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    difference between compiler and interpreter in hindi

    विषय-सूचि

    कंपाइलर और इंटरप्रेटर (compiler and interpreter in hindi)

    कंपाइलर एक तरह का ट्रांस्लेटर होता है जो की सोर्स भाषा को वस्तु की भाषा में बदलता है। इंटरप्रेटर एक तरह का प्रोग्राम है जो कि सोर्स भाषा में ही काम करता है। एक और अंतर जो कंपाइलर और इंटरप्रेटर में होता है वह यह है की कंपाइलर पूरे प्रोग्राम को एक ही बार में बदल देता है जबकि इंटरप्रेटर एक बार में एक ही लाइन के प्रोग्राम को बदलता है।

    मनुष्य सामान्य भाषा में कुछ भी समझ सकता है लेकिन कम्प्युटर नहीं समझ सकता। कम्प्युटर को एक ट्रांस्लेटर की जरूरत पड़ती है जिससे की वह लिखी हुई भाषा को मनुष्य के समझने लायक भाषा में बदल सके। कंपाइलर और इंटरप्रेटर दोनों ही भाषा को ट्रांस्लेट करने में काम आते है।

    कंपाइलर और इंटरप्रेटर में अंतर (difference between compiler and interpreter)

    अंतर का आधार कंपाइलर इंटरप्रेटर
    इनपुट यह एक बार में पूरा प्रोग्राम ले लेता है।यह कोड की एक लाइन ही एक बार में लेता है।
    आउटपुट यह एक खुदका कोड भी बनाता है।यह खुद का कोड नहीं बनाता।
    काम का तरीका इसका संकलन किसी कार्य को करने से पहले किया जाता है।इसका संकलन काम के साथ साथ ही किया जाता है।
    गतिइसकी गति थोड़ी तेज़ होती है।इसकी गति थोड़ी धीरे होती है।
    मेमोरीइसको मेमोरी की आवश्यकता कम होती है क्यूंकी यह खुदके ऑब्जेक्ट कोड बनाता है।इसको काफी कम मेमोरी चाहिए होती है क्योंकि यह खुदके कोड नहीं बनाता है।
    एरर यह संकलन के समय ही सारे एरर दिखा देता है।यह हर लाइन के साथ साथ ही एरर को दिखाता है।
    एरर देखनाइसमे एरर देखना थोड़ा टेढ़ा काम है।इसमे एरर देखना थोड़ा आसान है।
    प्रोग्राममिंग भाषा C, C++, C#, स्केला आदि।जावा, पीएचपी, पर्ल, पाइथन, रूबी आदि।

     

    कंपाइलर (compiler in hindi)

    यह एक तरह का प्रोग्राम है जो की प्रोग्राम की लिखी हुई कठिन भाषा को मशीन की और छोटे दर्जे की भाषा में बदलता है और जिस भी तरह के प्रोग्राम दिये गए हैं उसमे एरर देखता है। यह एक ही बार में पूरे कोड को बदल देता है। उसके बाद उपयोगकर्ता को कंपाइल किया हुआ कोड़ मिलता है जिसे की वह चला सकता है।

    कंपाइलर कई चरणों में काम करता है जो की दो भागों में विभाजित है –

    • अनालिसिस फेज – इसमे कंपाइलर को हम फ्रंट एंड भी बोलते है। जिसमे प्रोग्राम कुछ भागों में विभाजित होता है। जिसमे वह व्याकरण और सिंटेक्स को कोड में देखता है। इसमे लेक्सीकल अनलाइजर, सीमेंटीक अनलाइजर और सिंटेक्स अनलाइजर होता है।
    • सिंथेसिस फेज – इसमे कंपाइलर को हम बैक एंड भी बोलते हैं। इसमे कोड ओप्टिमाइज़र और कोड जेनरेटर होता है।

    इंटरप्रेटर (interpreter in hindi)

    यह एक तरह का विकल्प होता है जो की प्रोग्राममिंग भाषा में काम आता है और कंपाइलर की तरह ही काम करता है। यह लेक्सिंग, पार्सिंग और टाइप को कंपाइलर में चेक करने के काम आता है। इंटरप्रेटर में सिंटेक्स की प्रोसेसिंग के लिए काफी समय लगता है। यह एक ही ट्री को एक से ज्यादा बार चलाता है इसी वजह से इसमे थोड़ा समय लगता है। कंपाइलर और इंटरर्प्रेटर प्रोग्राममिंग भाषा को लिखने में काफी सहायक होते हैं।

    निष्कर्ष – यह दोनों ही एक ही तरह के काम करते हैं पर इनके काम करने का तरीका अलग अलग होता है। कंपाइलर एक साथ सारे के सारे कोड को ले लेता है जबकि इंटरप्रेटर इसके कुछ ही भाग को लेता है जैसे की एक एक लाइन को वह लेता है।

    कंपाइलर और इंटरप्रेटर दोनों के ही कुछ फायदे और नुकसान हैं। जैसे की इंटेर्प्रेटेड भाषा को क्रॉस प्लैटफ़ार्म बोला जाता है यानि की कोड पोर्टेबल होता है और काम करने में आसान भी होता है। यह कंपाइलर की तरह कोड़ को नहीं लेता और समय भी बचाता है। कंपाइल की हुई भाषा काफी तेज़ होती है।

    इस लेख से सम्बंधित यदि आपका कोई भी सवाल या सुझाव है, तो आप उसे नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।

    3 thoughts on “कंपाइलर और इंटरप्रेटर में अंतर क्या है?”
    1. Ek machine ko translater ya interpreter etc ki zarurat kyon hoti hai
      Kya ek computer bina translator ya interpreter ke kaam nahi kar sakta

    2. Amazing explanation on the Similarity and differences between compiler and interpreter. This is exactly what I wanted to read, hope in future you will continue sharing such an excellent article

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