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    कच्चे तेल की कीमतें

    बुधवार को ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतों में 2 सेंट की गिरावट देखी गई, बावजूद इसके अभी भी ब्रेंट क्रूड आॅयल की कीमत 66.55 डॉलर प्रति बैरल है। विशेषज्ञों को मानना है कि आगामी दिनों में ब्रेंट क्रूड की कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है।

    आपको बता दें कि मंगलवार को कच्चे तेल की कीमत 67.12 डॉलर प्रति बैरल दर्ज की गई, जो कि साल 2014 से अब तक के अपने शीर्ष स्तर पर है। मोदी सरकार के लिए कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी चिंता का सबब बनती जा रही है।

    पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी और राजकोषीय घाटा ही चिंता के प्रमुख बिंदू नहीं है बल्कि भविष्य में बढ़ने वाली उच्च मुद्रास्फीति को लेकर सरकार ज्यादा चितिंत है।

    कच्चे तेल की कीमतें और वित्तीय प्रभाव

    वैश्विक तौरपर कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते पेट्रोल 69.97 रुपए प्रति लीटर और डीजल के दाम 59.82 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच चुके हैं। पिछले दस दिनों में पेट्रोल-डीजल की कीमतें अपने शीर्षतम स्तर पर हैं।

    सरकार के सीनियर आॅफिसर का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी राजकोषीय घाटे में गिरावट के प्रमुख कारणों में से एक हो सकता है। अधिकारी ने कहा कि अक्टूबर महीने में राज्यों में उत्पाद शुल्क और VAT कटौती के बावजूद भी उपभोक्ता कोई लाभ उठा नहीं सके, क्योंकि कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के चलते पेट्रोल-डीजल की कीमतों मेें मामूली गिरावट भी नहीं हो सकी।

    नोमुरा की रिपोर्ट

    नोमुरा रिपोर्ट के मुताबिक, कच्चे तेलों की प्रति बैरल पर 10 डॉलर की बढ़ोतरी से भारत के राजकोषीय हिस्से पर 0.1 फीसदी तथा जीडीपी का 0.4 फीसदी हिससे को नुकसान पहुंचेगा। रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि कच्चे तेल की कीमतों में लगाता बढ़ोतरी से भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

     वित्तीय संघर्ष की आशंका

    कच्चे तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी के चलते सरकार ने पेट्रोल पर प्रति लीटर 10 रुपए और डीजल पर 12 रुपए एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई है। आपको बता दें कि नवंबर-दिसंबर 2017 में कमजोर जीएसटी संग्रह तथा राजकोषीय घाटे में गिरावट दर्ज की गई है। बावजूद इसके तेल की कीमतों में वृद्धि देश को एक कमजोर स्थिति में डाल सकती है। गौरतलब है कि सरकार ही वित्तीय घाटे के संबंध में पहले से ही कई मोर्चो पर संघर्ष करती दिख रही है।

    एक आधिकारिक बयान के मुताबिक, मोदी सरकार मार्च 2017-18 के वित्तीय साल में 50,000 करोड़ रुपए उधार लेने की तैयारी कर रही है। मोदी सरकार द्वारा लिए जाने वाले इस ऋण से राजकोषीय घाटे में और ज्यादा बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। कम कर संग्रह और आरबीआई लाभांश में कमी के मद्देनजर, सरकार वित्तीय वर्ष 2018 के बजट लक्ष्य 72,500 करोड़ के मुकाबले अपने विनिवेश लक्ष्य को 1 लाख करोड़ रुपए तक बढ़ाने पर नजर गड़ाए हुए है।