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    करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान

     करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
    रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान।।

    विषय-सूचि

    करत करत अभ्यास दोहा का अर्थ:

    कुए से पानी खींचने के लिए बर्तन से बाँधी हुई रस्सी कुए के किनारे पर रखे हुए पत्थर से बार -बार रगड़ खाने से पत्थर पर भी निशान बन जाते हैं। ठीक इसी प्रकार बार -बार अभ्यास करने से मंद बुद्धि व्यक्ति भी कई नई बातें सीख कर उनका जानकार हो जाता है।

    करत करत अभ्यास दोहा के रचयिता:

    उपर्युक्त दोहा महान कवी वृन्द द्वारा रचा गया है। इसमें वे कहना चाहते हैं की निरंतर परिश्रम करते रहने से असाध्य माना जाने वाला कार्य भी सिद्ध हो जाया करता है। असफलता के माथे में कील ठोककर सफलता पाई जा सकती है। जैसे कूंए की जगत पर लगी सिल (शिला) पानी खाींचने वाली रस्सी के बार-बार आने-जाने से, कोमल रस्सी की रगड़ पडऩे से घिसकर उस पर निशान अंकित हो जाया करता है।

    उसी तरह निरंतर और बार-बार अभ्यास यानि परिश्रम और चेष्टा करते रहने से एक निठल्ला और जड़-बुद्धि समझा जाने वाला व्यक्ति भी कुछ करने योज्य बन सकता है। सफलता और सिद्धि का स्पर्श कर सकता है। हमारे विचार में कवि ने अपने जीवन के अनुभवों के सार-तत्व के रूप में ही इस तरह की बात कही है। हमारा अपना भी विश्वास है कि कथित भाव ओर विचार सर्वथा अनुभव-सिद्ध ही है।

    करत करत अभ्यास दोहा की कहानी :

    एक गुरुकुल में बच्चा था जोकि बहुत ही मंदबुद्धि था। अपनी पूरी कक्षा में सबसे मुर्ख था और उसे कुछ याद नहीं रहता था। दस वर्ष बीत जाने के बाद भी वह मूर्ख ही बना रहा। सभी साथी उसका मजाक उड़ाते हुए उसे वरधराज (बैलों का राजा) कहा करते थे।

    दुसरे शिष्यों द्वारा उस बच्चे को चिढाया जाना गुरु को पसंद नहीं था लेकिन उन्हें यह भी पता था की यह बच्चा सीख नहीं पायेगा। अतः उन्होंने फैसला लिया और उसे अपने पास बुलाय। उन्होंने उससे कहा की बेटा शायद पढ़ाई लिखाई तुम्हारे लिए नहीं है। क्या पता तुम किसी और काम में माहिर हो जाओ अतः यहाँ पढने में अपना समय खराब मत करो और जाकर कोई और कार्य करने की कोशिश करो। मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। तुम्हे भगवान् अवश्य कोई रास्ता दिखाएगा।

    यह सुनकर शिष्य को बहुत दुःख हुआ। इसके बाद उसे कुछ नहीं सुझा और निराश होकर उसने आत्महत्या करने की ठान ली। वह अपने

    वरदराज ने सोचा कि जब इतना कठोर पत्थर कोमल रस्सी के बार-बार रगड़ने से घिस सकता है तब परिश्रम करने से मुझे विद्या क्यों नहीं प्राप्त हो सकती? उसने तत्काल आत्महत्या का विचार त्याग दिया और गुरुदेव के पास लौट आये। उसने गुरुदेव को कुछ दिन और रखकर शिक्षा देने की प्रार्थना की। सरल हृदय गुरूदेव राजी हो गये।

    वरदराज ने मन लगाकर पढ़ना आरम्भ कर दिया। उसकी ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा इतनी तीव्र थी कि समय और भोजन का भान भी नहीं रहता था।

    यही वरदराज आगे चलकर संस्कृत के महान विद्वान बने। संस्कृत व्याकरण समझने में बहुत कठिन होती है इसका वरदराज को बाखूबी अनुभव था। उसको सरल बनाने में उन्होंने ‘लघुसिद्धान्तकौमुदी’ की रचना की। पारिणनीय व्याकरण का संक्षिप्त सारांश इस ग्रन्थ में है।

    वरदराज की कहानी से एक लोकक्ति प्रचलित हो गयी, जो कि हर बच्चे के लिए स्मरण रखने योग्य है-

    करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
    रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान।।

    By विकास सिंह

    विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

    56 thoughts on “करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान दोहा: अर्थ, रचयिता”
    1. Those who are unmotivated are always determined, those who are willing to stand up, and those who bite a goal are the most likely to succeed

      1. इस कहानी को हमारे गुरुजी ने कक्षा ३ में हमलोगो को पेड़ के नीचे पढ़ाए थे, हमलोग बोड़ा पे बैठ कर पढ़ते थे।
        वाकई में यदि कोई भी बच्चा ठान ले तो उसे कोई ताकत नहीं रोक सकती सफल होने से।

    2. बहुत अच्छा लिखते हैं।आपका भविष्य निरंतर नई सफलताओं को छुए।🙏💐💐💐💐

    3. इस कहानी को हमारे गुरुजी ने कक्षा ३ में हमलोगो को पेड़ के नीचे पढ़ाए थे, हमलोग बोड़ा पे बैठ कर पढ़ते थे।
      वाकई में यदि कोई भी बच्चा ठान ले तो उसे कोई ताकत नहीं रोक सकती सफल होने से।

    4. कक्षा 3 वाली बात गले नही उतर रही टाट बोरी पर बैठकर तो हम भी पढ़े है उस समय 1962 तक कवियों के दोहे की पढाई छटी क्लास के बाद स्टार्ट होती थी। हां दोहा बहुत ही मोटिवेशनल है।

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    9. इस कहानी को पढ़ने में मुझे बहुत अच्छा लगा। इस कहानी को लिखने के लिए धन्यवाद

    10. यह सुनकर शिष्य को बहुत दुःख हुआ। इसके बाद उसे कुछ नहीं सुझा और निराश होकर उसने आत्महत्या करने की ठान ली। वह अपने

      वरदराज ने सोचा कि जब इतना कठोर पत्थर कोमल रस्सी के बार-बार रगड़ने से घिस सकता है तब परिश्रम करने से मुझे विद्या क्यों नहीं प्राप्त हो सकती? उसने तत्काल आत्महत्या का विचार त्याग दिया और गुरुदेव के पास लौट आये। उसने गुरुदेव को कुछ दिन और रखकर शिक्षा देने की प्रार्थना की। सरल हृदय गुरूदेव राजी हो गये।

    11. इस कहानी को हमारे गुरुजी ने कक्षा 3 में हमलोगो को पेड़ के नीचे पढ़ाए थे, हमलोग बोड़ा पे बैठ कर पढ़ते थे।
      वाकई में यदि कोई भी बच्चा ठान ले तो उसे कोई ताकत नहीं रोक सकती सफल होने से।

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