कन्नड़ का आदर या हिंदी का अनादर कुछ इसी प्रकार का, सिक्के के दो पहलू जैसा ब्यान दिया कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने । 1 नवंबर को आज कर्नाटक में 62वां राज्योत्सव दिवस मनाया जा रहा है। इस मौके पर कर्नाटक के मुख्य मंत्री श्री सिद्धारमैया ने कांतिवीर स्टेडियम से जन को सम्बोधित करते हुए अपने भाषण के दौरान कहा कि “कर्नाटक में रहने वाला हर शख्स कन्नड़ है. जो कोई भी यहां रहता है, उसे कन्नड़ सीखनी चाहिए और बच्चों को भी सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए।”
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए सिद्धारमैया ने कहा कि ‘मैं किसी भाषा को सीखने के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन अगर आप कन्नड़ नहीं सीखते हैं तो इसका मतलब है कि आप इस भाषा का अनादर कर रहे हैं।’
अगर हम कुछ समय पहले कि बात करे तो मुख्यमंत्री सिद्धारमैया एक वीडियो के जरिये, जिसका शीर्षक था ‘कर्नाटक नाममा हममे’ (कर्नाटक आवर प्राइड), के जरिये कर्नाटक के लोगों के हितों व भाषा का नेतृत्व करते नज़र आ रहे थे। यह लगभग 14 मिनट का वीडियो था जिसमे सिद्धारमैया ने लगातार कन्नड़ भाषा पर जोर दिया था।
इसके अलावा सिद्धारमैया ने इससे पहले एक समिति का गठन किया था जिसके द्वारा उन्होंने कर्नाटक के अलग छेत्रिये ध्वज की मांग की थी।
कर्नाटक में एक और अलग तरह की मांग उठ रही है कन्नड़ डेवलपमेंट अथॉरिटी (कड़ा) जिसका कहना है कि कर्नाटक के स्कूल और कॉलेजे में 3 भाषाओ का शिक्षा छेत्र में जो समावेश है उसे सिर्फ दो भाषाओ तक ही सिमित कर देना चाहिए। इसके जरिये हिंदी को मुख्य दो भाषाओँ से हटाकर वैकल्पिक भाषा बनाने की योजना है।
इन सारी बातों पर गौर करने पर मूल रूप से यह समझ आता है कि यह छेत्रिये भाषा को कैसा प्रोहत्सान है जो हमारी राष्ट्रीय भाषा को हानि पंहुचा रहा है? क्या हमे यह ज्ञात नहीं कि हिंदी सिर्फ एक भाषा ही नहीं बल्कि एक जरिया भी है दक्षिण को भारत के सभी भागों से जोड़ने का?
पूर्व केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ा ने इस विषय में कहा था कि “सिद्धारमैया कर्नाटक के लोगों को भाषा के नाम पर बाटने की कोशिश कर रहे है जैसे की अंग्रेज़ो ने भारत के साथ किया था फुट डालो और राज करो।”