठा से जोड़ कर देख रहे थे। यही वजह है कि इस हार को उनकी व्यक्तिगत हार मानी जा रही है।
    उन्होंने कांग्रेस से चित्रकूट वापस लेने की बहुत कोशिश की, मुख्यमंत्री चित्रकूट में 3 दिन रहे और 60 सभाएं की लेकिन परिणाम बेनतीजे घोषित हुए। आदिवासियों के प्रति अपना प्रेम दिखते हुए चौहान कुर्रा गांव में एक रात एक आदिवासी के घर रुके लेकिन वहां भी भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले कम वोट मिले।

    इस चुनाव को लेकर चित्रकूट में शिवराज के अलावा बीजेपी के कई मंत्रियों ने भी डेरा डाल रखा था, मंत्रियों की इस सूचि में भाजपा के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्य शामिल है। योगी ने प्रचार के दौरान कामदगिरि मंदिर की पांच किलोमीटर की परिक्रमा की थी, वहीं योगी ने छोटी दीपावली आयोध्या में तो अगले दिन चित्रकूट में दीपोत्सव मनाया। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य ने कई सभाएं की लेकिन इस सारी मेहनत पर कांग्रेस ने पानी फेर दिया, और चित्रकूट में अपनी वरीयता को बरकरार रखा।

    कांग्रेस की जीत में खास बात यह है कि मतगणना के 12 वे दौर में ही बीजेपी ने अपनी हार मान ली थी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि चित्रकूट कांग्रेस का गढ़ है और इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि अगर चित्रकूट कांग्रेस का गढ़ है तो शिवराज अपने मंत्रियों के साथ वहां डेरा क्यों डाले हुए थे। भारतीय जनता पार्टी चित्रकूट में हुई हार को छुपाना चाहती है।

    कांग्रेस की इस जीत ने सिंधिया का राजनीतिक कद और ऊंचा कर दिया है, मध्यप्रदेश में कांग्रेस सिंधिया को आगे लाना चाहती है।

    भाजपा की खतरे की घंटी अभी बंद नहीं हुई है, बता दें की शिवपुरी जिले के कोलासर और अशोकनगर जिले के मुंगावली में उपचुनाव होने अभी बाकी है। कांग्रेस विधायकों के निधन के बाद यहां चुनाव होने है। अगर चित्रकूट की हार से बीजेपी ने अपना राजनीती समीकरण नहीं सुधारा तो यहां भी पार्टी को हाथ मलने पड़ सकते है।