लोकसभा ने मंगलवार को 127 वें संविधान संशोधन विधेयक, 2021 को सदन के सर्वसम्मत समर्थन से पारित किया। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने कहा कि कई लोकसभा सांसदों द्वारा वर्तमान में आरक्षण पर 50% की सीमा को हटाने की मांग की सावधानीपूर्वक जांच आवश्यक है।
सत्र की पहली व्यवस्थित बहस
तीन सप्ताह के व्यवधान और स्थगन द्वारा चिह्नित सत्र में व्यवस्थित तरीके से इस तरह की पहली बहस संभव हो पायी। विधेयक पर बहस का जवाब देते हुए डॉ कुमार ने कहा कि इस मुद्दे पर कानूनी और संवैधानिक मुद्दों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि, “इंद्रा साहनी मामले में अदालत ने कहा है कि आरक्षण सीमा को केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही 50% से अधिक बढ़ाया जा सकता है। सरकार सदस्यों की इच्छाओं से अवगत है।”
सामाजिक न्याय मंत्री ने कहा कि वर्तमान संविधान संशोधन विधेयक एक ऐतिहासिक कानून है क्योंकि इससे देश की 671 जातियां लाभान्वित होंगी। इसके साथ ही यह राज्यों के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की अपनी सूची बनाने के अधिकारों को बहाल करेगी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लाया गया संशोधन
मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद केवल केंद्र को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की सूची बनाने का अधिकार दिया गया था। अब यह विधेयक राज्य सरकारों की सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े ओबीसी की पहचान करने की शक्ति को बहाल करेगा।
सरकार ने यह संशोधन लाना आवश्यक समझा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर अपने आदेश में 102वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम को बरकरार रखा जिसमें अनुच्छेद 342 के बाद अनुच्छेद 338 बी और 342 ए (दो खंडों के साथ) को शामिल किया गया था। इसके अनुसार भारत के राष्ट्रपति को राज्यपालों के परामर्श से सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को निर्दिष्ट करने की शक्ति दी गयी थी।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की नेता सुप्रिया सुले जिनकी पार्टी महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी सरकार की एक घटक है, मराठा आरक्षण पर जोर दे रही है, ने कहा कि इसका श्रेय महाराष्ट्र सरकार को दिया जाना चाहिए जिसने केंद्र से इस मुद्दे को हल करने के लिए विधेयक को पेश करने का अनुरोध किया।