रायटर्स के मुताबिक अफगानिस्तान में पाकिस्तान के राजदूत ने मंगलवार को कहा कि “कश्मीर हमले पर अगर भारत पाकिस्तान पर हिंसात्मक कार्रवाई करता है तो इससे अमेरिका और अफगानिस्तान के मध्य जारी शान्ति वार्ता पर असर पड़ेगा।” अफगानिस्तान में पाकिस्तान के राजदूत का बयान इस्लामाबाद के भय को उजागर कर रहा है।
बीते गुरूवार को कश्मीर के पुलवामा जिले में सीआरपीएफ के काफिले पर फियादीन आतंकी हमला किया गया था। जिसमे 40 जवान शहीद और थे और पांच बुरी तरह जख्मी थे। इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तानी समर्थित आतंकी समूह जैश ए मोहम्मद ने ली थी।
अमेरिकी राजदूतों के अनुसार अफगान शान्ति प्रयासों में पाकिस्तान की भूमिका अहम है क्योंकि उसका नाता तालिबान के चरमपंथियों के साथ है। अमेरिका के विशेष राजदूत 25 फरवरी को क़तर में तालिबानी प्रतिनिधियों से मुलाकात करेंगे। अमेरिका दशकों से जारी युद्ध को अब समाप्त करना चाहता है।
रायटर्स के मुतबिक हाल ही में अमेरिकी संसद में जनरल जोशफ वोटल ने कहा कि “यह जगजाहिर है कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ अपने प्रयासों में विफल रहा है। तालिबान या अन्य आतंकी संगठनों के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की भूमिका अभी भी संदेह के घेरे में हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान पर दबाव का प्रभाव देखा जा सकता है। हालांकि इमरान खान को जो मोर्चा संभालना चाहिए था उसमें कोई प्रगति नही दिखाई देती है।”
उन्होंने कहा कि हमारा रणनीतिक फोकस सुलह व क्षेत्रीय सुरक्षा है। पाकिस्तान के समक्ष अपने वादे को निभाने का अच्छा मौका है कि अफगानिस्तान विवाद के समाधान के लिए अमेरिका के प्रयासों का समर्थन करें। जोसफ वोटल ने कहा कि यदि आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान कड़े कदम उठाता तो बेहतर होता। पाकिस्तान का सकारात्मक कदम उनके के हित में होता।
तालिबान ने मास्को में हुई बैठक के दौरान कहा कि अफगान सरकार का संविधान अवैध है। यह पश्चिम से लिया गया है और यह शांति वार्ता में बाधा है। यह विवादित है और हम इस्लामिक संविधान चाहते हैं। साथ ही नए संविधान को इस्लामिक बुद्धिजीवियों द्वारा निर्मित किया जाएगा।
नवम्बर में नाटो के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अशरफ गनी की सरकार का प्रभाव या नियंत्रण 65 फीसदी जनता पर है लेकिन अफगानिस्तान के 407 जिले ही अफगान सरकार के पास है। तालिबान के दावे के मुताबिक वह देश के 70 फीसदी भाग पर नियंत्रण करता है।