कर्नाटक को लेकर, कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों के बीच रस्साकशी पूरे ज़ोर पर है।
एक तरफ कांग्रेस अपना लिंगायत दांव खेलकर बड़े-बड़े दम भर रही है, वहीं दूसरी ओर भाजपा के लिए कर्नाटक उसकी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है।
इस बीच कर्नाटक इतिहास के इस तथ्य को नजरअंदाज नही किया जा सकता कि कर्नाटक राज्य में 1985 के बाद से किसी भी दल की लगातार सरकार नहीं बनी है।
इसके साथ ही कर्नाटक विधानसभा चुनाव की एक दिलचस्प बात यह है कि 2013 को छोड़कर कोई भी केंद्रीय सत्तादल राज्य में बहुमत हासिल करने में नाकाम रहा है।
लिंगायत फैक्टर
कर्नाटक की राजनीति में मठों का खासी प्रभाव देखा गया है। लिहाज़ा राजनीतिक पार्टियां चुनावी समय में मठाधीशों को लुभाने में लगी हुई हैं।
कर्नाटक के 30 जिलों में 600 से अधिक मठों की मौजूदगी और मतदाताओं पर मठों के प्रभाव को देखते हुए दोनों ही दलों के प्रमुख उन्हें अपनी ओर करने के लिए कोई कसर नही छोड़ रहे हैं।
भाजपा ने लिंगायत समुदाय के ग़द्दावर नेता बी एस येद्दयुरप्पा को पार्टी की कमान सौंपकर कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती पेश की है। राज्य में करीब 20 प्रतिशत आबादी लिंगायत समुदाय की है और लगभग 100 सीटों पर इस समुदाय का प्रभाव माना जाता है।
हालांकि येदियुरप्पा को पिछली भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री पद भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण छोड़ना पड़ा था। कुछ समय के लिए उन्होंने नई पार्टी का एलान भी किया था पर फिर भाजपा में उसका विलय भी करवा लिया था।
यह भाजपा का प्रमुख वोट बैंक भी कहा जाता है लेकिन सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत कार्ड में भाजपा के लिये चुनौती खड़ी कर दी है। वहीं बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया 2 अप्रैल तक मैसूर में चुनाव प्रचार करेंगे, जहाँ वे कुछ मठों में आशीर्वाद लेने जाएंगे।
राहुल गांधी भी गुजरात चुनावों की तर्ज पर मठ-दर-मठ घूम रहे हैं।
सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत को एक नया धर्म तक घोषित कर दिया।
इसके बाद कर्नाटक में विरोध प्रदर्शनों का एक संक्षिप्त दौर भी शुरू हुआ।
कर्नाटक सरकार ने केंद्र को लिंगायत के लिए अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग कर के भाजपा व अमित शाह को एक मुश्किल में डाल दिया था। हालांकि इस मुद्दे पर अंतिम स्थिति का अभी भी इंतजार है।
तारीख लीक
इस राजनीतिक उठापटक के बीच कर्नाटक चुनाव की डेट लीक होने से मीडिया में अलग अलग दलों की बयानबाजियों का घमासान भी छिड़ा।
भाजपा आई. टी. सेल के प्रमुख अमित मालवीय और कर्नाटक कांग्रेस के सोशल मीडिया प्रभारी ने चुनाव तारीख़ों के ऐलान पहले से ही ट्वीट कर 12 मई को मतदान की बात कही थी, जिसके बाद मामले ने तूल पकड़ लिया।
चुनाव आयोग ने इस मामले पर सफाई दे कर जांच करवाने की बात कही हालांकि इस विवाद से चुनाव आयोग की साख को नुकसान पहुंचा है।
कॉंग्रेस ने बयानबाजी में भाजपा को “सुपर इलेक्शन कमीशन” बताया, वहीं भाजपा की ओर से इसका कोई ठोस जवाब नहीं मिला।
अन्य दावेदार
भाजपा व कांग्रेस के अलावा कर्नाटक में जनता दल (सेक्युलर) भी एक मजबूत दावेदार है। जद(से) की तरफ से एच.डी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं।
आम आदमी पार्टी भी कर्नाटक चुनावों में राजनैतिक पदार्पण करने की तैयारी में है।
वर्तमान स्थिति
कर्नाटक की वर्तमान विधानसभा में भाजपा के पास 43, जद(से) के पास 30 व कांग्रेस पार्टी और उनके समर्थको के पास 122 सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए जरूरी आकड़ा है 113।
अब तक के ओपिनिअन पोल्स में किसी पार्टी को बहुमत मिलता नजर नहीं आ रहा है। तो भारतीय राजनीति के मोदी-युग के अनुसार कर्नाटक चुनाव रोमांचक होने वाले हैं।
चुनाव की तारीखें
17 मार्च को चुनाव आयोग ने कर्नाटक चुनाव की तारीखों का एलान किया। कर्नाटक की 224 सीटों पर चुनाव 12 मई को होंगे तथा परिणाम 15 मई को आएंगे।