सुपरनेटिंग सबनेटिंग का ठीक उलटा है। जहां सबनेटिंग में एक बड़े नेटवर्क को बहुत सारे छोटे-छोटे सब-नेटवर्क में विभाजित कर दिया जाता था वहीं सुपरनेटिंग में बहुत सारे नेटवर्क को एक साथ कंबाइन कर के एक बड़ा नेटवर्क बनाते हैं जीने सुपर-नेटवर्क या सुपरनेट नाम दिया गया है।
इसका ज्यादातर प्रयोग Route Summerization में किया जाता है जहाँ पर बहुत सारे नेटवर्क के रुट्स को समान नेटवर्क के prefixes के साथ मिला कर एक सिंगल routing एंट्री बनाई जाती है जो कि सुपर-नेटवर्क की तरफ पॉइंट करता है और उसके अंदर ही सारे नेटवर्क होते हैं।
इस से routing टेबल का आकार काफी कम हो जाता है और routing प्रोटोकॉल्स द्वारा एक्सचेंज किये जाने वाले routing अपडेट का आकर भी कम हो जाता है।
ख़ास कर;
जब बहुत सारे नेटवर्क को कंबाइन कर के एक नेटवर्क बनाया जाता है तो उस प्रक्रिया को सुपरनेटिंग कहते हैं।
सुपरनेटिंग का प्रयोग रूट एग्रीगेशन में किया जाता है ताकि routing टेबल्स और routing अपडेट्स के आकार कम हो जाएँ।
सुपरनेटिंग करते समय इस बातों का ख़ास ख्याल रखा जाना चाहिए:
सारे के सारे IP एड्रेस contiguous होने चाहिए।
सभी छोटे नेटवर्क्स का आकार समान होना चाहिए और वो 2n के रूप में होना चाहिए।
पहला IP एड्रेस सुपरनेट के कुल आकार से पूरा विभाजित (भाग) होना चाहिए।
सुपरनेटिंग के उदाहरण (examples of supernetting in hindi)
प्रश्न–मान लीजिये कि क्लास C के चार छोटे नेटवर्क हैं:
200.1.0.0,
200.1.1.0,
200.1.2.0,
200.1.3.0
अब इन सभी को मिला कर एक बड़ा नेटवर्क बनाये जिसके पास एक सिंगल नेटवर्क ID हो।
हल: सुपरनेटिंग से पहले अगर हम उसका routing टेबल बनाएं तो वो कुछ ऐसा दिखेगा:
नेटवर्क ID
सबनेट मास्क
इंटरफ़ेस
200.1.0.0
255.255.255.0
A
200.1.1.0
255.255.255.0
B
200.1.2.0
255.255.255.0
C
200.1.3.0
255.255.255.0
D
अब हम एक-एक कर उपर दिए गये शर्तों पर इनकी जांच करेंगे कि ये उन्हें संतुष्ट करते हैं या नहीं:
Contiguous: आप यहाँ देख सकते हैं कि सारे नेटवर्क contiguous हैं क्योंकि सभी के पास 256 होस्ट का साइज़ है. पहले नेटवर्क का रेंज 200.1.0.0 से 200.1.0.255तक है। अगर आप पहले नेटवर्क के अंतिम IP एड्रेस में 1 जोड़ेंगे जो कि है: 200.1.0.255 + 0.0.0.1, आपको अगला नेटवर्क ID मिलेगा जो 200.1.1.0. है। इसी तरह इस बात की जांच करनी होगी कि सारे नेटवर्क contiguous हैं या नहीं।
सभी नेटवर्क के समान साइज़: चूँकि सारे नेटवर्क क्लास C से सम्बन्ध रखते हैं, इसीलिए सभी का साइज़ 256 होगा जो कि ऐसे भी लिखा जा सकता है- 28
पहला IP एड्रेस कुल साइज़ से पूरा भाग लगना चाहिए: जब भी किसी बाइनरी संख्या को 2n से भाग देते हैं तो अंतिम न बिट्स शेष यानी कि remainder बचता है। इसीलिए हमे ये जांचने के लिए कि पहला IP एड्रेस नेटवर्क के कुल साइज़ से पूरा पूरा divisible है या नहीं, हमे check करना होगा कि अंतिम n v=बिट्स 0 हैं या नहीं।दिए गये प्रश्न में IP 200.1.0.0 है और सुपरनेट का पूरा साइज़ है: 4*28 = 210.अगर IP एड्रेस के अंतिम 10 बिट्स 0 होंगे यानी कि वो divisible है और इस शर्त को पूरा करता है। आइये देखते हैं,यहाँ पहली IP एड्रेस के अंतिम 10 बिट्स 0 हैं (जैसा कि उपर हरे रंग से दिखाया गया है)। इसीलिए ये तीसरे शर्त को भी पूरा करता है।
इसीलिए इन चारों नेटवर्क को जोड़ कर एक सुपरनेट बनाया जा सकता है। नये सुपरनेट कि ID होगी- 200.1.0.0.
सुपरनेटिंग के फायदे और खामियां (Advantages & Disadvantages of supernetting in hindi)
सुपेर्नेट के फायदे–
नेटवर्क ट्रैफिक को कम करता है और साथ ही नियंत्रित करता है।
IP एड्रेस ना होने कि समस्या को खत्म करने में मदद करता है।
routing टेबल का साइज़ कम करता है।
सुपरनेटिंग की खामियां–
कंबाइन होने के बाद ये नेटवर्क के अलग-अलग क्षेत्र को कवर नहीं कर पाता।
सभी नेटवर्क समान क्लास के होने चाहिए और सारे IP एड्रेस भी contiguous होने चाहिए।
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बीआईटी मेसरा, रांची से कंप्यूटर साइंस और टेक्लॉनजी में स्नातक। गाँधी कि कर्मभूमि चम्पारण से हूँ। समसामयिकी पर कड़ी नजर और इतिहास से ख़ास लगाव। भारत के राजनितिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक इतिहास में दिलचस्पी ।