विषय-सूचि
मैक फ़िल्टरिंग क्या है? (what is mac filtering in hindi)
आपको बता दें कि दो तरह के नेटवर्क अडाप्टर होते हैं। वायर्ड एडाप्टर हमे ईथरनेट के द्वारा किसी मॉडेम या राऊटर से कनेक्शन स्थापित करने कि क्षमता प्रदान करता है वहीँ वायर-लेस अडाप्टर हमे दूर के हॉटस्पॉट से कनेक्ट होने में सक्षम बनाता है।
हर अडाप्टर का एक अलग और यूनिक मैक एड्रेस होता है जो कि कंप्यूटर कि पहचान करता है और फिर उसे एक्सेस देता है।
मैक एड्रेस को 00:00:00:00:00:00 या फिर 00-00-00-00-00-00 वाले फॉर्मेट में दिखाया जाता है।
यूँ समझ लीजिये कि मैक फ़िल्टरिंग एक्सेस कण्ट्रोल पर आधारित एक सिक्यूरिटी मेथड है। सभी एड्रेस में एक 48 बिट का एड्रेस असाइन किया जाता है जो कि ये बताता है कि हम उस नेटवर्क को एक्सेस कर सकते हैं या नहीं।
ये एक्सेस प्रदान किये गये सभी डिवाइस कि एक लिस्ट तैयार करने में मदद करता है जिसकी आपको अपने wi-fi में जरूरत है और साथ ही एक्सेस मना किये गये डिवाइस कि भी लिस्ट बनाने में आपको मदद करता है जिनकी जरूरत नही है।
मैक फ़िल्टरिंग के कार्य (function of mac filtering in hindi)
ये अनिक्षित एक्सेस से हमारे सिस्टम को बचाता है। हम कुछ निश्चित कंप्यूटर को इसके द्वारा वाइट लिस्ट या फिर ब्लैकलिस्ट कर सकते हैं।
हम फिल्टर को ये कॉन्फ़िगर कर सकते हैं कि ये उन्ही devices को एक्सेस कि अनुमति प्रदान करे जो वाइट लिस्ट में हों।
वाइट लिस्ट देखा जाए तो ब्लैक लिस्ट से ज्यादा सुरक्षा प्रदान करता है क्योंकि ये उन्ही devices को अनुमति प्रदान करता है जिनका नाम लिस्ट में शामिल है।
इसे एक ऐसे एंटरप्राइज वायरलेस नेटवर्क कि तरह प्रयोग किया जाता है जिसके पास एक से ज्यादा एक्सेस पॉइंट्स हैं जो कि क्लाइंट को एक दूसरे से संचार करने से रोकते हैं।
राऊटर हमेशा मैक एड्रेस कि एक लिस्ट को कॉन्फ़िगर करता है जिसमे से आप ये चुन सकते हैं कि किस डिवाइस को आप एक्सेस कि अनुमति देना चाहते हैं।
इस बात का ध्यान रखें कि वैसे तो सिक्यूरिटी के लिए राऊटर के अंदर ढेरों सेटिंग होते हैं लेकिन सारे उतने उपयोगी नहीं होते।
मीडिया एक्सेस कण्ट्रोल भले ही आपको उपयोगी लगे लेकिन इसकी कुछ खामियां भी है।
किसी भी वायरलेस नेटवर्क में वो ख़ास डिवाइस जिनके पास एक SSID कि तरह का पता और पासवर्ड है वो राऊटर के साथ authenticate कर के कनेक्ट हो सकते हैं जो कि IP एड्रेस, इन्टरनेट और बहुत सारे शेयर किये गये रिसोर्सेज को एक्सेस करने कि अनुमति देता है।
मैक फ़िल्टरिंग एक सिक्यूरिटी का अतिरिक्त लेयर देता है जिसमे वो मैक एड्रेस में से उन्हें सेलेक्ट करता है जिन्हें अनुमति प्रदान कि गई है और अगर एक्सेस प्रदान किये हुए डिवाइस कनेक्ट होने कि कोशिश करते हैं तो कनेक्शन स्थापित कर देता है। अगर ऐसा नही होता तो वो कनेक्शन देने से मना कर देता है।
मैक फ़िल्टरिंग के स्टेप्स (steps of mac filtering in hindi)
मैक फ़िल्टरिंग को करने के लिए निम्नलिखित स्टेप्स को फॉलो करें:
- सबसे पहले जो आप जिन devices को एक्सेस कि अनुमति प्रदान करना चाहते हैं उनकी एक लिस्ट बनाएं। ऐसा इसीलिए क्योंकि DHCP उन्हें ही कनेक्ट होने देगा जो डिवाइस लिस्ट में हैं।
- ऐसे devices कि लिस्ट भी सेट करें जिन्हें आप अनुमति प्रदान नहीं करना चाहते। इस लिस्ट में जो भी डिवाइस होंगे उन्हें DHCP सर्वर द्वारा कनेक्शन स्थापित करने से मना कर दिया जाएगा।
- अगर आपने किसी मैक एड्रेस को दोनों लिस्ट में ही शामिल कर दिया है तो उसे भी जुड़ने कि अनुमति नहीं दी जाएगी।
अब अनुमति दिए गये या मना किये गये डिवाइस कि लिस्ट को सेट-अप करने के लिए निम्नलिखित स्टेप्स को फॉलो करें:
- सबसे पहले DHCP console में जाएँ और IPv4 node पर राईट क्लीक करें जिसके बाद आपको एक आप्शन दिखेगा Properties. उसपर क्लीक करें।
- अब Filter टैब में Current filter configuration details का प्रयोग कर के एक allow लिस्ट सेट करें। इसके लिए आपको Enable Allow List सेलेक्ट करना होगा। इसी तरह Enable Deny List द्वारा एक deny लिस्ट भी सेट करें।
- अब आपके OK क्लीक करते ही ये नए बदलाव सेव होकर लागू हो जाएँगे।
मैक फिल्टर को अपडेट कैसे करें? (how to update mac filtering in hindi)
इस बात का ध्यान रखें कि अगर आपके वायरलेस राऊटर में मैक फ़िल्टरिंग इनेबल की गई है और मैक एड्रेस नही डाला गया है तो राऊटर से कनेक्ट किया जाने वाला वायरलेस डिवाइस कनेक्ट नही हो पाएगा।
अगर मैक फ़िल्टरिंग को troubleshooting के लिए डिसएबल किया गया है तो फिर उसे इनेबल करने की कोई जरूरत नही है।
क्योंकि राऊटर बनाने वाले कम्पनी को इस बारे में ज्यादा जानकारी होतो है।
- अपने राऊटर कि सेटिंग में जाएँ और MAC Filtering नामक टैब या आप्शन पर क्लीक करें। ये राऊटर के अंदर Wireless या Wireless Security वाले आप्शन के अंदर होता है। कुछ राऊटर के अंदर मैक फ़िल्टरिंग को मैक एड्रेस कण्ट्रोल, एड्रेस रिजर्वेशन या फिर वायरलेस मैक ऑथेंटिकेशन के नाम से भी जाना जाता है।
- नाइनटेंडो सिस्टम के मैक एड्रेस को allowed devices वाले लिस्ट में जोड़ने की जरूरत होती है और उस बदलाव को सेव कर के अप्लाई करना पड़ता है; अगर मैक फ़िल्टरिंग इनेबल और ऑन है तो। अगर आप अपने डिवाइस में मैक फ़िल्टरिंग नही चाहते तो इसे ऑफ कर दें या डिसएबल कर दें।
नोट- अगर आपको LinkSys वायरलेस N-राऊटर में मैक फ़िल्टरिंग इनेबल या ऑन करना हो तो वायरलेस पर क्लीक कर के वायरलेस मैक फिल्टर पेज में जाएँ।
मैक फिल्टर की खामियां (Drawbacks of mac filtering in hindi)
मैक फिल्टर की कुछ खामिया भी हैं जिन्हें हम नीचे लिस्ट कर रहे हैं:
- ये काफी समय खाता है और एक थकाऊ प्रक्रिया है जिसमे अगर आपके पास devices कि लिस्ट बहुत ही लम्बी है तो उन सभी के मैक एड्रेस को जान्ने की जरूरत पड़ेगी। allowed devices कि लिस्ट को तब-तब अपडेट करना पडेगा जब हम कोई नया डिवाइस (कंप्यूटर या फोन) खरीदते हैं या फिर किसी नए डिवाइस को कनेक्ट होने की परमिशन देना चाहते हैं।
- PCs के लिए दो मैक एड्रेस जोड़ना होता है- एक वायर्ड अडाप्टर के लिए और एक वायरलेस अडाप्टर के लिए।
- ये hackers से उतनी भी सुरक्षा नहीं देता। लेकिन इसे आप बच्चों को एक्सेस से दूर रखने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं जिन्हें इन सब बारे में ज्यादा पाता नहीं होता।
- ये आपके सिस्टम को कम सुरक्षित भी बना सकता है क्योंकि hackers को इसके बाद आपके एन्क्रिप्ट किये गये WPA2 पासवर्ड को क्रैक करने कि जरूरत नही पड़ेगी।
इस लेख से सम्बंधित यदि आपका कोई भी सवाल या सुझाव है, तो आप उसे नीचे कमेन्ट में लिख सकते हैं।