Fri. Nov 15th, 2024

    श्लोक

    करपूर गौरम करूणावतारम

    संसार सारम भुजगेन्द्र हारम |

    सदा वसंतम हृदयारविंदे

    भवम भवानी सहितं नमामि ||

    मंगलम भगवान् विष्णु

    मंगलम गरुड़ध्वजः |

    मंगलम पुन्डरी काक्षो

    मंगलायतनो हरि ||

    सर्व मंगल मांग्लयै

    शिवे सर्वार्थ साधिके |

    शरण्ये त्रयम्बके गौरी

    नारायणी नमोस्तुते ||

    त्वमेव माता च पिता त्वमेव

    त्वमेव बंधू च सखा त्वमेव

    त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव

    त्वमेव सर्वं मम देव देव

    कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा

    बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात

    करोमि यध्य्त सकलं परस्मै

    नारायणायेति समर्पयामि ||

    श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे

    हे नाथ नारायण वासुदेव |

    जिब्हे पिबस्व अमृतं एत देव

    गोविन्द दामोदर माधवेती ||

    हिन्दी अनुवाद:

    शरीर कपूर की तरह गोरा है, जो करुणा के अवतार है, जो शिव संसार के मूल हैं। और जो महादेव सर्पराज को गले में हार के रूप में धारण किए हुए हैं, ऐसे हमेशा प्रसन्न रहने वाले भगवान शिव को अपने ह्रदय कमल में शिव-पार्वती को एक साथ नमस्कार करता हूँ।

    इस मंत्र से शिवजी की स्तुति की जाती है। इसका अर्थ इस प्रकार है-

    कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।

    करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं।

    संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं।

    भुजगेंद्रहारम्- इसका अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।

    सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है।

    मंत्र का पूरा अर्थ– जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।
    किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारम….मंत्र ही क्यों बोला जाता है, इसके पीछे बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं। भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा गाई हुई मानी गई है। अमूमन ये माना जाता है कि शिव शमशान वासी हैं, उनका स्वरुप बहुत भयंकर और अघोरी वाला है। लेकिन, ये स्तुति बताती है कि उनका स्वरुप बहुत दिव्य है। शिव को सृष्टि का अधिपति माना गया है, वे मृत्युलोक के देवता हैं, उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सब का अधिपति। ये स्तुति इसी कारण से गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे। शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं। हमारे मन में शिव वास करें, मृत्यु का भय दूर हो।

    https://www.youtube.com/watch?v=-wXz4x8glYY

    [ratemypost]

    By विकास सिंह

    विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

    5 thoughts on “कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्”
    1. Absolutely lovely lyrics it’s because of you Mister vikas I was able to find it…

      Thanku so much Bhrata… Bhagwan aapko Unnat Ashish de…

    2. आप ने श्लोक ही गलत लिखा है…
      सदा वसन्तम् नही है….सदा वसं तं है
      वसन्तम् लिखने से वसन्त ऋतू अभिप्रेत हो रहा है…जो कि यहां अप्रासंगिक है.
      सदा वसं तं [ उच्चार > वसौं तौं ] हृदयारविन्दें…अर्थात आप सदा मेरे हृदयकमल में वास करिये.

      1. Yahi to karan h k bhakti andhbhakti m badal jati h
        Adhura gyan galt gyan.
        Issi vajha se bade bade guru Pisa janta se lete h or business class me safar karte h
        Mujhe ni lgta sanatan dharm bhachaya ja sakta h

        1. आप निराशावादी लगते हैं, कृपया आशावादी बनिए। परमात्मा मंगल करेंगे ।
          जय भोलेनाथ।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *