कर्नाटक में तीन लोकसभा और दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को जबरदस्त झटका दिया है। 5 सीटों में से भाजपा को सिर्फ शिमोगा लोकसभा सीट पर कामयाबी मिल पाई।
भाजपा के लिए सबसे चौकाने वाला रहा बेल्लारी का परिणाम। बेल्लारी को भाजपा का गढ़ माना जाता है लेकिन जिस बड़े अंतर से कांग्रेस ने जीत दर्ज की वो भाजपा के लिए किसी सदमे से कम नहीं।
बेल्लारी से भाजपा ने अपने नेता श्रीरामालू की बहन वी शांता को उम्मीदवार बनाया था। बेल्लारी 2004 से भाजपा के लिए वोट करते आ रहा है। ये वही क्षेत्र हैं जहाँ रेड्डी बंधुओं का वर्चस्व है। लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार वीएस उगरप्पा ने 2,43,261 वोटों से भाजपा उम्मीदवार वी शांता को धुल चटा दिया।
बेल्लारी लोकसभा सीट श्रीरामालू के पास थी। लेकिन मई में विधानसभा चुनाव लड़ने के कारण ये सेट खाली हुई और भाजपा ने इस सीट पर श्रीरामालू की बहन वी शांता को उतारा। शांता को सिर्फ 3,85,204 वोट मिले जबकि कांग्रेस उम्मीदवार उगरप्पा ने 6,28,365 वोट हासिल किये।
सत्तारूढ़ कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन ने उत्तरी कर्नाटक के इस निर्वाचन क्षेत्र में कड़ी मेहनत की थी। वीएस उग्रप्पा को बाहरी व्यक्ति माना जाता है लेकिन कांग्रेस के नेता सिद्धाराय्याह के साथ-साथ डीके शिवकुमार जिस मजबूती के साथ उगरप्पा के साथ खड़े रहे वो उन्हें चुनाव जिताने में सहायक सिद्ध हुई।
बेल्लारी को जिताने की जिम्मेदारी कांग्रेस ने डी के शिवकुमार को सौंपी थी। राज्य में कांग्रेस को बहुमत न मिलने के बाद भी भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन का श्रेय शिवकुमार को ही जाता है।
बेल्लारी 1999 में सोनिया गाँधी और सुषमा स्वराज के बीच हुए चुनावी मुकाबले के बाद पुरे देश में चर्चा में आया। आजादी के बाद से ही बेल्लारी कांग्रेस का गढ़ रहा था लेकिन 2004 में उस पर भाजपा ने कब्ज़ा कर लिया और उसके बाद उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। लेकिन आज कांग्रेस ने शानदार जीत दर्ज करते हुए भाजपा से फिर से ये सीट छीन ली।
इस दौरान बेल्लारी रेड्डी बंधुओं और उनके करीबी नेता श्रीरामालू के प्रभाव क्षेत्र के रूप में पहचाना गया।
ये पहली बार नहीं है जब उपचुनावों में भाजपा को अपने गढ़ में हार का सामना करना पड़ा हो। इससे पहले मार्च में हुए उपचुनावों में भाजपा ने अपना गोरखपुर जैसा गढ़ खो दिया। गोरखपुर उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ रहा है लेकिन वहां से निकल कर मुख्यमंत्री बनते ही भाजपा वहां से हार गई।
कर्नाटक उपचुनाव के नतीजे जहाँ कांग्रेस के हौसलों को बुलंद करने वाले हैं वहीँ उपचुनावों में एक के बाद एक मिलती हार से भाजपा पर सहयोगियों का दवाब बढ़ना तय है।