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    कांगो में इबोला का प्रकोप

    कांगो में इबोला का भयानक प्रहार हुआ है। रेड क्रॉस के अधिकारी के मुताबिक, “मैं पहले के मुकाबले कांगो में इबोला वायरस के फैलने को लेकर इस बार अधिक चिंतित हूँ।” हाल ही के इन मामलो में तेज़ी से वृद्धि हुई है। वैश्विक स्वास्थ्य संघठन की मुलाकात में इमानुएल कापोबिआन्को ने कहा कि “कांगो के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में इबोला के प्रकोप को इंटरनेशनल हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया जाए।”

    पब्लिक स्वास्थ्य इमरजेंसी को अंतर्राष्ट्रीय चिंता नामित करने का अर्थ हालात बेहद गंभीर,असामान्य और असंभावित है। अन्य देशों में यह बीमारी फैलने के आसार बढ़ जाते हैं और तत्काल अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई की जरुरत होती है।

    पूर्वी कांगो में स्वास्थ्य कर्मी वायरस के प्रभाव को रोकने के लिए दवाई का छिड़काव कर रहे हैं।

    कांगो में इबोला के प्रकोप का ऐलान 1 अगस्त को किया गया था। साल 2014-16 में कांगो में इबोला का शिकार 11300 लोग हुए थे। कांगो के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, 1206 लोगो को इबोला होने की पुष्टि हुई है और 764 लोगो की मौत हुई थी।

    कापोबियंको ने कहा कि “गुरूवार को कांगो स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक इस हफ्ते के दो दिनों में 40 नए मामले सामने आये हैं। हालिया हफ़्तों में इबोला का वायरस तेज़ी से फैला है और अधिकारी वायरस के फैलने की जगह का मालूम नहीं कर पा रहे हैं।

    नए मरीजों का पुराने इबोला के रोगियों से कोई पहचान नहीं है। समुदाय में कई लोग इससे मर रहे हैं जबकि स्वास्थ्य केन्द्रो पर मरीजों को संक्रमण से बचाने के लिए अलग रखा जाता है।

    उन्होंने कहा कि “संख्या में इजाफा होता जा रहा है। मैं पहले के मुकाबले इस वक्त ज्यादा चिंतित हूँ, जबकि यह मेरा निजी आंकलन है। क्षेत्रीय समुदाय में इबोला के इलाज को लेकर विश्वास बेहद कम है। समुदाय ने पहले कभी इबोला के प्रकोप को नहीं झेला था और विद्रोही समूहों द्वारा सहायता प्रयासों को नुकसान पंहुचने असुरक्षा का भाव बढ़ा है।”

    साल 2014 में सिएरा लियॉन, लाइबेरिया और गुइंया में एबोला के प्रकोप पर वैश्विक इमरजेंसी घोषित की गयी थी। साल 2014 में इबोला के प्रकोप को अंतर्राष्ट्रीय एमेजेन्सी न ऐलान करने के लिए डब्ल्यूएचओ की काफी आलोचना हुई थी। इसमें 1000 से अधिक लोग मरे थे और इसके वायरस सीमा पार भी फैला था।

    डब्ल्यूएचओ ने अगले छह माह में इबोला से लड़ने की जरुरत के बाबत 148 मिलियन डॉलर कम मिले हैं उन्हें सिर्फ 74 मिलियन डॉलर ही मार्च तक मिले हैं। यह प्रकोप युगांडा और रवांडा की सीमा के नजदीक भी पंहुच रहा है। तारिक़ रबी ने बताया कि “अधिकारी इस बात से बेखबर है कि देश में कितने इबोला के मामले हैं और यही इसे रोकने में सबसे बड़ी बाधा है। हम लोगो की खोज कर रहे हैं। कई मामले को गोपनीय रखा जाता है और विभागों को कभी सूचित नहीं किया जाता है। यह अगले छह महीने से पहले खत्म होने वाला नहीं है।”

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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