कर्नाटक उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने गुरुवार को राज्य के हाई स्कूलों और जूनियर कॉलेजों में हिजाब प्रतिबंध के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को एक अंतरिम आदेश जारी किया कि “जब तक मामला अदालत के समक्ष लंबित है। ये छात्र और सभी हितधारक धार्मिक वस्त्र पहनने पर जोर नहीं देंगे।” उन्होंने छात्रों को कक्षाओं में लौटने का भी निर्देश दिया।
कर्नाटक उच्च न्यायालय में, मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी, न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित और न्यायमूर्ति जेएम खाजी की पूर्ण पीठ ने गुरुवार की सुनवाई की समाप्ति पर यह संकेत दिया कि अदालत याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ताओं द्वारा की गई प्रार्थनाओं पर अंतरिम आदेश पारित करने के लिए इच्छुक थी ताकि पूर्व-विश्वविद्यालय के छात्रों को सिर पर स्कूल यूनिफॉर्म के रंग का स्कार्फ पहन कर कॉलेज जाने की अनुमति मिल सके जिससे वें अंतिम महीनों की रह गयी कक्षाओं में भाग ले सके।
“हम अनुरोध करेंगे और न केवल अनुरोध करेंगे बल्कि संस्थानों को फिर से शुरू करने की अनुमति देने के लिए एक आदेश पारित करेंगे, लेकिन जब तक मामला अदालत के समक्ष लंबित है, ये छात्र और सभी हितधारक धार्मिक वस्त्र, यानी हेडड्रेस या भगवा शॉल या कुछ भी पहनने पर जोर नहीं देंगे। हम उस चीज़ पर सभी को रोकेंगे क्योंकि हम राज्य में शांति चाहते हैं ”मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी ने कहा।
पीठ ने आगे कहा,“हम इस मुद्दे पर जल्द से जल्द फैसला करेंगे लेकिन राज्य में शांति बहाल की जानी चाहिए।”
जब गुरुवार को सुनवाई शुरू हुई, तो छात्रों के अधिवक्ताओं ने 5 फरवरी के राज्य सरकार के आदेश के छोटे बिंदु पर अंतरिम राहत देने के लिए तर्क दिया। यह आदेश छात्रों के लिए हिजाब पर प्रतिबंध की सुविधा प्रदान करता है, चूँकि राज्य के पास वर्दी निर्धारित करने की शक्ति नहीं है, अतः यह तर्क छात्रों के अधिवक्ताओं ने कोर्ट के सामने रखा।
वहीं दूसरी ओर CM बोम्मई और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली कर्नाटक राज्य सरकार पर 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले इस मुद्दे को भड़काने और इससे उपजे राजनीतिक लाभ हासिल करने का आरोप लगाया गया है।
उच्च न्यायालय की गुरूवार की सुनवाई की समाप्ति के बाद , कर्नाटक सरकार ने स्कूलों और कॉलेजों को फिर से खोलने का आदेश दिय। यह भी कहा कि कक्षा 10 तक के सभी स्कूल सोमवार से बिना किसी धार्मिक ड्रेस कोड के फिर से खुलेंगे। उच्च न्यायालय द्वारा शैक्षणिक संस्थानों के परिसर में किसी भी तरह के धार्मिक पोशाक पहनने से छात्रों को रोकने के फैसले को जनता से मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है।
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